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मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

हिन्दी की पाठशाला :२ ''रेफ''

हिंदी में रेफयुक्त शब्दों का उपयोग :

ई कविता पर श्री राकेश खंडेलवाल द्वारा रेफ के उपयोग पर दी गयी उपयोगी जानकारी और उस सन्दर्भ में हुईं उपयोगी प्रतिक्रियाएँ पाठकों के ज्ञानवर्धन की दृष्टि से साभार प्रस्तुत है:


रेफ़ वाले शब्दों के उपयोग में अक्सर गलतियां हो जाती हैं. हिंदी में '' का संयुक्त रूप से तीन तरह से उपयोग होता है.
१. कर्म, धर्म, सूर्य, कार्य
२. प्रवाह, भ्रष्ट, ब्रज, स्रष्टा
३. राष्ट्र, ड्रा

जो अर्ध '' या रेफ़ शब्द के ऊपर लगता है, उसका उच्चारण हमेशा उस व्यंजन ध्वनि से पहले होता है, जिसके ऊपर यह लगता है. रेफ़ के उपयोग में ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि स्वर के ऊपर नहीं लगाया जाता. यदि अर्ध '' के बाद का वर्ण आधा हो, तब यह बाद वाले पूर्ण वर्ण के ऊपर लगेगा, क्योंकि आधा वर्ण में स्वर नहीं होता. उदाहरण के लिए कार्ड्‍‍स लिखना गलत है. कार्ड्‍स में ड्‍ स्वर विहीन है, जिस कारण यह रेफ़ का भार वहन करने में असमर्थ है. इ और ई जैसे स्वरों में रेफ़ लगाने की कोई गुंजाइश नहीं है. इसलिए स्पष्ट है कि किसी भी स्वर के ऊपर रेफ़ नहीं लगता.
ब्रज या क्रम लिखने या बोलने में ऐसा लगता है कि यह '' की अर्ध ध्वनि है, जबकि यह पूर्ण ध्वनि है. इस तरह के शब्दों में '' का उच्चारण उस वर्ण के बाद होता है, जिसमें यह लगा होता है.
जब भी '' के साथ नीचे से गोल भाग वाले वर्ण मिलते हैं, तब इसके /\ रूप क उपयोग होता है, जैसे-ड्रेस, ट्रेड, लेकिन द और ह व्यंजन के साथ '' के / रूप का उपयोग होता है, जैसे- द्रवित, द्रष्टा, ह्रास.
संस्कृत में रेफ़ युक्त व्यंजनों में विकल्प के रूप में द्वित्व क उपयोग करने की परंपरा है., जैसे- कर्म्म, धर्म्म, अर्द्ध. हिंदी में रेफ़ वाले व्यंजन को द्वित्व (संयुक्त) करने का प्रचलन नहीं है. इसलिए रेफ़ वाले शब्द गोवर्धन, स्पर्धासंवर्धन शुद्ध हैं.

''जो अर्ध '' या रेफ़ शब्द के ऊपर लगता है, उसका उच्चारण हमेशा उस व्यंजन ध्वनि से पहले होता है'' के संबंध में नम्र निवेदन है कि रेफ कभी भी 'शब्द' पर नहीं लगाया जाता. शब्द के जिस 'अक्षर' या वर्ण पर रफे लगाया जाता है, उसके पूर्व बोला या उच्चारित किया जाता है.

- सलिल:
''हिंदी में '' का संयुक्त रूप से तीन तरह से उपयोग होता है.'' के संदंर्भ में निवेदन है कि हिन्दी में 'र' का संयुक्त रूप से प्रयोग चार तरीकों से होता है. ४. कृष्ण, गृह, घृणा,  तृप्त, दृष्टि, धृष्ट, नृप, पृष्ठ, मृदु, वृहद्, सृष्टि, हृदय आदि. यहाँ उच्चारण में छोटी 'इ' की ध्वनि समाविष्ट होती है जबकि शेष में 'अ' की. 

यथा: कृष्ण = krishn, क्रम = kram, गृह = ग्रिह grih, ग्रह = grah, श्रृंगार = shringar, श्रम = shram आदि.  

