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शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

अभिनव प्रयोग- गीत: कमल-कमलिनी विवाह संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग-
गीत:

कमल-कमलिनी विवाह

संजीव 'सलिल'
*
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* रक्त कमल 

अंबुज शतदल कमल
अब्ज हर्षाया रे!
कुई कमलिनी का कर
गहने आया रे!...
*














* हिमकमल 
अंभज शीतल उत्पल देख रहा सपने
बिसिनी उत्पलिनी अरविन्दिनी सँग हँसने
कुंद कुमुद क्षीरज अंभज नीरज के सँग-
नीलाम्बुज नीलोत्पल नीलोफर भी दंग.

कँवल जलज अंबोज नलिन पुहुकर पुष्कर
अर्कबन्धु जलरुह राजिव वारिज सुंदर
मृणालिनी अंबजा अनीकिनी वधु मनहर

यह उसके, वह भी
इसके मन भाया रे!...
*















* नील कमल 
बाबुल ताल, तलैया मैया हँस-रोयें
शशिप्रभ कुमुद्वती कैरविणी को खोयें.
निशापुष्प कौमुदी-करों मेंहदी सोहे.
शारंग पंकज पुण्डरीक मुकुलित मोहें.

बन्ना-बन्नी, गारी गायें विष्णुप्रिया.
पद्म पुंग पुन्नाग शीतलक लिये हिया.
रविप्रिय श्रीकर कैरव को बेचैन किया

अंभोजिनी अंबुजा
हृदय अकुलाया रे!... 
*














* श्वेत कमल 
चंद्रमुखी-रविमुखी हाथ में हाथ लिये
कर्णपूर सौगन्धिक श्रीपद साथ लिये.
इन्दीवर सरसिज सरोज फेरे लेते.
मौन अलोही अलिप्रिय सात वचन देते.

असिताम्बुज असितोत्पल-शोभा कौन कहे?
सोमभगिनी शशिकांति-कंत सँग मौन रहे.
'सलिल'ज हँसते नयन मगर जलधार बहे

श्रीपद ने हरिकर को
पूर्ण बनाया रे!...
***************














* ब्रम्ह कमल

टिप्पणी:

* कमल, कुमुद, व कमलिनी का प्रयोग कहीं-कहीं भिन्न पुष्प प्रजातियों के रूप में है, कहीं-कहीं एक ही प्रजाति के पुष्प के पर्याय के रूप में. कमल के रक्तकमल, नीलकमल  तथा श्वेतकमल तीन प्रकार रंग के आधार पर वर्णित हैं. कमल-कमलिनी का विभाजन बड़े-छोटे आकार के आधार पर प्रतीत होता है. कुमुद को कहीं कमल, कहीं कमलिनी कहा गया है. कुमद के साथ कुमुदिनी का भी प्रयोग हुआ है. कमल सूर्य के साथ उदित होता है, उसे सूर्यमुखी, सूर्यकान्ति, रविप्रिया आदि कहा गया है. रात में खिलनेवाली कमलिनी को शशिमुखी, चन्द्रकान्ति, रजनीकांत,  कहा गया है. रक्तकमल के लाल रंग की श्री तथा हरि के कर-पद पल्लवों से समानता के कारण हरिपद, श्रीकर जैसे पर्याय बने हैं, सूर्य, चन्द्र, विष्णु, लक्ष्मी, जल, नदी, समुद्र, सरोवर आदि  से जन्म के आधार पर बने पर्यायों के साथ जोड़ने पर कमल के अनेक और पर्यायी शब्द बनते हैं. मुझसे अनुरोध था कि कमल के सभी पर्यायों को गूँथकर रचना करूँ. माँ शारदा के श्री चरणों में यह कमल-माल अर्पित कर आभारी हूँ. सभी पर्यायों को गूंथने पर रचना अत्यधिक लंबी होगी. पाठकों की प्रतिक्रिया ही बताएगी कि गीतकार निकष पर खरा उतर सका या नहीं?

