महामना मदन मोहन मालवीय के प्रति दोहांजलि :
संजीव 'सलिल'
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म - महक रहा यश-कीर्ति से, जिनकी भारत देश. संजीव 'सलिल'
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हा - हाड़-मांस के मनुज थे, हम से किन्तु विशेष..
ना - नाना कष्ट सहे किये, भागीरथी प्रयास..
म - मद न उन्हें किंचित हुआ, 'मदन' रहा बन दास.
द - दमन न उनकी नीति थी, संयत दीप उजास..
न - नमन करे जन-गण उन्हें, रख श्रृद्धा-विश्वास.
मो - मोह नहीं किंचित किया, 'मोहन' धवल हुलास..
ह - हरदम सेवा राष्ट्र की, था जीवन का ध्येय.
मा - माल तिजोरी में सड़े, सेठों की है व्यर्थ.
ल - लगन लगी धन धनपति, दें जो धनी-समर्थ..
वी - वीर जूझ बाधाओं से, लेकर रोगी देह.
य - यज्ञ हेतु खुद चल पड़ा, तनिक न था संदेह..
अ - अनजानों का जीत मन, पूर्ण किया संकल्प.
म - मन ही मन सोचा नहीं, बेहतर कोई विकल्प..
र - रमा न रहना चाहिए, निज हित में इंसान.
हैं - हैं जिसमें शिक्षा वही, इंसां है भगवान..
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विश्वनाथ के धाम में, दिया बुद्ध ने ज्ञान.
लिया न इस युग में उसे, हमने आया ध्यान..
शिक्षा पा मानव बने, श्रेष्ठ राष्ट्र-सन्तान.
दीनबन्धु हो हर युवा, सद्भावों की खान..
संस्कार ले सनातन, आदम हो इंसान.
पराधीनता से लड़े, तरुणाई गुणवान..
नरम नीति के पक्षधर, थे अरि-हीन विदेह.
संत सदृश वे विरागी, नहीं तनिक संदेह..
आता उन सा युग पुरुष, कल्प-कल्प के बाद.
सत्य सनातन मूल्य-हित, जो करता संवाद..
हिन्दी जग-वाणी बने, रहे न सच अज्ञेय..
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