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प्रिय बिटिया! नव खुशियाँ लाईं, महक गया आँगन-घर
पुरखों के आशीष फले, खुशियाँ उतरीं धरती पर
चहक उठी श्वासों की चिड़िया, आस कली मुस्काई
तुहिना आई साथ बहारें अनगिन सपने लाई
सफल साधना हुई शांति पा आशा पुष्पा फूली
स्नेह किरण सुषमा डोरी पर नव अभिलाषा झूली
वामन पग, नन्हें कर, सपने अगिन लिए थे नैना
मुस्काते अधरों पर सज्जित, कोकिल मीठे बैना
सुनी प्रार्थना प्रभु ने, मन्वन्तर ने बहिना पाई
अचल अर्चना, विनत वंदना संध्या की अरुणाई
राज बहादुर ही करते, बब्बा ने तुम्हें बताया
सत्य सहाय श्रमी का होता, नाना से समझाया
तुममें शारद रमा उमा की झलक नर्मदा हो तुम
भू पर पग रख गगन छू सको वरदा शुभदा हो तुम
तुममें हम हैं, हममें तुम हो, संजीवित हैं सपने
नेह नर्मदा सलिल सरीखे निर्मल नाते अपने
जो चाहो वह पाओ बिटिया! सुख-समृद्धि-संतोष
कभी न रीते किंचित वैभव-कीर्ति-सफलता कोष
शतवर्षी होने तक रहना सक्रिय-स्वस्थ्य हमेश
हर अभिलाषा पूरी हो, पाना न रहे कुछ शेष
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