 * कमल हर कीचड़ में नहीं खिलता. गंदे नालों में कमल नहीं दिखेगा भले ही कीचड़ हो. कमल का उद्गम जल से है इसलिए वह नीरज, जलज, सलिलज, वारिज, अम्बुज, तोयज, पानिज, आबज, अब्ज है. जल का आगर नदी, समुद्र, तालाब हैं... अतः कमल सिंधुज, उदधिज, पयोधिज, नदिज, सागरज, निर्झरज, सरोवरज, तालज भी है. जल के तल में मिट्टी है, वहीं जल और मिट्टी में मेल से कीचड़ या पंक में कमल का बीज जड़ जमता है इसलिए कमल को पंकज कहा जाता है. पंक की मूल वृत्ति मलिनता है किन्तु कमल के सत्संग में वह विमलता का कारक हो जाता है. क्षीरसागर में उत्पन्न होने से वह क्षीरज है. इसका क्षीर (मिष्ठान्न खीर) से कोई लेना-देना नहीं है. श्री (लक्ष्मी) तथा विष्णु की हथेली तथा तलवों की लालिमा से रंग मिलने के कारण रक्त कमल हरि कर, हरि पद, श्री कर, श्री पद भी कहा जाता किन्तु अन्य कमलों को यह विशेषण नहीं दिया जा सकता. पद्मजा लक्ष्मी के हाथ, पैर, आँखें तथा सकल काया कमल सदृश कही गयी है. पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना के नेत्र गुलाबी भी हो सकते हैं, नीले भी. सीता तथा द्रौपदी के नेत्र क्रमशः गुलाबी व् नीले कहे गए हैं और दोनों को पद्माक्षी, कमलाक्षी या कमलनयना विशेषण दिए गये हैं. करकमल और चरणकमल विशेषण करपल्लव तथा पदपल्लव की लालिमा व् कोमलता को लक्ष्य कर कहा जाना चाहिए किन्तु आजकल चाटुकार कठोर-काले हाथोंवाले लोगों के लिये प्रयोग कर इन विशेषणों की हत्या कर देते हैं. श्री राम, श्री कृष्ण के श्यामल होने पर भी उनके नेत्र नीलकमल तथा कर-पद रक्तता के कारण करकमल-पदकमल कहे गये. रीतिकालिक कवियों को नायिका के अन्गोंपांगों के सौष्ठव के प्रतीक रूप में कमल से अधिक उपयुक्त अन्य प्रतीक नहीं लगा. श्वेत कमल से समता रखते चरित्रों को भी कमल से जुड़े विशेषण मिले हैं. मेरे पढ़ने में ब्रम्हकमल, हिमकमल से जुड़े विशेषण नहीं आये... शायद इसका कारण इनका दुर्लभ होना है. इंद्र कमल (चंपा) के रंग चम्पई (श्वेत-पीत का मिश्रण) से जुड़े विशेषण नायिकाओं के लिये गर्व के प्रतीक हैं किन्तु पुरुष को मिलें तो निर्बलता, अक्षमता, नपुंसकता या पाण्डुरोग (पीलिया ) इंगित करते हैं. कुंती तथा कर्ण के पैर कोमलता तथा गुलाबीपन में साम्यता रखते थे तथा इस आधार पर ही परित्यक्त पुत्र कर्ण को रणांगन में अर्जुन के सामने देख-पहचानकर वे बेसुध हो गयी थीं.

 *  हिम कमलविकिपीडिया, एक मुक्त ज्ञानकोष से चीन के सिन्चांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में खड़ी थ्येनशान पर्वत माले में समुद्र सतह से तीन हजार मीटर ऊंची सीधी खड़ी चट्टानों पर एक विशेष किस्म की वनस्पति उगती है, जो हिम कमल के नाम से चीन भर में मशहूर है। हिम कमल का फूल एक प्रकार की दुर्लभ मूल्यवान जड़ी बूटी है, जिस का चीनी परम्परागत औषधि में खूब प्रयोग किया जाता है। विशेष रूप से ट्यूमर के उपचार में, लेकिन इधर के सालों में हिम कमल की चोरी की घटनाएं बहुत हुआ करती है, इस से थ्येन शान पहाड़ी क्षेत्र में उस की मात्रा में तेजी से गिरावट आयी। वर्ष 2004 से हिम कमल संरक्षण के लिए व्यापक जनता की चेतना उन्नत करने के लिए प्रयत्न शुरू किए गए जिसके फलस्वरूप पहले हिम कमल को चोरी से खोदने वाले पहाड़ी किसान और चरवाहे भी अब हिम कमल के संरक्षक बन गए हैं।

* दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

13 टिप्‍पणियां:

अरुणेश मिश्र ने कहा…

प्रशंसनीय ।

निर्मला कपिला : ने कहा…

सुन्दर ग्यानवर्द्धक रचना। धन्यवाद।



निर्मला कपिला

anil attri - ने कहा…

Chhyawadi Pant ji Ke Drshan ho rahe hain.....Anil Attri Delhi.

