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गुरुवार, 12 नवंबर 2020

दोहा सलिला

 दोहा सलिला 

मैं औ' मेरी डायरी, काया-छाया संग
कहने को हैं दो मगर, 'सलिल'एक है रंग
*
अनपढ़ पढ़ता अनलिखा, समझ-बूझ चुपचाप
जीवन पुस्तक है बडी, अक्षर-अक्षर आप
*
छठ पूजन कर एक दिन, शेष दिवस नाबाद
दूध छठी का कराती, गृहस्वामी को याद
*
हरछठ पर 'हऱ' ने किए, नखरे कई हजार
'हिज़' बेचारा उठाता, नखरे बाजी हार
*
नाक-शीर्ष से सर तलक, भरी देख ले माँग
माँग न पूरी की अगर, बच न सकेगी टाँग
*
'मी टू' छठ का व्रत रही, तू न रहा क्यों बोल?
ढँकी न अब रह सकेगी, खोलेगी वह पोल
*
माँग नहीं जिसकी भरी, रही एक वर माँग
माँग भरे वह कर सके, जो पूरी हर माँग
*

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