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बुधवार, 5 नवंबर 2014

navgeet:

नवगीत:

धैर्य की पूँजी
न कम हो
मनोबल
घटने न देना

जंग जीवट- जिजीविषा की
मौत के आतंक से है
आस्था की कली कोमल
भेंटती शक-डंक से है

नाव निज
आरोग्य की
तूफ़ान में
डिगने न देना

मूल है किंजल्क का
वह पंक जिससे भागते हम
कमल-कमला को हमेशा
मग्न हो अनुरागते हम
देह ही है
गेह मन का
देह को
मिटने न देना

चिकित्सा सेवा अधिक
व्यवसाय कम है ध्यान रखना
मौत के पंजे से जीवन
बचाये बिन नहीं रुकना
लोभ को,
संदेह को
मन में तनिक
टिकने न देना

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