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बुधवार, 21 जनवरी 2015

muktak: - sanjiv

मुक्तक:
संजीव 
*
चिंता न करें हाथ-पैर अगर सर्द हैं 
कुछ फ़िक्र न हो चहरे भी अगर ज़र्द हैं 
होशो-हवास शेष है, दिल में जोश है
गिर-गिरकर उठ खड़े हुए, हम ऐसे मर्द हैं.
*
जीत लेंगे लड़ के हम कैसा भी मर्ज़ हो
चैन लें उतार कर कैसा भी क़र्ज़ हो
हौसला इतना हमेशा देना ऐ खुदा!
मिटकर भी मिटा सकूँ मैं कैसा भी फ़र्ज़ हो
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