कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 8 अक्तूबर 2010

मुक्तिका... क्यों है? संजीव 'सलिल'

मुक्तिका...

क्यों है?

संजीव 'सलिल'
*
रूह पहने हुए ये हाड़ का पिंजर क्यों है?
रूह सूरी है तो ये जिस्म कलिंजर क्यों है??

थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.
और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??

गले मिलने की है ख्वाहिश, ये संदेसा भेजा.
आये तो हाथ में दाबा हुआ खंजर क्यों है??

नाम से लगते रहे नेता शरीफों जैसे.
काम से वो कभी उड़िया, कभी कंजर क्यों है??

उसने बख्शी थी हमें हँसती हुई जो धरती.
आज रोती है बिलख, हाय ये मंजर क्यों है?

***********************
-- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Sameer Lal

बहुत उम्दा...ब्लॉग पर टिप्पनी करने का ऑप्शन समझ नहीं आया..

Naveen C Chaturvedi ने कहा…

ज़मीन के बंजर होने के कारण को अच्छी तरह विवेचित किया है सलिल जी आपने|

deep zirvi ने कहा…

दे सके न कभी परवाज़ जो आकाश कभी ;
उन के कहने ही पे कतरे गये ये पर क्यों हैं.deepzirvi9815524600

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

थी तो ज़रखेज़ ज़मीं, हमने ही बम पटके हैं.
और अब पूछते हैं ये ज़मीं बंजर क्यों है??

बहुत खूब आचार्य जी, सुंदर अभिव्यक्ति पर बधाई,