दोहा सलिला:
मोहन मोह न अब मुझे
संजीव 'सलिल'
*
कब अच्छा हो कब बुरा कौन सका है जान?,
समय सगा होता नहीं, कहें सदा मतिमान..
जन्म-मृत्यु के साथ दे, पीड़ा क्यों भगवान्?
दर्दरहित क्यों है नहीं, उदय और अवसान?
कौन यहाँ बलहीन है?, कौन यहाँ बलवान?
सब में मिट्टी एक सी, बोल पड़ा शमशान..
माटी का तन पा करे, मूरख मन अभिमान.
सो ना, सोना अंत में, जाग-जगा नादान..
मोहन मोह न अब मुझे, दे गीता का ज्ञान.
राग-द्वेष से दूर कर, भुला मान-अपमान..
कौन किसी का सगा है?, कौन पराया-गैर??
सबमें बसता प्रभु वही, चाहो सबकी खैर..
धड़क-धड़क धड़कन बढ़ी, धड़क न दिल हो शांत.
लेने स्वामी आ रहे, मनहर रम्य प्रशांत..
मुरली-धुन पर नाचता, मन-मयूर सुध भूल.
तन तबला सुन थाप दे, मुकुलित आत्मा-फूल..
राधा धारा प्रेम की, मीरा-प्रेम-प्रणाम.
प्रेम विदुरिनी का नमन, कृष्णा-प्रेम अनाम..
ममता जसुदा की विमल, अचल देवकी-मोह.
सुतवत्सल कुब्जा तृषित, कुंती करुणा छोह..
भक्ति पार्थ की शुचि अटल, गोप-भक्ति अनुराग.
भीष्म-भक्ति संकल्प दृढ़, कर्ण-भक्ति हवि-आग..
******************************
मोहन मोह न अब मुझे
संजीव 'सलिल'
*
कब अच्छा हो कब बुरा कौन सका है जान?,
समय सगा होता नहीं, कहें सदा मतिमान..
जन्म-मृत्यु के साथ दे, पीड़ा क्यों भगवान्?
दर्दरहित क्यों है नहीं, उदय और अवसान?
कौन यहाँ बलहीन है?, कौन यहाँ बलवान?
सब में मिट्टी एक सी, बोल पड़ा शमशान..
माटी का तन पा करे, मूरख मन अभिमान.
सो ना, सोना अंत में, जाग-जगा नादान..
मोहन मोह न अब मुझे, दे गीता का ज्ञान.
राग-द्वेष से दूर कर, भुला मान-अपमान..
कौन किसी का सगा है?, कौन पराया-गैर??
सबमें बसता प्रभु वही, चाहो सबकी खैर..
धड़क-धड़क धड़कन बढ़ी, धड़क न दिल हो शांत.
लेने स्वामी आ रहे, मनहर रम्य प्रशांत..
मुरली-धुन पर नाचता, मन-मयूर सुध भूल.
तन तबला सुन थाप दे, मुकुलित आत्मा-फूल..
राधा धारा प्रेम की, मीरा-प्रेम-प्रणाम.
प्रेम विदुरिनी का नमन, कृष्णा-प्रेम अनाम..
ममता जसुदा की विमल, अचल देवकी-मोह.
सुतवत्सल कुब्जा तृषित, कुंती करुणा छोह..
भक्ति पार्थ की शुचि अटल, गोप-भक्ति अनुराग.
भीष्म-भक्ति संकल्प दृढ़, कर्ण-भक्ति हवि-आग..
******************************
5 टिप्पणियां:
आचार्य सलिल जी ,
सुन्दर रचना ने हमें तो अभिभूत कर दिया ।
आप धन्य हैं ।
भाव-भक्ति हो अचल हरि, हर लेना हर क्लेश.
'सलिल' अमल-निर्मल रहे, नाम जपे अनिमेष..
आ० आचार्य जी,
सुन्दर और उपदेशक दोहे ! बधाई
विशेष -
कब अच्छा हो कब बुरा कौन सका है जान
समय सगा नहिं होत है कहैं सदा मतिमान
धड़क धड़क धड़कन बढ़ी धड़क न दिल हो शांत
लेने स्वामी आ रहे मनहर रम्य प्रशांत | "
"दोहे पढ़ कर मुग्ध है मन भटका चिर-क्लांत
टूटे काया का बंधन हों तभी मोह भ्रम शांत "
सादर - कमल
आद०आचार्य जी अभिवादन,
हमेशा की तरह सुन्दर, सार्थक दोहे,बधाई
मिला आप से अब यही, मुझको जीवनबोध !
जिया मगर कब जी सका,मैं था निरा अबोध !!
याद करो परमात्मा, गर श्वांसों के साथ !
इस दुनिया में फ़िर कभी,होगे नहीं अनाथ !!
सादर, डा० अजय जनमेजय
अजय कमल शतदल सुमन, विधि-हरि-हर के हाथ.
कमलनयन पंकज-वदन, विनत नवाऊँ माथ.
जनमेजय संग मिल 'सलिल', करता रचना यज्ञ.
पा विज्ञों का साथ कुछ, कह लेता है अज्ञ..
एक टिप्पणी भेजें