आइये कविता करें: १०
आभा जी का यह नवगीत पढ़िए. यह एक सामान्य घटना क्रम है जिसमें रोचकता की कमी है. यह वर्णनात्मक हो गया है. दोहे या नव्गीय के कथ्य में कुछ चमत्कार या असाधारणता होना चाहिए, साथ ही कहन में भी कुछ खास बात हो.
कुछ तो मुझसे बातें करते.....
सुबह को जाकर
सांझ ढले
घर को आते हो
ना जाने
कितने हालातों से
टकराते हो
प्रियतम मेरे
सारे दिन मैं
करूं प्रतीक्षा
थकी थकी सी
मुद्रा में तुम जब
आते हो
कितनी बातें
करनी होतीं
साथ चाय भी
पीनी होती
कैसे मैं मन टटोलूं
कैसे अपना मुंह खोलूं
जब निढाल हो
बिस्तर में
तुम गिर जाते हो
चाहूं मन ही मन तुम मुझसे
हाले दिल थोड़ा
सा कहते
कुछ तो मुझसे बातें करते...
.......
हम इसमें कम से कम बदलाव कर इसे नव गीत का रूप देने का प्रयास करते हैं:
कुछ तो
मुझसे बातें कर लो
(यह मुखड़ा हुआ. मुखड़ा हर अंतरे के बाद दोहराया जाता है ताकि पूरे नवगीत या दोहे को एक सूत्र में बाँध सके)
अलस्सुबह जा ८
सांझ ढले ६
घर को आते हो १०
(अंतरे के प्रथम चरण में ८+६+१० = २४ मात्राएँ हुईं, सामान्यतः दूसरे चरण में भी २४ मात्राएँ चाहिए, पंक्ति संख्या या पंक्ति का पदभार भिन्न भी हो सकता है.)
क्या जाने
किन हालातों से
टकराते हो?
प्रियतम मेरे!
सारे दिन मैं
करूँ प्रतीक्षा-
(यह ३रा चरण हुआ, इसमें भी २४ मात्राएँ हैं. यदि और अधिक चरण जोड़ने हैं तो इसी तरह जोड़े जा सकते हैं पर जितने चारण यहाँ होंगे उतने ही चरण बाकी के अंतरों में भी रखना होंगे. अब मुखड़े के समान पदभार की पंक्ति चाहिए ताकि उसके बाद मुखड़ा उसी प्रवाह में पढ़ा जा सके.)
मुझ को
निज बाँहों में भर लो
थका-चुका सा
तुम्हें देख
कैसे मुँह खोलूँ?
बैठ तुम्हारे निकट
पीर क्या?
हिचक टटोलूँ
श्लथ बाँहों में
गिर सोते
शिशु से भाते हो
मन इनकी
सब पीड़ा हर लो
नवगीत का अंत सामान्य से कुछ भिन्न हुआ क्या? अब आभा जी विचार करें और चाहें तो कथ्य में और भी प्रयोग कर सकती हैं.
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आभा जी का यह नवगीत पढ़िए. यह एक सामान्य घटना क्रम है जिसमें रोचकता की कमी है. यह वर्णनात्मक हो गया है. दोहे या नव्गीय के कथ्य में कुछ चमत्कार या असाधारणता होना चाहिए, साथ ही कहन में भी कुछ खास बात हो.
कुछ तो मुझसे बातें करते.....
सुबह को जाकर
सांझ ढले
घर को आते हो
ना जाने
कितने हालातों से
टकराते हो
प्रियतम मेरे
सारे दिन मैं
करूं प्रतीक्षा
थकी थकी सी
मुद्रा में तुम जब
आते हो
कितनी बातें
करनी होतीं
साथ चाय भी
पीनी होती
कैसे मैं मन टटोलूं
कैसे अपना मुंह खोलूं
जब निढाल हो
बिस्तर में
तुम गिर जाते हो
चाहूं मन ही मन तुम मुझसे
हाले दिल थोड़ा
सा कहते
कुछ तो मुझसे बातें करते...
.......
हम इसमें कम से कम बदलाव कर इसे नव गीत का रूप देने का प्रयास करते हैं:
कुछ तो
मुझसे बातें कर लो
(यह मुखड़ा हुआ. मुखड़ा हर अंतरे के बाद दोहराया जाता है ताकि पूरे नवगीत या दोहे को एक सूत्र में बाँध सके)
अलस्सुबह जा ८
सांझ ढले ६
घर को आते हो १०
(अंतरे के प्रथम चरण में ८+६+१० = २४ मात्राएँ हुईं, सामान्यतः दूसरे चरण में भी २४ मात्राएँ चाहिए, पंक्ति संख्या या पंक्ति का पदभार भिन्न भी हो सकता है.)
क्या जाने
किन हालातों से
टकराते हो?
प्रियतम मेरे!
सारे दिन मैं
करूँ प्रतीक्षा-
(यह ३रा चरण हुआ, इसमें भी २४ मात्राएँ हैं. यदि और अधिक चरण जोड़ने हैं तो इसी तरह जोड़े जा सकते हैं पर जितने चारण यहाँ होंगे उतने ही चरण बाकी के अंतरों में भी रखना होंगे. अब मुखड़े के समान पदभार की पंक्ति चाहिए ताकि उसके बाद मुखड़ा उसी प्रवाह में पढ़ा जा सके.)
मुझ को
निज बाँहों में भर लो
थका-चुका सा
तुम्हें देख
कैसे मुँह खोलूँ?
बैठ तुम्हारे निकट
पीर क्या?
हिचक टटोलूँ
श्लथ बाँहों में
गिर सोते
शिशु से भाते हो
मन इनकी
सब पीड़ा हर लो
नवगीत का अंत सामान्य से कुछ भिन्न हुआ क्या? अब आभा जी विचार करें और चाहें तो कथ्य में और भी प्रयोग कर सकती हैं.
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