नवगीत:
भाग्य
बांचते हैं
संजीव
.
भाग्य
बाँचते हो औरों का
खुद की
किस्मत
बाँच न
पाते
.
तोता
लेकर सड़क किनारे
बैठा स्याना
कागा पंडित
मूल्य नये
गढ़ नहीं सके पर
मूल्य
पुराने करते खंडित
सुख-समृद्धि
कब किसे मिलेगी
बतला
दें, हों आप अचंभित
बिन
ध्वज-दंड पताका कल की
नील गगन
पर
छिप
फहराते
.
संसद
में सेवा हित बैठे
दूर-दूर
से जाकर सांसद
सेवापथ
को भुला राजपथ
का चढ़
गया सभी पर क्यों मद?
सूना
जनपथ राह हेरता
बिछड़े
पग फिर आयें शायद
नेताजी,
जेपी, अन्ना संग
कल के
सपने
आज
सजाते
.
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