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शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

सोरठा, सॉनेट, बसंत, नवगीत, विकास, लेख, दोहा, राम, लघुकथा, मुक्तक, फाग, बुंदेली, ऋद्धि छंद,

हास्य 
चाकलेट डे
*
रेल लेट होती रई अब लौं
चाक लेट अब आई।
टीचरनी एक 
पाँच क्लास 
कैसे हो पाए पढ़ाई।
ओन लैन का नाटक कर खें
सबको पास करो रे!
पीढ़ी बने निकम्मी-अनपढ़
मुफ्त राहतें दो रे!
नेता का जयकारा गूँजे
वे बनाएँ सरकार।
उनके बच्चे सेठ अफसर हों
अपने बेरोजगार।
सोरठा सलिला
होकर संत बसंत, बँधा मंजरी-पाश में।
ले आमोद अनंत, शरत चंद्र सँग हँस निशि।।
*
हाथ शब्द-तलवार, ले शांडिल्य नरेश हो।
दे खुद को भी वार, जनगण-मन पर राज्य कर।।
*
ठाकुर नम्र प्रणाम, ठाकुर जी को कर रहा।
आज पड़ा फिर काम, ठकुराइन मुस्कुरा रहीं।
*
कैसे मिले बसंत, कुसुम न हो तो धरा को।
अनथक दिशा-दिगंत, अजय सुरभि से झूमते।।
१०-२-२०२३
***
सॉनेट
बसंत
*
पत्ता पत्ता झूम नाचता।
कूक सारिका लुकती छिपती।
प्रणय ऋचाएँ सुआ बाँचता।।
राह भ्रमर की कलिका तकती।।
धार किनारों से भुज भेंटे।
लहर लहर को गले लगाती।
तितली रूप छटा पर ऐंठे।।
फूल फूल जा गेह भुलाती।।
मन कुलाँच भरता हिरनों सम।
हिरन हुआ होश महुआ का।
हेर राह प्रिय की अँखियाँ नम।।
भेद भूल पुरवा-पछुआ का।।
जप-तप बिसरा, तकें संत जी।
कहाँ अप्सरा है बसंत जी।।
१०-२-२०२२
*
कार्यशाला
इंग्लिश में g अक्षर ग या ज के ध्वनि के लिए प्रयोग कब किया जाता है?
A. G शब्द के अंत में आता है तो उसका उच्चारण ग ही होगा जैसे bag, cog, dog, fog, frog, gong, hog, jog, leg, log, peg, rag, sag, tug.
B. G के बाद अलग अलग अक्षर आने से उच्चारण क्या होगा देखते हैं।
1. Ga ग जैसे game, gal
2. Ge ग जैसे get
3. Ge ज जैसे gem, gel, Germany
4. Gg ग जैसे bigger, nagging, egg
5. Gg ज जैसे exaggerate
6. Gh घ जैसे ghost, aghast
7. Gh फ जैसे laugh
8. Gi ग जैसे give, girl
9. Gi ज जैसे gin, engine
10. Gl ग जैसे glad, glue, English
11. Gn Silent जैसे gnu नू
12. Go ग जैसे go, goal, god
13. Gr ग जैसे gram, grade, group
14. Gu ग जैसे gum, gut, guard, vague
C. G के पहले d आने से dg/dj का उच्चारण ज होगा जैसे judge, adjust
D. D भी कुछ शब्दों में ज का उच्चारण लेता है, जैसे education, graduate, soldier
E. X भी कुछ शब्दों में ग का उच्चारण लेता है, जैसे example.
१०-२-२०२२
***
***
नवगीत
छंद लुगाई है गरीब की
*
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
जिसका जब मन चाहे छेड़े
ताने मारे, आँख तरेरे
लय; गति-यति की समझ न लेकिन
कहे सात ले ले अब फेरे
कैसे अपनी जान बचाए?
जान पडी सांसत में भाई
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
कलम पकड़ कल लिखना सीखा
मठाधीश बन आज अकड़ते
ताल ठोंकते मुख पोथी पर
जो दिख जाए; उससे भिड़ते
छंद बिलखते हैं अनाथ से
कैसे अपनी जान बचाये
इधर कूप उस ओर है खाई
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
यह नवगीती पत्थर मारे
वह तेवरिया लट्ठ भाँजता
सजल अजल बन चीर हर रही
तुक्कड़ निज मरजाद लाँघता
जाँघ दिखाता कुटिल समीक्षक
बचना चाहे मति बौराई
छंद लुगाई है गरीब की
गाँव भरे की है भौजाई
***
लेख:
सतत स्थाई विकास : मानव सभ्यता की प्राथमिक आवश्यकता
*
स्थायी-निरंतर विकास : हमारी विरासत
मानव सभ्यता का विकास सतत स्थाई विकास की कहानी है। निस्संदेह इस अंतराल में बहुत सा अस्थायी विकास भी हुआ है किन्तु अंतत: वह सब भी स्थाई विकास की पृष्ठ भूमि या नींव ही सिद्ध हुआ। विकास एक दिन में नहीं होता, एक व्यक्ति द्वारा भी नहीं हो सकता, किसी एक के लिए भी नहीं किया जाता। 'सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामय:, सर्वे भद्राणु पश्यन्ति, माँ कश्चिद दुःखभाग्भवेद" अर्थात ''सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ्य हों, शुभ देखें सब, दुःख न कहीं हो"का वैदिक आदर्श तभी प्राप्त हो सकता है जब विकास, निरंतर विकास, सबकी आवश्यकता पूर्ति हित विकास, स्थाई विकास होता रहे। ऐसा सतत और स्थाई विकास जो मानव की भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं और उनके समक्ष उपस्थित होने वाले संकटों और अभावों का पूर्वानुमान कर किया जाए, ही हमारा लक्ष्य हो सकता है। सनातन वैदिक चिंतन धारा द्वारा प्रदत्त वसुधैव कुटुम्बकम" तथा 'विश्वैक नीडं' के मन्त्र ही वर्तमान में 'ग्लोबलाइज विलेज' की अवधारणा का आधार हैं।
