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सोमवार, 20 फ़रवरी 2023

दोहा

छंदशाला 

दोहा लिखना सीखिए 

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दोहा छंदों का राजा है। मानव जीवन को जितना प्रभावित दोहा ने किया उतना किसी भाषा के किसी छंद ने कहीं-कभी नहीं किया। 

दोहा में दो पंक्तियाँ होती हैं. हर पंक्ति में दो चरण होते हैं. पहले-तीसरे चरण में १३-१३ मात्राएँ (१२ या १४ कदापि नहीं) तथा दूसरे-चौथे चरण में ११-११ (१० या १२ कदापि नहीं) मात्राएँ होती हैं। इस प्रकार हर पंक्ति में १३+११ कुल २४ मात्राएँ होती हैं। तेरह मात्राओं के बाद जो क्षणिक ठहराव या विराम होता है उसे यति कहा जाता है। दोहा में १३, ११ मात्राओं पर यति अपरिहार्य है। यदि यह यति ११-१३ या १२-१२ पर हो तो वह दोहा नहीं रह जाएगा। 
दोहा की दोनों पंक्तियों अर्थात सम चरणों के के अंत में गुरु लघु मात्रा होना जरूरी है। दोहा के पंक्त्यांत में गुरु मात्रा नहीं हो सकती।  
मात्रा गणना: 
हिंदी में स्वरों तथा व्यंजनों के उच्चारण काल के आधार पर उन्हें लघु / छोटा (कम उच्चारण काल) या गुरु, दीर्घ या बड़ा (अधिक उच्चारण काल) वर्गीकृत किया गया है. 
लघु मात्रा : अ, इ, उ, ऋ।  
गुरु मात्रा : आ, ई, ऊ, ए, ऐ, अं, अ:, संयुक्त अक्षर क्त, क्ख, ग्य, र्य आदि। 
संयुक्त अक्षर का आधा अक्षर अपने पहलेवाले अक्षर के साथ उच्चारित होता है। इसलिए पहले वाले लघु अक्षर को गुरु कर देता है किन्तु पूर्व में गुरु अक्षर हो तो आधे अक्षर का कोई प्रभाव नहीं होता।
उक्त = उक् + त = २ + १ =३ 
विज्ञ = विग् + य = २ + १ =३ 
आप्त = आप् + त = २ + १ = ३ 
दोहा के विषम चरण में एक शब्द में जगण अर्थात जभान = १२१ वर्जित है। इस संबंध में विविध ग्रंथों में मत वैभिन्न्य है। कहीं विषम चरण के आरंभ में कहीं अंत में, कहीं पूरे विषम चरण में जगण को वर्जित कहा गया है।इसका कारण संभवत: जगण से लय भंग होना है।  प्रसिद्ध दोहाकारों के प्रसिद्ध दोहों में जगण पाये जाने के बाद भी इस मान्यता को अधिकांश दोहाकार मानते हैं। 
गण की जानकारी: गण का सूत्र 'यमाताराजभानसलगा' है।  सूत्र के पहले ८ अक्षर गण का संकेत करते हैंहै। गण का नाम प्रथमाक्षर के साथ अगले दो अक्षर जोड़कर बनता है। गण-नाम के ३ अक्षर मात्राओं का संकेत करते हैं, जिनसे लयखंड बनता है। 

गण नाम             गण सूत्र                गण मात्रा        उदाहरण 
य गण                 यमाता                 १२२=५              हमारा  
म गण               मातारा               २२२=६            व्यापारी  
त गण               ताराज                २२१=५            स्वीकार 
र गण               राजभा                २१२=५             कायदा 
ज गण              जभान                 १२१=४             निशान 
भ गण              भानस                 २११=४              चंदन 
न गण              नसल                  १११=३               नमन 
स गण              सलगा                 ११२=४              बलमा   

य गण, म गण, र गण, तथा सगण के अंत में गुरु मात्रा है। अतः, इन्हें दोहा के सम चरण अथवा पंक्ति के अंत में प्रयोग नहीं किया जा सकता। 

दोहा के दरबार में, रस वर्षण हो खूब।  
लिख-सुनकर आनंद हो, जाएँ सुख में डूब 
हँस दोहे से प्रीत कर, बन दोहे का मीत
मन दोहे का मान रख, यही सृजन की रीत 
शेष छंद हैं सभासद, दोहा छंद-नरेश 
तेइस विविध प्रकार हैं, दोहाकार अशेष 

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