चंद माहिये
-आनन्द पाठक
जयपुर
:१:
इक अक्स उतर आया
दिल के शीशे में
फिर कौन नज़र आया
:२:
ता उम्र रहा चलता
तेरी ही जानिब
ऎ काश कि तू मिलता
:३:
तुम से न कभी सुलझें
अच्छा लगता है
बिखरी बिखरी जुलफ़ें
:४:
गो दुनिया फ़ानी है
लेकिन जैसी हो
लगती तो सुहानी है
:५:
वो ख़ालिक में उलझे
मजहब के आलिम
इन्सां को नहीं समझे
-आनन्द.पाठक
09413395592
-आनन्द पाठक
जयपुर
:१:
इक अक्स उतर आया
दिल के शीशे में
फिर कौन नज़र आया
:२:
ता उम्र रहा चलता
तेरी ही जानिब
ऎ काश कि तू मिलता
:३:
तुम से न कभी सुलझें
अच्छा लगता है
बिखरी बिखरी जुलफ़ें
:४:
गो दुनिया फ़ानी है
लेकिन जैसी हो
लगती तो सुहानी है
:५:
वो ख़ालिक में उलझे
मजहब के आलिम
इन्सां को नहीं समझे
-आनन्द.पाठक
09413395592
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