'सस्टेनेबल डेवलपमेंट अर्थ स्थायी या टिकाऊ विकास से हमारा अभिप्राय विकास ऐसे कार्यों की निरन्तरता से है जो मानव ही नहीं, सकल जीव जंतुओं की भावी पीढ़ियों का आकलन कर, उनकी प्राप्ति सुनिश्चित करते हुए, वर्तमान समय की आवश्यकताएँ पूरी करे। दुर्गा सप्तशतीकार कहता है 'या देवी सर्व भूतेषु प्रकृतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:'। पौर्वात्य चिन्तन प्रकृति को 'माँ' और सभी प्राणियों को उसकी संतान मानता है। इसका आशय यही है कि जैसे शिशु माँ का स्तन पान इस तरह करता है की माँ को कोई नहीं होती, अपितु उसका जीवन पूर्णता पता है, वैसे ही मनुष्य प्रकृति संसाधनों का उपयोग इस कि प्रकृति अधिक समृद्ध हो। भारतीय परंपरा में प्रकृति के अनुकूल विकास की मानता है, प्रकृति के प्रतिकूल विकास की नहीं।'सस्टेनेबल डवलेपमेन्ट कैन ओनली बी इन एकॉर्डेंस विथ नेचर एन्ड नॉट, अगेंस्ट और एक्सप्लोयटिंग द नेचर।'
प्रकृति माता - मनुष्य पुत्र
स्वयं को प्रकृति पुत्र मानने की अवधारणा ही पृथ्वी, नदी, गौ और भाषा को माता मानने की परंपरा बनकर भारत के जान-जन के मन में बसी है। गाँवों में गरीब से गरीब परिवार भी गाय और कुत्ते के लिए रोटी बनाकर उन्हें खिलाते हैं। देहरी से भिक्षुक को खाली हाथ नहीं लौटाते। आंवला, नीम, पीपल, बेल, तुलसी, कमल, दूब, महुआ, धान, जौ, लाई, आदि पूज्यनीय हैं। नर्मदा ,गंगा, यमुना, क्षिप्रा आदि नदियाँ पूज्य हैं। नर्मदा कुम्भ, गंगा दशहरा, यमुना जयंती आदि पर्व मनाये जाते हैं। पोला लोक पर्व पोला पर पशुधन का पूजन किया जाता है। आँवला नवमी, तुलसी जयंती आदि लोक पर्व मनाये जाते हैं। नीम व जासौन को देवी, बेल व धतूरा को शिव, कदंब व करील को कृष्ण, कमल व धान को लक्ष्मी, हरसिंगार को विष्णु से जोड़कर पूज्यनीय कहा गया है। यही नहीं पशुओं और पक्षियों को भी देवी-देवताओं से संयुक्त किया गया ताकि उनका शोषण न कर, उनका ध्यान रखा जाए। बैल, सर्प व नीलकंठ को शिव, शेर व बाघ को देवी, राजहंस व मोर को सरस्वती, हाथी को लक्ष्मी, मोर को कृष्ण आदि देवताओं के साथ संबद्ध बताया गया ताकि उनका संरक्षण किया जाता रहे। यही नहीं हनुमान जी को वायु, लक्ष्मी जी को जल, पार्वती जी को पर्वत, सीता जी भूमि की संतान कहा गया ताकि जन सामान्य इन प्राकृतिक तत्वों तत्वों की शुद्धता और सीमित सदुपयोग के प्रति सचेष्ट हो।
विश्व रूपांतरण : युग की महती आवश्यकता
हम पृथ्वी को माता मानते है और सतत विकास सदैव हमारे दर्शन और विचारधारा का मूल सिद्धांत रहा है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक मोर्चों पर कार्य करते हुए हमें महात्मा गांधी की याद आती है, जिन्होंने हमें चेतावनी दी थी कि धरती प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकती है, पर प्रत्येक व्यक्ति के लालच को नहीं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पारित 'ट्रांस्फॉर्मिंग आवर वर्ल्ड : द 2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट' के संकल्प कोभारत सहित १९३ देशों ने सितंबर, २०१५ में संयुक्त राष्ट्र महासभा की उच्च स्तरीय पूर्ण बैठक में स्वीकार और इसे एक जनवरी, २०१६ से लागू किया। इसे सतत विकास लक्ष्यों के घोषणापत्र के नाम से भी जाना जाता है। सतत विकास का उद्देश्य सबके लिए समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण हेतु विकास में सामाजिक परिवेश, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है। २००० से २०१५ तक के लिए निर्धारित नए लक्ष्यों का उद्देश्य विकास के अधूरे कार्य को पूरा करना और ऐसे विश्व की संकल्पना को मूर्त रूप देना है, जिसमें चुनौतियाँ कम और आशाएँ अधिक हों। भारत विश्व कल्याणपरक विकास के मूलभूत सिद्धांतों को अपनी विभिन्न विकास नीतियों में आराम से ही सम्मिलित करता रहा है। वर्तमान विश्वव्यापी अर्थ संकट के संक्रमण काल में भी विकास की अच्छी दर बनाए रखने में भारत सफल है। गाँधी जी ने 'आखिरी आदमी के भले', विनोबा जी ने सर्वोदय और दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय के माध्यम से निर्धनों को को गरीबी रेखा से ऊपर लाने और निर्बल को सबल बनाने की संकल्पना का विकास किया। वर्ष २०३० तक निर्धनता को समाप्त करने का लक्ष्य हमारा नैतिक दायित्व ही नहीं, शांतिपूर्ण, न्यायप्रिय और चिरस्थायी भारत और विश्व को सुनिश्चित करने के लिए अनिवार्य प्राथमिकता भी है।
सतत विकास कार्यक्रम : लक्ष्य
वित्तीय लक्ष्य:
