चित्र पर कविता: 7
चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद, कड़ी २ में पराठा, दही, मिर्च-कॉफी, कड़ी ३ में दिल-दौलत, चित्र ४ में रमणीक प्राकृतिक दृश्य, चित्र ५ हिरनी की बिल्ली शिशु पर ममता, चित्र ६ में पद-चिन्ह के पश्चात प्रस्तुत है चित्र ७. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.
1.
बीनू भटनागर
*
सू्र्यदेव का स्वागत,
मै बाँहें फैला कर करता हूँ,
आग़ोश मे लेलूँ सूरज को,
महसूस कभी ये करता हूँ।
इस सुनहरे पल मे,
कुछ आधात्मिक अनुभूति
होतीं हैं।
जो नहीं मिला मंदिर मे कभी,
उसका दर्शन मै करता हूँ।
*
"Binu Bhatnagar" <binu.bhatnagar@gmail.com>
____________________________________
2.
संजीव 'सलिल'
*
पग जमाये हूँ धरा पर, हेरता आकाश.
काल को भी बाँध ले, जब तक जिऊँ भुज-पाश..
हौसलों का दिग-दिगंतिक, व्योम तक विस्तार.
ऊर्जा रवि-किरण देतीं, जीत लूँ संसार.
आत्म-पाखी प्रार्थना कर, चहचहाता है.
वंदना कर देव से, वरदान पाता है.
साधना होती सफल, संकल्प यदि पक्का.
रुद्ध कब बाधाओं से, होता प्रगति-चक्का..
दीप मृण्मय तन, जलाकर आत्म की बाती.
जग प्रकाशित कर बने रवि, नियति मुस्काती.
गिरि शिखर आलोचना के, हुए मृग-छौने.
मंद श्यामल छवि सहित, पग-तल नमित बौने.
करे आशीषित क्षितिज, पीताभ चक्रों से.
'खींच दे साफल्य-रेखा, पार वक्रों के.'
हूँ प्रकृति का पुत्र, है उद्गम परम परमात्म.
टेरता कर लीन खुद में, समर्पित है आत्म.
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
९४२५१ ८३२४४ / ०७६१ २४१११३१
http://divyanarmada.blogspot. com
http://hindihindi.in
__________________________________
3.
अभिषेक सूरज का.....
______________________________________
जागरण
इस स्तम्भ की अभूतपूर्व सफलता के लिये आप सबको बहुत-बहुत बधाई. एक से बढ़कर एक रचनाएँ अब तक प्रकाशित चित्रों में अन्तर्निहित भाव सौन्दर्य के विविध आयामों को हम तक तक पहुँचाने में सफल रहीं हैं. संभवतः हममें से कोई भी किसी चित्र के उतने पहलुओं पर नहीं लिख पाता जितने पहलुओं पर हमने रचनाएँ पढ़ीं.
चित्र और कविता की प्रथम कड़ी में शेर-शेरनी संवाद, कड़ी २ में पराठा, दही, मिर्च-कॉफी, कड़ी ३ में दिल-दौलत, चित्र ४ में रमणीक प्राकृतिक दृश्य, चित्र ५ हिरनी की बिल्ली शिशु पर ममता, चित्र ६ में पद-चिन्ह के पश्चात प्रस्तुत है चित्र ७. ध्यान से देखिये यह नया चित्र और रच दीजिये एक अनमोल कविता.
1.
बीनू भटनागर
*
सू्र्यदेव का स्वागत,
मै बाँहें फैला कर करता हूँ,
आग़ोश मे लेलूँ सूरज को,
महसूस कभी ये करता हूँ।
इस सुनहरे पल मे,
कुछ आधात्मिक अनुभूति
होतीं हैं।
जो नहीं मिला मंदिर मे कभी,
उसका दर्शन मै करता हूँ।
*
"Binu Bhatnagar" <binu.bhatnagar@gmail.com>
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2.
संजीव 'सलिल'
*
पग जमाये हूँ धरा पर, हेरता आकाश.
काल को भी बाँध ले, जब तक जिऊँ भुज-पाश..
हौसलों का दिग-दिगंतिक, व्योम तक विस्तार.
ऊर्जा रवि-किरण देतीं, जीत लूँ संसार.
आत्म-पाखी प्रार्थना कर, चहचहाता है.
वंदना कर देव से, वरदान पाता है.
साधना होती सफल, संकल्प यदि पक्का.
रुद्ध कब बाधाओं से, होता प्रगति-चक्का..
दीप मृण्मय तन, जलाकर आत्म की बाती.
