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बुधवार, 22 मार्च 2017

doha

दोहा पंचक
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उसको ही रस-निधि मिले, जो होता रस-लीन। 
 पान न रस का अन्य को, करने दे रस-हीन।। 
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सलिल साधना स्नेह की, सच्ची पूजा जान।
प्रति पल कर निष्काम तू, जीवन हो रस-खान।।
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शब्द-शब्द अनुभूतियाँ, अक्षर-अक्षर भाव।
नाद, थाप, सुर, ताल से, मिटते सकल अभाव।।
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रास न रस बिन हो सखे!, दरस-परस दे नित्य।
तरस रहा मन कर सरस, नीरस रुचे न सत्य।।
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सावन-फागुन कह रहे, लड़े न मन का मीत।
गले मिले, रच कुछ नया, बढ़े जगत में प्रीत।।
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