विकसित देश सरकारी विकास सहायत का अपना लक्ष्य प्राप्त कर, अपनी सकल राष्ट्रीय आय का ०.७%० विकासशील देशों को तथा ०.१५% से ०.२०% सबसे कम विकसित राष्ट्रों को दें। विकासशील देश एकाधिक स्रोत से साधन जुटाएँ तथा समन्वित नीतियों द्वारा दीर्घिकालिक ऋण संवहनीयता प्राप्त कर अत्यधिक ऋणग्रस्त निर्धन देशों पर ऋण बोझ कम कर निवेश संवर्धन को करें।
तकनीकी लक्ष्य:
विकसित, विकासशील व् अविकसित देशों के मध्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी, तकनालोजी व नवाचार सुलभ कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। वैश्विक तकनॉलॉजी तंत्र का विकास करना। परस्पर सहमति पर रियायती और वरीयता देते हुए हितकारी शर्तों पर पर्यावरण अनुकूल तकनोलॉजी का विकास, हस्तांतरण, प्रसार व् समन्वय करना। तकनोलॉजी बैंक बनाकर सामर्थ्यवान तकनोलॉजी का प्रयोग बढ़ाना।
क्षमता निर्माण तथा व्यापार :
विकाशील देशों में लक्ष्य क्षमता निर्माण कर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना। राष्ट्रीय योजनाओं को समर्थन दिलाना। विश्व व्यापार संगठन के अन्तर्गत सार्वभौम, नियमाधारित, भेदभावहीन, खुली और समान बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को प्रोत्साहित करना। विकासशील देशों के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि कर, सबसे कम देशों की भागीदारी दोगुनी करना। सबसे कम विकसित देशों को शुल्क और कोटा मुक्त बाजार प्रवेश सुविधा देना, पारदर्शी व् सरल व्यापार नियम बनाकर बाजार में प्रवेश सरल बनाना।
नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य:
सतत विकास हेतु वैश्विक वृहद आर्थिक स्थिरता वृद्धि हेतु नीतिगत-संस्थागत सामंजस्य बनाना। गरीबी मिटाने हेतु पारस्परिक नीतिगय क्षमता और नेतृत्व का सम्मान करना। सभी देशों के साथ सतत विकास लक्ष्य पाने में सहायक बहुहितकारी भागीदारियाँ कर विशेषज्ञता, तकनोलॉजी, तहा संसाधन जुटाना। प्रभावी सार्वजनिक व् निजी संसाधन जुटाना। सबसे कम विकसित, द्वीपीय व विकासशील देशों के लिए क्षमता निर्माण समर्थन बढ़ाना। २०३० तक सकल घेरलू उत्पाद के पूरक प्रगति के पैमाने विकसित करना।
स्थायी विकास लक्ष्य : केंद्र के प्रयास
सतत् विकास लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए खरबों डॉलर के निजी संसाधनों की काया पलट ताकत जुटाने, पुनःनिर्देशित करने और बंधन मुक्‍त करने हेतु तत्‍काल कार्रवाई करने, विकासशील देशों में संवहनीय ऊर्जा, बुनियादी सुविधाओं, परिवहन - सूचना - संचार प्रौद्योगिकी आदि महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश सहित दीर्घकालिक निवेश जुटाने के साथ सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिए एक स्‍पष्‍ट दिशा निर्धारित करनी है। इस हेतु सहायक समीक्षा व निगरानी तंत्रों के विनियमन और प्रोत्‍साहक संरचनाओं हेतु नए साधन जुटाकर निवेश आकर्षित कर सतत विकास को पुष्‍ट करना प्राथमिक आवश्यकता है। सर्वोच्‍च ऑडिट संस्‍थाओं, राष्‍ट्रीय निगरानी तंत्र और विधायिका द्वारा निगरानी के कामकाज को अविलंब पुष्‍ट किया जाना है। हमारे मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी बचाओ-बेटी पढाओ, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, प्रधानमंत्री ग्रामीण और शहरी आवास योजना, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, डिजिटल इंडिया, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना, स्किल इंडिया और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना शामिल हैं। इसके अलावा अधिक बजट आवंटनों से बुनियादी सुविधाओं के विकास और गरीबी समाप्त करने से जुड़े कार्यक्रमों को बढ़ावा दिया जा रहा है। केंद्र सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन पर निगरानी रखने तथा इसके समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा प्रस्तावित संकेतकों की वैश्विक सूची से उपयोगी संकेतकों की पहचान कर राष्ट्रीय संकेतक तैयार करने का कार्य सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय को सौंपा है।न्यूयार्क में जुलाई, २०१७ में आयोजित होने वाले उच्च स्तरीय राजनीतिक मंच (एचएलपीएफ) पर अपनी पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (वीएनआर) प्रस्तुत कर भारत सरकार ने सतत विकास लक्ष्यों के सफल कार्यान्वयन को सर्वोच्च महत्व दिया है।
राज्यों की भूमिका :