राकेश खंडेलवाल :
एक प्रयोग और: अब सन्दर्भ आप ही तलाशें:
 दोहा:-
सोऽहं का आधार है, ओंकार का प्राण।
रेफ़ बिन्दु वाको कहत, सब में व्यापक जान।१।

बिन्दु मातु श्री जानकी, रेफ़ पिता रघुनाथ।
बीज इसी को कहत हैं, जपते भोलानाथ।२।

हरि ओ३म तत सत् तत्व मसि, जानि लेय जपि नाम।
ध्यान प्रकाश समाधि धुनि, दर्शन हों बसु जाम।३।

बांके कह बांका वही, नाम में टांकै चित्त।
हर दम सन्मुख हरि लखै, या सम और न बित्त।४।
  * * * * *



-- वि० [सं०√रिफ्+घञवार+इफन्] १. शब्द के बीच में पड़नेवाले र का वह रूप जो ठीक बाद वाले स्वरांत व्यंजन के ऊपर लगाया जाता है। जैसे—कर्म, धर्म, विकर्ण। २. र अक्षर। रकार। ३. राग। ४. रव। शब्द। वि० १. अधम। नीच। २. कुत्सित। निन्दनीय।        -भारतीय साहित्य संग्रह.  



 
                -- पुं० [ब० स०] १. भागवत के अनुसार शाकद्वीप के राजा प्रियव्रत् के पुत्र मेधातिथि के सात पुत्रों में से एक। २. उक्त के   नाम पर प्रसिद्ध एक वर्ष अर्थात् भूखंड।

रेफ लगाने की विधि : डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक', शब्दों का दंगल में

हिन्दी में रेफ  अक्षर के नीचे “र” लगाने के  लिए सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘र’ का उच्चारण कहाँ हो रहा है ? 

यदि ‘र’ का उच्चारण अक्षर के बाद हो रहा है तो रेफ की मात्रा सदैव उस अक्षर के नीचे लगेगी जिस के बाद ‘र’ का उच्चारण हो रहा है । 
उदाहरण के लिए - प्रकाश, सम्प्रदाय, नम्रता, अभ्रक, चन्द्र आदि । 

 हिन्दी में रेफ या अक्षर के ऊपर  "र्" लगाने के  लिए सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि ‘र्’ का उच्चारण कहाँ हो रहा है ?  “र्"   का उच्चारण जिस अक्षर के पूर्व हो रहा है तो रेफ की मात्रा सदैव उस अक्षर के ऊपर लगेगी जिस के पूर्व ‘र्’ का उच्चारण हो रहा है । 
उदाहरण के लिए - आशीर्वाद, पूर्व, पूर्ण, वर्ग, कार्यालय आदि ।   
 
रेफ लगाने के लिए आपको केवल यह अन्तर समझना है कि जहाँ पूर्ण "र" का उच्चारण हो रहा है वहाँ सदैव उस अक्षर के नीचे रेफ लगाना है जिसके पश्चात  "र"  का उच्चारण हो रहा है । 
जैसे - प्रकाश, सम्प्रदाय, नम्रता, अभ्रक, आदि में "र" का पूर्ण उच्चारण हो रहा है ।
*
६३ ॥ श्री अष्टा वक्र जी ॥
दोहा:-
रेफ रेफ तू रेफ है रेफ रेफ तू रेफ ।
रेफ रेफ सब रेफ है रेफ रेफ सब रेफ ॥१॥
*
१५२ ॥ श्री पुष्कर जी ॥
दोहा:-

रेफ बीज है चन्द्र का रेफ सूर्य का बीज ।
रेफ अग्नि का बीज है सब का रेफैं बीज ॥१॥
रेफ गुरु से मिलत है जो गुरु होवै शूर ।
तो तनकौ मुश्किल नहीं राम कृपा भरपूर ॥२॥
*
चलते-चलते : अंग्रेजी में रेफ का प्रयोग सन्दर्भ reference और खेल निर्णायक refree के लिये होता है.  
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--- divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

dr. m. c. gupta 'khalish' ने कहा…

रेफ़:

फिर रहा हूँ किनारे पे आकर खड़ा
रिक्तता देख कर हाथ मलते हुए.

