अभिनव प्रयोग:
नवगीत :
संजीव
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मिलती काय न ऊँचीवारी
कुरसी हमखों गुइयाँ
.
हमखों बिसरत नहीं बिसारे
अपनी मन्नत प्यारी
जुलुस, विशाल भीड़ जयकारा
सुविधा-संसद न्यारी
मिल जाती, मन की कै लेते
रिश्वत ले-दे भैया
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पैलां लेऊँ कमीशन भारी
बेंच खदानें सारी
पाछूं घपले-घोटाले सौ
रकम बिदेस भिजा री
होटल फैक्ट्री टाउनशिप
कब्जा लौं कुआ तलैया
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कौनौ सैगो हमरो नैयाँ
का काऊ सेन काने?
अपनी दस पीढ़ी खें लाने
हमें जोड़ रख जानें
बना लई सोने की लंका
ठेंगे पे राम-रमैया
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(बुंदेली लोककवि ईसुरी की चौकड़िया फागों की लय पर आधारित, प्रति पद १६-१२ x ४ पंक्तियाँ, महाभागवत छंद )
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