भारत के संविधान केंद्रों और राज्यों के मध्य राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक शक्ति संतुलन के अनुरूप राज्यों में विभिन्न राज्य स्तरीय विकास योजनायें कार्यान्वित की जा रही हैं। इन योजनाओं का सतत विकास लक्ष्यों के साथ तालमेल है। केंद्र और राज्य सरकारों को सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन में आनेवाली विभिन्न चुनौतियों का मुकाबला मिलकर करना है। भारतीय संसद विभिन्न हितधारकों के साथ सतत विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए सक्रिय है। अध्यक्षीय शोध कदम (एसआरआई) सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सांसदों और विशेषज्ञों के मध्य विमर्श हेतु है। नीति आयोग सतत विकास लक्ष्यों पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर परामर्श शृंखलाएं आयोजित कर विशेषज्ञों, विद्वानों, संस्थाओं, सिविल सोसाइटियों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और केंद्रीय मंत्रालयों राज्य सरकारों व हितधारकों के साथ गहन विचार-विमर्श कर रहा है। पर्यावरण संरक्षण व संपूर्ण विकास हेतु जन आकांक्षा पूर्ण करने हेतु राष्ट्रीय, राज्यीय, स्थानीय प्रशासन तथा जन सामान्य द्वारा सतत समन्वयकर कार्य किये जा रहे हैं।
जन सामान्य की भूमिका :
भारत के संदर्भ में दृष्टव्य है कि सतत स्थाई कार्यक्रमों की प्रगति में जान सामान्य की भूमिका नगण्य है। इसका कारण उनका समन्वयहीन धार्मिक-राजनैतिक संगठनों से जुड़ाव, प्रशासन तंत्र में जनमत और जनहित के प्रति उपेक्षा, व्यापारी वर्ग में येन-केन-प्रकारेण अधिकतम लाभार्जन की प्रवृत्ति तथा संपन्न वर्ग में विपन्न वर्ग के शोषण की प्रवृत्ति का होना है। किसी लोकतंत्र में सब कुछ तंत्र के हाथों में केंद्रित हो तो लोक निराशा होना स्वाभाविक है। सतत विकास नीतियाँ गाँधी के 'आखिरी आदमी' अर्थात सबसे कमजोर को उसकी योग्यता और सामर्थ्य के अनुरूप आजीविका साधन उपलब्ध करा सकें तभी उनकी सार्थकता है। सरकारी अनुदान आश्रित जनगण कमजोर और तंत्र द्वारा शोषित होता है। भारत के राजनीतिक नेतृत्व को दलीय हितों पर राष्ट्रीय हितों को वरीयता देकर राष्ट्रोन्नयनपरक सतत विकास कार्यों में परस्पर सहायक होना होगा तभी संविधान की मंशा के अनुरूप लोकहितकारी नीतियों का क्रियान्वय कर मानव ही नहीं, समस्त प्राणियों और प्रकृति की सुरक्षा और विकास का पथ प्रशस्त सकेगा।
===
दोहा सलिला
आओ यदि रघुवीर
*
गले न मिलना भरत से, आओ यदि रघुवीर
धर लेगी योगी पुलिस, मिले जेल में पीर
कोरोना कलिकाल में, प्रबल- करें वनवास
कुटिया में सिय सँग रहें, ले अधरों पर हास
शूर्पणखा की काटकर, नाक धोइए हाथ
सोशल डिस्टेंसिंग रखें, तीर मारकर नाथ
भरत न आएँ अवध में, रहिए नंदीग्राम
सेनेटाइज शत्रुघन, करें- न विधि हो वाम
कैकई क्वारंटाइनी, कितने करतीं लेख
रातों जगें सुमंत्र खुद, रहे व्यवस्था देख
कोसल्या चाहें कुसल, पूज सुमित्रा साथ
मना रहीं कुलदेव को, कर जोड़े नत माथ
देवि उर्मिला मांडवी, पढ़ा रहीं हैं पाठ
साफ-सफाई सब रखें, खास उम्र यदि साठ
श्रुतिकीरति जी देखतीं, परिचर्या हो ठीक
अवधपुरी में सुदृढ़ हो, अनुशासन की लीक
तट के वट नीचे डटे, केवट देखें राह
हर तब्लीगी पुलिस को, सौंप पा रहे वाह
मिला घूमता जो पिटा, सुनी नहीं फरियाद
सख्ती से आदेश निज, मनवा रहे निषाद
निकट न आते, दूर रह वानर तोड़ें फ्रूट
राजाज्ञा सुग्रीव की, मिलकर करो न लूट
रात-रात भर जागकर, करें सुषेण इलाज
कोरोना से विभीषण, ग्रस्त विपद में ताज
भक्त न प्रभु के निकट हों, रोकें खुद हनुमान
मास्क लगाए नाक पर, बैठे दयानिधान
कौन जानकी जान की, कहो करे परवाह?
लव-कुश विश्वामित्र ऋषि, करते फ़िक्र अथाह
वध न अवध में हो सके, कोरोना यह मान
घुसा मगर आदित्य ने, सुखा निकली जान
१०-२-२०२१
***
लघुकथा :
सवाल
शेरसिंह ने दुनिया का सर्वाधिक प्रभावी नेता तथा सबसे अधिक सुरक्षित जंगल बनाने का दावा कर चुनाव जीत लिया। जिन जगहों से उसका दल हारा। वहीं भीषण दंगा हो गया। अनेक छोटे-छोटे पशु-पक्षी मारे गए। बाद में हाथी ने बल प्रयोग कर शांति स्थापित की। बगुला भगत टी वी पर परिचर्चा में शासन - प्रशासन का गुणगान करने लगा तो पत्रकार उलूक ने पूछा 'दुनिया का सर्वाधिक असरदार सरदार दंगों के समय सामने क्यों नहीं आया? सबसे अधिक चुस्त-दुरुस्त पुलिस के ख़ुफ़िया तंत्र को हजारों दंगाइयों, सैकड़ों हथियारों तथा दंगे की योजना बनाने की खबर क्यों नहीं मिली? बिना प्रभावी योजना, पर्याप्त अस्त्र-शस्त्र और तैयारी के भेजे गए पुलिस जवानों और अफसरों को हुई क्षति की जिम्मेदारी किसकी है?
