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बुधवार, 5 नवंबर 2014

dwipadiyan:

द्विपदियाँ :



मैं नर्मदा तुम्हारी मैया, चाहूँ साफ़ सफाई
माँ का आँचल करते गंदा, तुम्हें लाज ना आई?

भरो बाल्टी में जल- जाकर, दूर नहाओ खूब
देख मलिन जल और किनारे, जाओ शर्म से डूब

कपड़े, पशु, वाहन नहलाना, बंद करो तत्काल 
मूर्ति सिराना बंद करो, तब ही होगे खुशहाल

पौध लगाकर पेड़ बनाओ, वंश वृद्धि तब होगी
पॉलीथीन बहाया तो, संतानें होंगी रोगी

दीपदान तर्पण पूजन, जलधारा में मत करना
मन में सुमिरन कर, मेरा आशीष सदा तुम वरना

जो नाले मुझमें मिलते हैं, उनको साफ़ कराओ
कीर्ति-सफलता पाकर, तुम मेरे सपूत कहलाओ

जो संतानें दीन उन्हें जब, लँहगा-चुनरी दोगे
ग्रहण करूँगी मैं, तुमको आशीष अपरिमित दूँगी

वृद्ध अपंग भिक्षुकों को जब, भोजन करवाओगे
तृप्ति मिलेगी मुझको, सेवा सुत से तुम पाओगे 

पढ़ाई-इलाज कराओ किसी का, या करवाओ शादी 
निश्चय संकट टल जाये, रुक जाएगी बर्बादी

पथवारी मैया खुश हो यदि रखो रास्ते साफ़
भारत माता, धरती माता, पाप करेंगी माफ़

हिंदी माता की सेवा से, पुण्य यज्ञ का मिलता
मात-पिता की सेवा कर सुत, भाव सागर से तरता

***
चित्र: तिलवारा घाट जबलपुर, परित्यक्त पुल 

2 टिप्‍पणियां:

Amitabh Tripathi ने कहा…

amitabh.ald@gmail.com [ekavita]

आदरणीय आचार्य जी,
आपकी यह रचना बालोपयोगी साहित्य के लिए बहुत ही अच्छी है बल्कि इसे छोटी कक्षाओं के पाठ्यक्रम में डाला जा सकता है।
समीचीन सन्दर्भों में एक स्वस्थ रचना के लिए बधाई!
सादर
अमित

sanjiv ने कहा…

अमिताभ जी
आपकी गुण ग्राहकता को नमन.
आजकल पाठकों में संवेदनशीलता का भाव सा लगता है. ऐसे में आप जैसे पाठक मित्र उत्साह बढ़ाएं तो आगे लिखने की प्रेरणा मिलती है.