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शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

राखी पर विशेष रचना: पर्व नव सद्भाव के --संजीव 'सलिल'

राखी पर विशेष रचना: 
पर्व नव सद्भाव के










संजीव 'सलिल'
*
हैं आ गये राखी कजलियाँ, पर्व नव सद्भाव के.
सन्देश देते हैं न पकड़ें, पंथ हम अलगाव के..

भाई-बहिन सा नेह-निर्मल, पालकर आगे बढ़ें.
सत-शिव करें मांगल्य सुंदर, लक्ष्य सीढ़ी पर चढ़ें..

शुभ सनातन थाती पुरातन, हमें इस पर गर्व है.
हैं जानते वह व्याप्त सबमें, प्रिय उसे जग सर्व है..

शुभ वृष्टि जल की, मेघ, बिजली, रीझ नाचे मोर-मन.
कब बंधु आये? सोच प्रमुदित, हो रही बहिना मगन..

धारे वसन हरितिमा के भू, लग रही है षोडशी.
सलिला नवोढ़ा नारियों सी, कथा है नव मोद की..

शालीनता तट में रहें सब, भंग ना मर्याद हो.
स्वातंत्र्य उच्छ्रंखल न हो यह,  मर्म सबको याद हो..

बंधन रहे कुछ तभी तो हम, गति-दिशा गह पायेंगे.
निर्बंध होकर गति-दिशा बिन, शून्य में खो जायेंगे..

बंधन अप्रिय लगता हमेशा, अशुभ हो हरदम नहीं.
रक्षा करे बंधन 'सलिल' तो, त्याज्य होगा क्यों कहीं?

यह दृष्टि भारत पा सका तब, जगद्गुरु कहला सका.
रिपुओं का दिल संयम-नियम से, विजय कर दहला सका..

इतिहास से ले सबक बंधन, में बंधें हम एक हों.
संकल्प कर इतिहास रच दें, कोशिशें शुभ नेक हों..

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टिप्पणी: हरिगीतिका मुक्त मात्रिक छंद,  
दो पद, चार चरण,१६-१२ पर यति.
सूत्र: हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका.
हरिगीतिका है छंद मात्रिक, पद-चरण दो-चार हैं.
सोलह और बारह कला पर, रुक-बढ़ें यह सार है.

3 टिप्‍पणियां:

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


आ० आचार्य जी,
हरगीतिका छन्द में राखी के महत्व का सुन्दर वर्णन पढ़कर और साथ ही सार्थक चित्र देखकर गदगद हो गया| आपकी लेखनी को नमन|
विशेष -
"शुभ वृष्टि जल की, मेघ, बिजली,
रीझ नाचे मोर-मन.
कब बंधु आये? सोच प्रमुदित,
हो रही बहिना मगन.."
सादर
कमल

- prans69@gmail.com ने कहा…

- prans69@gmail.com

संजीव जी,
आपकी रचना पढ़ते ही मैं गदगद हो जाता हूँ . क्या शुभ सन्देश है !
प्राण शर्मा

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara

मान्यवर सलिल जी
आपकी सद्भावनाएं सभी दिलों तक पहुंचें
हर बार की भांति
बहुत सुंदर भाव -पूर्ण रचना
आपको राखी की बधाई
सादर
प्रणव भारती