छोड़ जिस मोड़ पर तुम गए थे मुझे
आज आगे कदम हैं वहीं से बढ़े

Amitabh Tripathi ✆ ekavita ने कहा…

सं०- ’र’ का प्रयोग चार प्रकार से होता है
संयुक्ताक्षर बनाने की विधि में अन्य व्यंजनों की तुलना में ध्वनिसंकेत की दृष्टि से ’र’ की स्थिति भिन्न है। अन्यथा यह भी अन्य व्यंजनों की भाँति दो ही स्थितियों में संयुक्ताक्षर बनाता है या तो किसी व्यंजन के पहले या फिर बाद में। पहले आने के उदाहरण
क + र्‌ + म = कर्म , ध + र्‌ + म = धर्म आदि - यहाँ पर प्रयुक्त ’र’ ही रेफ कहा जाता है क्योंकि यह अर्द्ध ’र’ होता है
बाद में आने के उदाहरण
आ + म्‌ + र = आम्र , स + म + ग्‌ + र = समग्र (यहाँ ’र’ पूर्ण है)
ऐसे व्यंजन वर्ण जिनकी संरचना में खड़ी पाई नहीं होती और जिनका निम्न भाग गोलीय होता है, यथा ड, ढ, ट, ठ आदि, उनमें बाद मे आने वाले पूर्ण र को एक विषेश चिह्न से प्रदर्षित करते हैं जैसे उ + ष्‍ + ट्‌ + र = उष्ट्र। इसमें पहले का वाली झुकी रेखा पूर्ण ’र’ को प्रदर्शित करती है और बाद वाली झुकी रेखा ट्‍् (ध्यान दें हलन्त) को। कहीं-कहीं पर ’र’ आगे पीछे दोनो आता है।
जैसे
आ + र्‌ + द + र = आर्द्र।
अस्तु

अब रही अन्य कुछ शब्दों की बात जहाँ ’र’ का प्रयोग बताया गया है यथा हृदय, समृद्ध आदि, के सन्दर्भ में निवेदन करना चाहूँगा कि यहाँ पर ’र’ का प्रयोग नहीं हुआ है बल्कि ’ऋ’ का प्रयोग हुआ है जो कि एक स्वर है। देखें अ‍इउण्‌ ऋलृक्‌ एओङ्‍ ऐऔच्‌। अच्‌ तक सब स्वर हैं।
ह्‌+ऋ+द+य = हृदय , अ+म्‌+ऋ+त = अमृत, म्‌+ऋ+त्‌+य्+उ = मृत्यु आदि
यहाँ पर ह और म के नीचे लगने वाला चिह्न ऋ की मात्रा है। इसका भी उच्चारण क्षेत्रानुसार ’रि’ या ’रु’ के रूप में होता है। सम्भवतः इसका वास्तविक उच्चारण लुप्त हो गया है।
आशा है इसे स्पष्ट कर पाया हूँ। यदि कोई त्रुटि हुई हो तो इंगित करेंगे। आभारी रहूँगा।

सादर
अमित

rahul upadhyay ने कहा…

>> क्यों न इस सप्ताह रेफ की मात्रा पर केन्द्रित हों और अगले सप्ताह बिंदी-चन्द्र बिंदी या ऐसे किसी अन्य बिंदु को. इससे सभी को भूली-बिसरी बातें याद आयेंगी. मुझ जैसे नौसिखिये को बहुत कुछ सीखने को मिलेगा.
सही फ़रमाया आपने.

और भी मुद्दे हैं ज़माने में 'रेफ़' के सिवा ...

सद्भाव सहित,
राहुल

- घनश्याम ने कहा…

अमिताभ जी,

आपने जो लिखा: "यहाँ पर ’र’ का प्रयोग नहीं हुआ है बल्कि ’ऋ’ का प्रयोग हुआ है जो कि एक स्वर है। देखें अ‍इउण्‌ ऋलृक्‌ एओङ्‍ ऐऔच्‌। अच्‌ तक सब स्वर हैं।

ह्‌+ऋ+द+य = हृदय , अ+म्‌+ऋ+त = अमृत, म्‌+ऋ+त्‌+य्+उ = मृत्यु आदि
यहाँ पर ह और म के नीचे लगने वाला चिह्न ऋ की मात्रा है। इसका भी उच्चारण क्षेत्रानुसार ’रि’ या ’रु’ के रूप में होता है। सम्भवतः इसका वास्तविक उच्चारण लुप्त हो गया है।"

इस वक्‍तव्य से मेरी पूर्ण सहमति है। मैं स्वयं यही सब कल रात स्वयं लिखना चाह रहा था पर रात बहुत हो गई थी, आज के लिये छोड़ दिया था। तुम जगे थे और मेरा काम आसान हुआ।

- घनश्याम