कुल पेज दृश्य

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

दोहा सलिला: 'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए... संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए...
संजीव 'सलिल'
*
'मैं'-'मैं' मिल जब 'हम' हुए, 'तुम' जा बैठा दूर.
जो न देख पाया रहा, आँखें रहते सूर..
*
'मैं' में 'तुम' जब हो गया, अपने आप विलीन.
व्याप गयी घर में खुशी, हर पल 'सलिल' नवीन..
*
'तुम' से 'मैं' की गैरियत, है जी का जंजाल.
'सलिल' इसी में खैरियत, 'हम' बन हों खुशहाल..
*
'मैं' ने 'मैं' को कब दिया, याद नहीं उपहार?
'मैं' गुमसुम 'तुम' हो गयी, रूठीं 'सलिल' बहार..
*
'मैं' 'तुम' 'यह' 'वह' प्यार से, भू पर लाते स्वर्ग.
'सलिल' करें तकरार तो, दूर रहे अपवर्ग..
*
'मैं' की आँखों में बसा, 'तू' बनकर मधुमास.
जिस-तिस की क्यों फ़िक्र हो, आया सावन मास..
*
'तू' 'मैं' के दो चक्र पर, गृह-वाहन गतिशील.
'हम' ईधन गति-दिशा दे, बाधा सके न लील..
*
'तू' 'तू' है, 'मैं' 'मैं' रहा, हो न सके जब एक.
तू-तू मैं-मैं न्योत कर, विपदा लाईं अनेक..
*
'मैं' 'तुम' हँस हमदम हुए, ह्रदय हर्ष से चूर.
गाल गुलाबी हो गये, नत नयनों में नूर..
*
'मैं' में 'मैं' का मिलन ही, 'मैं'-तम करे समाप्त.
'हम'-रवि की प्रेमिल किरण, हो घर भर में व्याप्त..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



4 टिप्‍पणियां:

- sosimadhu@gmail.com ने कहा…

- sosimadhu@gmail.com


दोहा सलिला को हार्दिक नमन काश कि आप की सी सोच सब् की होती , ये सारा जग सुन्दर होता हर घर का आँगन ,मंदिर होता ,शुभ्र विचार मधुर वचन से लोत- प्रोत रचना को हमारा प्रणाम ।
मधु

- kanuvankoti@yahoo.com ने कहा…

- kanuvankoti@yahoo.com

आदरणीय सलिल आचार्य जी,
आप कमाल के सिद्धहस्त दोहाकार है...अत्युत्तम !
ढेर सराहना और करतल ध्वनि के साथ,
सादर,
कनु

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara


आ० आचार्य जी ,
सभी दोहे एक से एक बढ़ कर | साधुवाद !
सादर
कमल

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

pranavabharti@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आ.आचार्य जी !
'मैं' द्वैत अद्वैत में समा जाए '
ज़िन्दगी मुस्कान बन जाए |
खिल-खिल जाएं फूल ,
भूल सकें सब 'भूल' |

अनेकानेक साधुवाद
सादर
प्रणव