नवगीत:
संजीव
.
कल के गैर
आज है अपने
.
केर-बेर सा संग है
जिसने देखा दंग है
गिरगिट भी शरमा रहे
बदला ऐसा रंग है
चाह पूर्ण हों
अपने सपने
.
जो सत्ता के साथ है
उसका ऊँचा माथ है
सिर्फ एक है वही सही
सच नाथों का नाथ है
पल में बदल
गए हैं नपने
.
जैसे भी हो जीत हो
कैसे भी रिपु मीत हो
नीति-नियम बस्ते में रख
मनमाफिक हर रीत हो
रोज मुखौटे
चहिए छपने
.
१६.१. २०१५
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