जग प्रकाशित कर बने रवि, नियति मुस्काती.
गिरि शिखर आलोचना के, हुए मृग-छौने.
मंद श्यामल छवि सहित, पग-तल नमित बौने.
करे आशीषित क्षितिज, पीताभ चक्रों से.
'खींच दे साफल्य-रेखा, पार वक्रों के.'
हूँ प्रकृति का पुत्र, है उद्गम परम परमात्म.
टेरता कर लीन खुद में, समर्पित है आत्म.
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
९४२५१ ८३२४४ / ०७६१ २४१११३१
http://divyanarmada.blogspot.
http://hindihindi.in
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3.
|
अभिषेक हुआ है सूरज का
मन लगता है कुछ भरा-भरा.....|
जीवन की लघुतम सच्चाई
है बियाबान ओढ़े आती
पागल-पागल सी तन्हाई
नीलांबर पर है छा जाती
उन्मुक्त नहीं मन मानव का |
ऊंचे-ऊचे से स्वप्न सजे,
कुछ बिखर गये,कुछ शूल बने
चंदा के घूँघट में छिपकर
काली दुल्हन सज,इतराती
परिवेश यही है मानव का |
चंदा-तारे सब ही हारे
खेलें वे आँख-मिचौनी सी
फिर कहाँ-कहाँ रख आज कदम
जीवन खेले है होली सी
सर्वेश यही तो मानव का |
सूरज दादा उत्ताप-प्रचंडित
तड़ित-मडित ऊपर झूमें
नीचे मानव खा हिचकोले
चाहे धरती-अंबर छू ले
संदेश पुकारे मानव का |
अब बैठें न गुमसुम होकर
लेलें उधार कुछ सूरज से
अपमानित न हों जीवन भर
जीवन के द्वार अमी बरसे
अतिमुक्त रहे मन मानव का..........|
*
Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com
|
4.
चित्र ७ पर कविता
आह्वान
इन्दिरा प्रताप
*
मैं खड़ा हुआ उत्तुंग शिखर पर
आह्वान करता हूँ ----------
हे , तेज पुंज ! हे , रश्मिरथी !
तुम जगती के कण – कण में,
नव प्रकाश भर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
उदय – अस्त का खेल तुम्हारा ,
धुप छाहँ का छलके प्याला ,
हिम शिखरों के उच्च श्रृंगों को
ज्योतिर्मय कर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
देखो, धरती चटक रही है ,
पीकर तेज तुम्हारा ,
नव जीवन की, नव फुहार से
इस धरती को ,
हरा भरा कर दो;
तुम ऐसा वर दो |
तन मन में प्रकाश भर दे जो ,
हृदय- तार झंकृत कर दे जो ,
दूर करे मन का अँधियारा ,
जैसे अंधकार में नन्हा दीप बेचारा,
हे प्रभात के दिव्य पुंज !
छोटे से मुझ स्नेह दीप को ,
आलोकित कर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
हे तेज पुंज ! हे रश्मि रथी !
तुम सृष्टि के इस महताकाश में
चिर प्रकाश भर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
*
Indira Pratap ✆ द्वारा yahoogroups.com
____________________________________
5.
24 टिप्पणियां:
vijay ✆ vijay2@comcast.net द्वारा yahoogroups.com vijay ✆
आ० बीनू जी,
हर पंक्ति मान्य रखती है, पर निम्न तो बहुत खूब ।
जो नहीं मिला मंदिर मे कभी,
उसका दर्शन मै करता हूँ।
PRAN SHARMA ✆ prans69@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
बीनू जी की बधाई उनकी अच्छी कविता के लिए .
प्राण शर्मा
Binu Bhatnagar ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
बहुत ख़ूबसूरत रचना
Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com kavyadhara
धन्यवाद बीनू जी.....
आपकी इतनी शीध्र प्रतिक्रिया के लिए
ढेरों आभार
आपके ही बराबर हूँ
अत; स्नेह लिखूंगी|
सस्नेह
प्रणव भारती
sanjiv verma salil ✆kavyadhara
उन्मुक्त रहे मन मानव का... आपकी यह मनोकामना पूर्ण हो ताकि सारी समस्याएँ ही जड़ से समाप्त हो जाये. सारगर्भित रचना हेतु बधाई.
vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
संवेदनापूर्ण सारगर्भित रचना के लिए बधाई ।
विजय
vijay ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
हूँ प्रकृति का पुत्र, है उद्गम परम परमात्म.
टेरता कर लीन खुद में, समर्पित है आत्म.
