मुक्तक:
अगर हो दोस्ती बेहद तो हद का काम ही क्या है?
करी सर हद न गर सरहद पे, तो फिर नाम ही क्या है?
बिना बीमा कहाँ सीमा?, करे सर सरफ़रोशी तो
न सोचे सर की हद के उस तरफ अंजाम भी क्या है??
*
अगर हो दोस्ती बेहद तो हद का काम ही क्या है?
करी सर हद न गर सरहद पे, तो फिर नाम ही क्या है?
बिना बीमा कहाँ सीमा?, करे सर सरफ़रोशी तो
न सोचे सर की हद के उस तरफ अंजाम भी क्या है??
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