अगले दिन सत्ता के टुकड़ों पर पल रहे सियारों ने उस चैनल तथा संबंधित अख़बार के कार्यालयों पर पथराव किया, उनके विज्ञापन बंद कर दिये गए पर जंगल की हवा में अब भी तैर रहे थे सवाल।
१.३.२०२०
*
दोहा मुक्तक
बीत गईँ कितनी ऋतुएँ, बीते कितने साल
कोयल तजे न कूकना, हिरन न बदले चाल
पर्व बसंती हो गया, वैलेंटाइन आज
प्रेम फूल सा झट झरे, सात जन्म कंगाल
***
मुक्तक
४ x यगण
हमारा न होता, तुम्हारा न होता
कभी भी किसी का गुजारा न होता
सुनो बाँह में बाँह थामे दिलों ने
समय जिंदगी का गुजारा न होता
***
ग्यारह मात्रिक छंद
१. पदादि यगण
यही चाहा हमने
नहीं टूटें सपने
शहीदी विरासतें
न भूलें खुद अपने
*
२. पदादि मगण
आओ! लें गले मिल
भाओ तो मिले दिल
सीचेंगे चमन मिल
फूलों सम खिलें दिल
*
३. पदादि तगण
सच्चा बतायें जो
झूठा मिटायें जो
चाहें मिलें नेता
वादे निभायें जो
*
४. पदादि रगण
आपकी चाहों में
आपकी बाँहों में
जिंदगी है पूजा
आपकी राहों में
*
५. पदादि जगण
कहीं नहीं हैवान
कहीं नहीं भगवान
दिखा ह्रदय में झाँक
वहीँ बसा इंसान
*
६. पदादि भगण
आपस में बात हो
रोज मुलाकात हो
संसद में दूरियाँ
व्यर्थ न बेबात हों
*
७. पदादि नगण
सब अधरों पर हास
अब न हँसेंगे ख़ास
हर जन होगा आम
विनत रचें इतिहास
*
८. पदादि सगण
करना मत बहाना
तजना मत ठिकाना
जब तक वयस्क न हो
बिटिया मत बिहाना
*
९. पदांत यगण
हरदम हम बुलाएँ
या आप खुद आयें
कोई न फर्क मानें
१०. पदांत मगण
आस जय बोलेगी
रास रस घोलेगी
प्यास बुझ जाएगी
श्वास चुप हो लेगी
.
मीत! आ जाओ ना
प्रीत! भा जाओ ना
चैन मिल जायेगा
गीत गा जाओ ना
*
११. पदांत तगण
रंगपंचमी पर्व
धूम मचाते सर्व
दीन न कोई जान
भूल, भुला दें गर्व
.
हो मस्ती में लीन
नाच बज रही बीन
वेणी-नागिन झूम
नयन हो रहे मीन
.
बाँके भुज तलवार
करते नहीं प्रहार
सविनय माँगें दान
सुमुखी-भुजा का हार
.
मिले हार हो जीत
मिले प्रीत को प्रीत
द्वैत बने अद्वैत
बजे श्वास संगीत
*
१२. पदांत रगण
गीत प्रीत के सुना
गीत मीत के सुना
हार में न हार हो
जीत में न जीत हो
शुभ अतीत के सुना
गीत रीत के सुना
यार हो, जुहार हो
प्यार हो, विहार हो
नव प्रतीति के सुना
गीत नीति के सुना
हाथ नहीं जोड़ना
साथ नहीं छोड़ना
बातचीत के सुना
गीत जीत के सुना
*
१३. पदांत जगण
जनगण की सरकार
जन संसद दरबार
रीती-नीति-सहयोग
जनसेवा दरकार
देशभक्ति कर आप
रखें स्वच्छ घर-द्वार
पर्यावरण न भूल
पौधारोपण प्यार
धुआँ-शोर अभिशाप
बहे विमल जल-धार
इस पल में इनकार
उस पल में इकरार
नकली है तकरार
कर असली इज़हार
*
१४. पदांत भगण
जिंदगी जलसा घर
बन्दगी जल सा घर
प्रार्थना कर, ना कर
साधना कर ही कर
अर्चना नित प्रति कर
वन्दना हो सस्वर
भावना यदि पवन
कामना से मत डर
कल्पना नवल अगर
मान ले अजरामर
*
१५. पदांत नगण
नटनागर हों सदय
कर दें पल में अभय
शंका हर जग-जनक
कर दें मन को अजय
.
पान कर सकें गरल
हो स्वभाव निज सरल
दान कर सकें अमिय
जग-जीवन हो विमल
.
नेह नर्मदा अमर
जय कट जीवन समर
करे द्वेष अहरण
भरे प्रीत चिर अमर
*
१६. पदांत सगण
पत्थर को फोड़ लें
ईंटों को जोड़ लें
छोड़ें मत राह को
कदमों को मोड़ लें
नाहक क्यों होड़ लें?
मंजिल क्यों छोड़ दें?
