सिगरेट
संजीव
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गम सुलगते रहे, दर्द अंगुली हुए
मुफलिसी में बिताई जो ज़िंदगी सिगरेट है.
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गम सुलगते रहे, दर्द अंगुली हुए
मुफलिसी में बिताई जो ज़िंदगी सिगरेट है.
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आशिक़ी सिगरेट की लत, छुड़ाए छूटे नहीं
सुकूं देती एक पल को, ज़िंदगी बर्बाद कर
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फूँकता तुझको रहा, तू फूँकती मुझको रही
जेब खाली स्याह लब, सिगरेट तूने कर दिए
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ज़िंदगी है राखदानी, हौसले हैं राख सब
कोशिशें सिगरेट जैसे, सुलग दिल सुलगा गईं
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२१-११-२०२०
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