अच्छी कविता के लिए साधुवाद ।
विजय
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
सुन्दरम, सुन्दरम, सुन्दरम !
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
सूर्य की तरह दमकती, धधकती रचना !
बधाई दीदी !
दीप्ति
Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
आ.सलिल जी
आपकी प्रतिक्रिया हेतु
सादर नमन ,धन्यवाद
- manjumahimab8@gmail.com
सलिलजी और प्रणव जी ,
आप दोनों की सुन्दर भाव-पूर्ण रचनाएँ और चित्र सत्यम,शिवम्,सुन्दरम का सन्देश दे रहे हैं . आप लोगों पर प्रभु की असीम कृपा है आशु रचना रचने की वह बनी रहे.....अत: दोनों को ही अभिनन्दन....
--
शुभेच्छु
मंजु
Pranava Bharti@ yahoogroups.com
kavyadhara
आ. सलिल जी ,
आपके सुंदर चित्र एवं सुन्दरतम,सारगर्भित रचना हेतु प्रणाम|
आ.विजय जी, स्नेही बीनू जी,दीप्ति जी,मंजू जी
रचना की प्रतिक्रिया हेतु ,उत्साह-वर्धन हेतु
आप सबका बहुत बहुत आभार
सादर,सस्नेह
प्रणव भारती
mstsagar@gmail.com yahoogroups.com
ekavita
बहुत प्रभावी -' अभिषेक सूरज का ' ढेर बधाई प्रणव जी ,
सादर ,शुभेच्छु ,
महिपाल ,२६ अगस्त २ ० १ २ ,ग्वालियर
Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ. महिपाल जी ,
आपके उत्साह-वर्धन हेतु
अतिशय धन्यवाद
सादर
प्रणव भारती
mridulkirti@gmail.com
विमल सलिल जी
पग धरे हूँ मैं धरा पर हेरता आकाश
आपके लेखन जीवन की सर्वोत्कृष्ट रचना है. मुग्ध हूँ पढ़ कर .
साधुवाद
डॉ.मृदुल
Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
बहुत सुंदर रचना इंदिरा जी,
हम सब इस वरदान की
प्राप्ति हेतु पंक्ति में खड़े हैं.......
सादर
प्रणव
Indira Pratap ✆ yahoogroups.com kavyadhara
priya pranav ji , aapka nam pdhte our lete hi man anek bhavnaon se bhar jata hai,jismen pyar our mamta donon samahit hain. karan mere bete ka nam bhi pranav hai .aapko kavita pasand aai,aabhari huun . indira
Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com kavyadhara
स्नेही इंदिरा जी,
नहीं जानते पल-छिन कितने क्या -क्या लेकर आते हैं,
हम तो सब बस मानव हैं ,मानव पर प्यार लुटाते हैं|
मेरा सौभाग्य कि आप मुझे किसी भ़ी पल याद कर सकती हैं|
सस्नेह
vijay ✆ yahoogroups.com
kavyadhara
आ० किरण जी,
छोटे से मुझ स्नेह दीप को ,
आलोकित कर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
बहुत ही अच्छी लिखी है कविता ।
विजय
- kiran5690472@yahoo.co.in
Sorry Vijay Ji,
Main itni pratibhshali nahi jo iss istar ki kavitayen likh sakun.
Ye sundar rachna Indira Ji ki hai :)
vijay ✆ yahoogroups.com
kavyadhara
आ० इन्दिरा जी,
क्षमाप्रार्थी हूँ, भूल हो गई । इसी बहाने मुझको
आपकी कविता का प्रसाद पुन: मिला ।
तन मन में प्रकाश भर दे जो ,
हृदय- तार झंकृत कर दे जो ,
दूर करे मन का अँधियारा ,
जैसे अंधकार में नन्हा दीप बेचारा,
हे प्रभात के दिव्य पुंज !
छोटे से मुझ स्नेह दीप को ,
आलोकित कर दो ,
तुम ऐसा वर दो |
बधाई ।
सादर और सस्नेह ।
विजय
इंदिरा जी!
यह आव्हान गान मन को प्रफुल्लित कर गया. साधुवाद.
rekha_rajvanshi@yahoo.com.au द्वारा yahoogroups.com ekavita
bahut sundar bhav Bharti ji. Badhai
Pranava Bharti ✆ yahoogroups.com ekavita
आपका तहेदिल से शुक्रिया रेखा जी
आपका उत्साह वर्धन ही तो
हमारा संबल है|
सस्नेह
प्रणव भारती
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