डरकर संघर्ष से
मन को क्यों तोड़ लें?
.
सत्य जो हो कहिए
झूठ को मत तहिए
घाट पर रुकिए मत
नर्मदा बन बहिए
रीत नित नव गढ़िए
नीत-पथ पर बढ़िए
सीढ़ियाँ मिल चढ़िए
प्रणय-पोथी पढ़िए
*
१७. पदादि-पदांत यगण
उसे गीत सुनाना
उसे मीत बनाना
तुझे चाह रहा जो
उसे प्रीत जताना
.
सुनें गीत सुनाएँ
नयी नीत बनायें
नहीं दर्द जरा हो
लुटा दें सुख पायें
*
१८. पदादि यगण, पदांत मगण
हमें ही है आना
हमें ही है छाना
बताता है नेता
सताता है नेता
*
१९. पदादि मगण पदांत यगण
चाहेंगे तुम्हें ही
वादा है हमारा
भाए हैं तुम्हें भी
स्वप्नों में पुकारा
*
२०. पदादि मगण पदांत तगण
सारे-नारे याद
नेता-प्यादे याद
वोटों का है खेल
वोटर-वादे याद
***
कुंडली
कितने मौसम बिताये, रीते कितने वर्ष
जन-मन ने जाना नहीं, कैसा होता हर्ष?
कैसा होता हर्ष, न्याय अन्यायपरक है
जनगण सहता दर्द, न किंचित पड़ा फरक है
दिल पर चोटें लगीं, घाव खाए हैं इतने
सुमुखि-शीश पर शेष केश हैं श्यामल जितने
१०-२-२०१७
***
गीत
संभावना की फसल
*
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
*
देव को दे दोष
नाहक भाग्य को कोसा।
हाथ पर धर हाथ
जब-जब ख्वाब को पोसा।
बिना कोशिश, किस तरह
मंज़िल करे बोसा?
बाँधकर मुट्ठी कदम
पथ पर बढ़ायें।
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
*
दर्द तेरा बने
मेरी आँख का आँसू।
श्वास का हो, आस से
रिश्ता तभी धाँसू।
सोचता मन व्यर्थ ही
कैसे-किसे फाँसू?
सर्वार्थ सलिला छोड़
मछली फड़फड़फड़ायें।
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
*
झोपड़ी में, राज-
महलों में न अंतर।
परिश्रम का फूँक दो
कानों में मंतर।
इत्र समता का करे
मन-प्राण को तर-
मीत! ममता-गीत
मन-मन गुनगुनायें।
सम्भावना की फसल
बंजर में उगायें।
१०-२-२०१६
***
प्रयोगात्मक नवगीत:
कौन चला वनवास रे जोगी?
*
कौन चला
वनवास रे जोगी?
अपना ही
विश्वास रे जोगी.
*
बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो
मिट न सकेगी
प्यास रे जोगी.
*
भू -मंगल तज, मंगल-भू की
खोज हुई
उपहास रे जोगी.
*
फिक्र करे हैं सदियों की, क्या
पल का है
आभास रे जोगी?
*
गीता वह कहता हो जिसकी
श्वास-श्वास में
रास रे जोगी.
*
अंतर से अंतर मिटने का
मंतर है
चिर हास रे जोगी.
*
माली बाग़ तितलियाँ भँवरे
माया है
मधुमास रे जोगी.
*
जो आया है वह जायेगा
तू क्यों हुआ
उदास रे जोगी.
*
जग नाकारा समझे तो क्या
भज जो
खासमखास रे जोगी.
*
राग-तेल, बैराग-हाथ ले
रब का 'सलिल'
खवास रे जोगी.
*
नेह नर्मदा नहा 'सलिल' सँग
तब ही मिले
उजास रे जोगी.
***
दिल्ली दंगल एक विश्लेषण:
.
- सत्य: आप व्यस्त, बीजेपी त्रस्त, कोंग्रेस अस्त.
= सबक: सब दिन जात न एक समान, जमीनी काम करो मत हो संत्रस्त.
- सत्य: आम चुनाव के समय किये वायदों को राजनैतिक जुमला कहना.
= सबक: ये पब्लिक है, ये सब जानती है. इसे नासमझ समझने के मुगालते में मत रहना.
- सत्य: गाँधी की दुहाई, दस लखटकिया विदेशी सूट पहनकर सादगी का मजाक.
= सबक: जनप्रतिनिधि की पहचान जन मत का मान, न शान न धाक.
- सत्य: प्रवक्ताओं का दंभपूर्ण आचरण और दबंगपन.
= सबक: दूरदर्शनी बहस नहीं जमीनी संपर्क से जीता जाता है अपनापन.
- सत्य: कार्यकर्ताओं द्वारा अधिकारियों पर दवाब और वसूली.
= सबक: जनता रोज नहीं टकराती, समय पर दे ही देती है सूली.
- सत्य: संसदीय बहसों के स्थान पर अध्यादेशी शासन.
= सबक: बंद न किया तो जनमत कर देगा निष्कासन.
- सत्य: विपक्षियों पर लगातार आघात.
= सबक: विपक्षी शत्रु नहीं होता, सौजन्यता न निबाहें तो जनता देगी मात.
- सत्य: आधाररहित व्यक्तित्व को थोपना, जमीनी कार्यकर्ता की पीठ में छुरा घोंपना.
= सबक: नेता उसे घोषित करें जिसका काम जनता के सामने हो, केवल नाम नहीं. जो अपने साथियों के साथ न रहे उसपर मतदाता क्यों भरोसा करे?
