चित्र-चित्र दोहा:
लौह पुरुष ने हँस किये, पूर्ण लौह संकल्प
दिया नहीं इतिहास ने, उनका कोई विकल्प
नेह नर्मदा-धार ही, जीवन का आधार
अनुशासन के किनारे, मध्य खड़े सरदार
***
भारत माता मूर्त हो, खिला रही संतान
आँखें रहते सूर वह, जो न सका पहचान
लेट आज की गोद, में रोता कल हैरान
कल कैसे पाता कहो, तुम बिन मैं नादान
***
राज पुरोहित सूर्य ने, अधर धरी मुस्कान
उषा-किरण से मांग भर, श्वास करी रस-खान
मिले अमावस-पूर्णिमा, श्वेत-श्याम जब संग
संजीवित निर्जीव हो, नहा रूप की गंग
***
लिखे हथेली पर हिना, जिस अनाम का अनाम
राह देखतीं उसी की, अब तक श्वास तमाम
कहाँ छिपा तू और क्यों?, कर ले दुआ क़ुबूल
चल करती हूँ माफ़ मैं, अब मर करना भूल
***
अलंकार को करें अलंकृत, ऐसे हाथ सलाम करें जब
दिल संजीव न पल में कैसे, कहिए उसके नाम करें हम
मिलन एक दो एक का, बेंदा आँखें हाथ
वरण करे अद्वैत का, भगा द्वैत अनाथ
***
लगुन शगुन शुभ-लाभमय, करे तुम्हें सम्पूर्ण
संजीवित हो श्वास हर, कर हर अंतर चूर्ण
***
लौह पुरुष ने हँस किये, पूर्ण लौह संकल्प
दिया नहीं इतिहास ने, उनका कोई विकल्प
नेह नर्मदा-धार ही, जीवन का आधार
अनुशासन के किनारे, मध्य खड़े सरदार
***
भारत माता मूर्त हो, खिला रही संतान
आँखें रहते सूर वह, जो न सका पहचान
लेट आज की गोद, में रोता कल हैरान
कल कैसे पाता कहो, तुम बिन मैं नादान
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राज पुरोहित सूर्य ने, अधर धरी मुस्कान
उषा-किरण से मांग भर, श्वास करी रस-खान
मिले अमावस-पूर्णिमा, श्वेत-श्याम जब संग
संजीवित निर्जीव हो, नहा रूप की गंग
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लिखे हथेली पर हिना, जिस अनाम का अनाम
राह देखतीं उसी की, अब तक श्वास तमाम
कहाँ छिपा तू और क्यों?, कर ले दुआ क़ुबूल
चल करती हूँ माफ़ मैं, अब मर करना भूल
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अलंकार को करें अलंकृत, ऐसे हाथ सलाम करें जब
दिल संजीव न पल में कैसे, कहिए उसके नाम करें हम
मिलन एक दो एक का, बेंदा आँखें हाथ
वरण करे अद्वैत का, भगा द्वैत अनाथ
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लगुन शगुन शुभ-लाभमय, करे तुम्हें सम्पूर्ण
संजीवित हो श्वास हर, कर हर अंतर चूर्ण
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2 टिप्पणियां:
सुन्दर दोहों के लिए बधाई।
सादर,
विजय निकोर
vijay ji dhanyavad.
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