कुल पेज दृश्य

रविवार, 26 अगस्त 2012

कविता : मैं संतोष भाऊवाला

कविता :
मैं
 संतोष भाऊवाला 
*
मैं ..... अदना सा कण
या फिर एक बिंदु
या छोटा सा बीज
मैं  .... एक शब्द  भर
कर देता नि:शब्द पर
इसके अनेक विकार
स्वार्थ,इर्ष्या,अहंकार
कण से विराट
बिंदु से सिन्धु  
बीज से  वृक्ष
तक के  सफ़र में
मैं के अनेक रूप
बदलते स्वरुप
इसी मैं  के कारण
हुए घमासान युद्ध
इसे छोड़ा जब तो
हुए महात्मा बुद्ध
पर कोई अछूता रह न पाये
लक्ष्मीपति हो या लंकापति
इस मै से छुट ना पाये
जीवन भर पछताये
यह मै छोड़े से भी छुटता नहीं
पर जिस दिन छुट गया
मनुज महात्मा बन जाये
समझो तर जाये
बिना मांगे ,मोक्ष पाये  
 
*******

9 टिप्‍पणियां:

- binu.bhatnagar@gmail.com ने कहा…

- binu.bhatnagar@gmail.com

सुन्दर अति सुन्दर

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com ने कहा…

sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


वाह संतोष जी ,
बहुत सुंदर बिब लिये कविता के लए हार्दिक बधाई ! विशेष -
विंदु से सिन्धु, / बीज से वृक्ष तक / .. मैं के अनेकों रूप / बदलते स्वरुप
सस्नेह
कमल भाई

deepti gupta ✆ ने कहा…

drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


प्रिय संतोष जी,

मै छोड़े से भी छुटता नहीं
पर जिस दिन छुट गया
मनुज महात्मा बन जाये
समझो तर जाये
बिना मांगे ,मोक्ष पाये

अंत भला सो सब भला ...बहुत उत्तम रचना!

साधुवाद! सस्नेह,
दीप्ति

- shishirsarabhai@yahoo.com ने कहा…

- shishirsarabhai@yahoo.com
आदरणीया संतोष जी,

विचारशील रचना है,

ढेर साधुवाद !
शिशिर

vijay ✆ ने कहा…

vijay2@comcast.net द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आ० संतोष जी,

इसके अनेक विकार
स्वार्थ,इर्ष्या,अहंकार
कण से विराट
बिंदु से सिन्धु
बीज से वृक्ष

आपको इस सुन्दर रचना के लिए बधाई।

विजय

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


संतोष जी,
बहुत भावपूर्ण रचना....
बधाई स्वीकार करें...|
इसके अनेक विकार
स्वार्थ,ईर्ष्या,अहंकार
जब ये नहीं छूट पाते
जीव ही हो जाता है बेकार
उलझता ही चला जाता है
स्वयं के साथ दूसरों को भ़ी सताता है|
साधुवाद
प्रणव भारती

sanjiv verma salil ने कहा…

sanjiv verma salil ✆

kavyadhara
मैं को जैसे ही मिला, कभी कहीं संतोष.
मैं ने तत्क्षण पा लिया, सुख-समृद्धि-परितोष..

जानदार रचना... बधाई...
विलम्ब के लिये खेद खेद है.

Santosh Bhauwala ✆ ने कहा…

santosh.bhauwala@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आदरणीय सलिल जी, भैया कमल जी, दीप्ती जी, बीनू जी, शिशिर जी, प्रणव जी, विजय जी
आप सभी बहुत बहुत आभार
आदरणीय सलिल जी, देर सबेर ही सही पर आशीर्वाद मिला, मेरे लिये यही सबसे बड़ी बात है.. संतोष को मिला संतोष
सादर
संतोष भाऊवाला

Divya Narmada ने कहा…

sanjiv verma salil ✆kavyadhara
महाकाल को पूजकर, तरा किया जयघोष.
कभी नहीं से भली है देर, 'सलिल'-संतोष.