- सत्य: संसद ही नहीं टी.व्ही. पर भी बहस से भागना.
= सबक: अध्यादेशों में तानाशाही की आहात होती है. संसद में बहस न करना और दूरदर्शन पर उमीदवार का बहस से बचना, प्रवक्ताओं की अहंकारी और खुद को अंतिम मानने की प्रवृत्ति होती है बचकाना.
- सत्य: प्रवक्ताओं का दंभपूर्ण आचरण और दबंगपन.
= सबक: दूरदर्शनी बहस नहीं जमीनी संपर्क से जीता जाता है अपनापन.
- सत्य: आर एस एस की बैसाखी नहीं आई काम.
= सबक: जनसेवा का न मोल न दाम, करें निष्काम.
- सत्य: पूरा मंत्रीमंडल, संसद, मुख्यमंत्री तथा प्रधान मंत्री को उताराकर अत्यधिक ताकत झोंकना.
= सबक: नासमझी है बटन टाँकने के लिये वस्त्र में सुई के स्थान पर तलवार भोंकना.
- सत्य: प्रधानमंत्री द्वारा दलीय हितों को वरीयता देना, विकास के लिए अपने दल की सरकार जरूरी बताना.
= सबक: राज्य में सरकार किसी भी दल की हो, जरूरी है केंद्र का सबसे समानता जताना. अपना खून औरों का खून पानी मानना सही नहीं.
- सत्य: पूरा मंत्रीमंडल, संसद, मुख्यमंत्री तथा प्रधान मंत्री को उताराकर अत्यधिक ताकत झोंकना.
= सबक: नासमझी है बटन टाँकने के लिये वस्त्र में सुई के स्थान पर तलवार भोंकना.
- सत्य: हर प्रवक्ता, नेता तथा प्रधान मंत्री का केजरीवाल पर लगातार आरोप लगाना.
= सबक: खुद को खलनायक, विपक्षी को नायक बनाना या कंकर को शंकर बनाकर खुद बौना हो जाना.
- सत्य: चुनावी नतीजों का आकलन-अनुमान सत्य न होना.
= सबक: प्रत्यक्ष की जमीन पर अतीत के बीज बोना अर्थात आँख देमने के स्थान पर पूर्व में घटे को अधर बनाकर सोचना सही नहीं, जो देखिये कहिए वही.
- सत्य: आप का एकाधिकार-विपक्ष बंटाढार.
= सबक: अब नहीं कोई बहाना, जैसे भी हो परिणाम है दिखाना. केजरीवाल ने ठीक कहा इतने अधिक बहुमत से डरना चाहिए, अपेक्षा पर खरे न उतरे तो इतना ही विरोध झेलना होगा.

***
गीत
नयन में कजरा
आँज रही है
उतर सड़क पर
नयन में
कजरा साँझ
नीलगगन के
राजमार्ग पर
बगुले दौड़े
तेज
तारे
फैलाते प्रकाश
तब चाँद
सजाता सेज
भोज चाँदनी के
संग करता
बना मेघ
को मेज
सौतन ऊषा
रूठ गुलाबी
पी रजनी
संग पेज
निठुर न रीझा-
चौथ-तीज के
सारे व्रत
भये बाँझ
निष्ठा हुई
न हरजाई
है खबर
सनसनीखेज
संग दीनता के
सहबाला
दर्द दिया
है भेज
विधना बाबुल
चुप, क्या बोलें?
किस्मत
रही सहेज
पिया पिया ने
प्रीत चषक
तन-मन
रंग दे रंगरेज
आस सारिका
गीत गये
शुक झूम
बजाये झाँझ
साँस पतंगों
को थामे
आसें
हंगामाखेज
प्यास-त्रास
की रास
हुलासों को
परिहास- दहेज़
सत को
शिव-सुंदर से
जाने क्यों है
आज गुरेज?
मस्ती, मौज_
मजा सब चाहें
श्रम से
है परहेज
बिना काँच
लुगदी के मंझा
कौन रहा
है माँझ?
***
दोहा सलिला:
योगी राज न चाहते, करें घोषणा रोज
हुई चाहना वर्जना, क्यों कुछ तो हो खोज?
.
मंजुल मूरत देखकर, हुए पुजारी मुग्ध
हाथ आरती पर पड़ा, ह्रदय हो गया दग्ध
.
आप आप को कोसकर, किरण हुई बदनाम
सत्तर लखिया सूट से, बिगड़ गया सब काम
.
निधि पाए किस विधि सकल, दुनिया सोचे आज?
सिंह गर्जना सुन भगे, क्षमा करें वनराज
.
पंद्रह लाख मिला नहीं, थके देखते राह
जनमत होली मनाता, आश्वासन को दाह
.
***
नवगीत:
लोकतंत्र का
एक तकाजा
सकल प्रजा मिल
चुनती राजा
.
लाख रहें मत-भेद मगर
मन-भेद न किंचित होने देना
दुश्मन नहीं विपक्षी होता
मत विश्वास टूटने देना
लटके-झटके जो चुनाव के
बरखा जल सम उन्हें बहाओ
सद्भावों की धुप सुनहरी
सहयोगी चन्द्रिका उगाओ
कोई जीते
कोई हारे
जनमत जयी
बजाये बाजा
.
जन-प्रतिनिधि सेवक जनता का
दे परिचय अपनी क्षमता का
सबके साथ समान नीति हो
गैर न कोई स्वस्थ रीति हो
सुविधा-अधिकारों को तजकर
देश बनायें सब हिल-मिलकर
कोई भी विचार या दल हो
लक्ष्य एक: निर्बल का बल हो
मिलकर साथ
लड़ें दुश्मन से
ललकारें मिल:
आ जा, आ जा
.
