मुक्तिका:
रात
संजीव
.
चुपके-चुपके आयी रात
शाम-सुबह को भायी रात
झरना नदिया लहरें धार
घाट किनारे काई रात
शरतचंद्र की पूनम है
'मावस की परछाईं रात
आसमान की कंठ लंगोट
चाहे कह लो टाई रात
पर्वत जंगल धरती तंग
कोहरा-पाला लाई रात
वर चंदा तारे बरात
हँस करती कुडमाई रात
दिन है हल्ला-गुल्ला-शोर
गुमसुम चुप तनहाई रात
…
रात
संजीव
.
चुपके-चुपके आयी रात
शाम-सुबह को भायी रात
झरना नदिया लहरें धार
घाट किनारे काई रात
शरतचंद्र की पूनम है
'मावस की परछाईं रात
आसमान की कंठ लंगोट
चाहे कह लो टाई रात
पर्वत जंगल धरती तंग
कोहरा-पाला लाई रात
वर चंदा तारे बरात
हँस करती कुडमाई रात
दिन है हल्ला-गुल्ला-शोर
गुमसुम चुप तनहाई रात
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