राष्ट्र-देवता! सभी अभय हों
राष्ट्र-लक्ष्मी! सदा सदय हों
शक्ति-शारदा हो हर बिटिया
निर्मल नीर भरी हर नदिया
पर्वत हो आच्छादित तम से
नभ गुंजित हो ‘जन गण मन’ से
दसों दिशाओं ने उच्चारा
‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’
राजा बने
प्रजा का सेवक
आम आदमी
हो अब राजा
९.२.२०१५
***
मुक्तिका:
जब जग मुझ पर झूम हँसा
मैं दुनिया पर ठठा हँसा
जिसको दूध पिला पाला
उसने मौक़ा खोज डंसा
दौड़ लगी जब सत्ता की
जिसको मौक़ा मिला ठंसा
जब तक मिली न चाह रही
मिली, यूं लगा व्यर्थ फँसा
जीत महाभारत लेता
चका भूमि में मगर धँसा
***
फाग-नवगीत
.
राधे! आओ, कान्हा टेरें
लगा रहे पग-फेरे,
राधे! आओ कान्हा टेरें
.
मंद-मंद मुस्कायें सखियाँ
मंद-मंद मुस्कायें
मंद-मंद मुस्कायें,
राधे बाँकें नैन तरेरें
.
गूझा खांय, दिखायें ठेंगा,
गूझा खांय दिखायें
गूझा खांय दिखायें,
सब मिल रास रचायें घेरें
.
विजया घोल पिलायें छिप-छिप
विजया घोल पिलायें
विजय घोल पिलायें,
छिप-छिप खिला भंग के पेड़े
.
मलें अबीर कन्हैया चाहें
मलें अबीर कन्हैया
मलें अबीर कन्हैया चाहें
राधे रंग बिखेरें
***
बुंदेली गीत
संसद बैठ बजावैं बंसी
*
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.
कपरा पहिरे फिर भी नंगो, राजनीति को छोरो….
*
कुरसी निरख लार चुचुआवै, है लालच खों मारो.
खाद कोयला सक्कर चैनल, खेल बनाओ चारो.
आँख दिखायें परोसी, झूलै अम्बुआ डार हिंडोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
सिस्ताचार बिसारो, भ्रिस्ताचार करै मतवारो.
कौआ-कज्जल भी सरमावै, मन खों ऐसो कारो.
परम प्रबीन स्वार्थ-साधन में, देसभक्ति से कोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
बनो भिखारी बोट माँग खें, जनता खों बिसरा दओ.
फांस-फांस अफसर-सेठन खों, लूट-लूट गर्रा रओ.
भस्मासुर है भूख न मिटती, कूकुर सदृश चटोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
चोर-चोर मौसेरे भैया, मठा-महेरी सांझी.
संगामित्ती कर चुनाव में, तरवारें हैं भांजी.
नूरा कुस्ती कर भरमावै, छलिया भौत छिछोरो
संसद बैठ बजावैं बंसी, नेता महानिगोरो.....
*
बोट काय दौं मैं कौनौ खों, सबके सब दल लुच्चे।
टिकस न दैबें सज्जन खों, लड़ते चुनाव बस लुच्चे.
ख़तम करो दल, रास्ट्रीय सरकार चुनो, मिल टेरो
संसद बैठ बजावैं बंसी नेता महानिगोरो.....
१०-२-२०१५
***
छंद सलिला:
ऋद्धि छंद
*
(अब तक प्रस्तुत छंद: अग्र, अचल, अचल धृति, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, एकावली, कीर्ति, घनाक्षरी, छवि,
जाया,
तांडव, तोमर, दीप, दोधक, निधि, प्रेमा, बाला, मधुभार, माया, माला, ऋद्धि, रामा, लीला, वाणी, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शिव, शुभगति, सार, सुगति, सुजान, हंसी)
*
दो पदी, चार चरणीय, ४४ वर्ण, ६९ मात्राओं के मात्रिक ऋद्धि छंद में प्रथम- तृतीय-चतुर्थ चरण उपेन्द्र वज्रा छंद के तथा द्वितीय चरण इंद्र वज्रा छंद के होते हैं.
उदाहरण:
१. करो न बातें कुछ काम भी हो, यों ही नहीं नाम मिला किसी को
चलो करें काम न सिर्फ बातें, बढ़ो न भूलो निज लक्ष्य साथी
२. चुनाव कैसे करेगी जनता, गुंडे मवाली ही हों खड़े तो?
न दो किसी को मत आप भाई, भगा उन्हें दो दर से- न रोको
३. बना खिलोने खुश हो विधाता, देखे करे क्या कब कौन कैसा?
उठो लिखेंगे खुद किस्मतें भी, पुजे हमारा श्रम देवता सा
१०-२-२०१४
***
नव गीत
*
जीवन की
जय बोल,
धरा का दर्द
तनिक सुन...
तपता सूरज
आँख दिखाता,
जगत जल रहा.
पीर सौ गुनी
अधिक हुई है,
नेह गल रहा.
हिम्मत
तनिक न हार-
नए सपने
फिर से बुन...
निशा उषा
संध्या को छलता
सुख का चंदा.
हँसता है पर
काम किसी के
आये न बन्दा...
सब अपने
में लीन,
तुझे प्यारी
अपनी धुन...
महाकाल के
हाथ जिंदगी
यंत्र हुई है.
स्वार्थ-कामना ही
साँसों का
मन्त्र मुई है.
तंत्र लोक पर,
रहे न हावी
कर कुछ
सुन-गुन...
१०-२-२०१०
***

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