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh): ने कहा…

कमल की एक सुन्दर माला गूंथ दी है अचार्य जी ने इस बार



राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh)

Raviratlami : ने कहा…

हिंदी वर्डनेट में कमल के निम्न पर्यायवाची हैं-

1. कमल, कँवल, अरविन्द, अरविंद, पंकज, राजीव, नीरज, सरोज, पद्म, कंज, कमलिनी, पुष्कर, अंज, अंभोज, अम्भोज, अंबुज, अम्बुज, कुंद, कुन्द, अब्ज, इंदीवर, पंकजात, पंकजन्मा, वारिरुह, वनरुह, पाथोज, पिंडपुष्प, पिण्डपुष्प, प्रफुला, प्रफुल्ला, रात्रिपुष्प, जलेज, जलेजात, शृंग, श्रीवास, श्रीवासक, पयोज, अर्कबंधु, अर्कबन्धु; पानी में होनेवाले एक पौधे का पुष्प जो बहुत ही सुन्दर होता है ; "सरोवर में कई रंगों के कमल खिले हुए हैं/ कमल से सरोवर की शोभा बढ़ जाती है"

2. कमल, कँवल, पंकज, नीरज, पंकजात, पंकजन्मा, पुष्कर, अंज, अंभोज, अम्भोज, इंदीवर, अंबुज, पाथोज, पद्म, अम्बुज, वारिरुह, प्रफुला, प्रफुल्ला, जलेज, जलेजात, शृंग, श्रीवास, श्रीवासक, पयोज; जल में उत्पन्न होनेवाला एक पौधा जो अपने सुन्दर फूलों के लिए प्रसिद्ध है; "बच्चे खेल-खेल में सरोवर से कमल उखाड़ रहे हैं"



Raviratlami

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

रवि भाई बहुत-बहुत धन्यवाद. इनमें से कुछ का ही प्रयोग कर पाया हूँ. सब को लेने से रचना का आकार बहुत बढ़ रहा था. कमल के सकल पर्याय तो शताधिक हैं तभी तो शतदल है.

Purnima Varman ✆ ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद सलिल जी,

यह गीत मैंने अनुभूति के कमल विशेषांक के लिये लिखने को कहा था।
कमल विशेषांक प्रकाशित हो चुका है लेकिन हम अपने पुराने अंकों को हटाते नहीं हैं।
आपका गीत उसमें जोड़ रही हूँ, यह बहुत से लोगों को कमल के पर्यायवाची याद करने में मदद करेगा।

जरूर कार्यशाला भी आपके नवगीत के बिना तो पूरी नहीं होगी।
शायद उसके लिये आप एक नवगीत भेज देंगे।
रचना दो छोटे अंतरों की हो तो भी काफ़ी है।
प्रतीक्षा रहेगी।

पूर्णिमा वर्मन

guddo dadee ने कहा…

संजीव नन्हे भाई बिटवा
चिरंजीव भवः
कैसें हैं आप घर परिवार में मंगल कुशल
बहु बिटिया को आशीर्वाद कहें
आज ही आपके ऑरकुट पर गई बहुत से कवितायें पढ़ी पढ़ कर मन अति प्रसन्न हुआ
आपकी हिंदी मात् भाषा बहुत ही सुघड है मुझे बहुत से शब्द समझ नहीं आये कृपया समझावें
किराविनी ----
अमोजिनी -----
अंबुजा ===
पुन्नण===
हाईकु क्या है
दिव्पदियाँ (शायद गलत लिखा है)
दोहा सालिला
मुझे हिंद बहुत ही कम आती है
उसके लिए क्षमा
मुझे पता है आप बहुत व्यस्त हैं समय मिले तब लिखियेगा नन्हे भाई
आशीर्वाद के साथ
आपकी गुड्डोदादी

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

आत्मीय!

वन्दे मातरम.

किराविणी, अमोजिनी, अंबुजा, पुन्नण आदि कमल पुष्प के पर्यायवाची हैं. सबका अर्थ कमल है. दुबई से पूर्णिमा वर्मन जी का अनुरोध था कि मैं ऐसा गीत रचून जिसमें कमल के अधिकतम पर्यायवाची शब्द आये हों.

पद से आशय कविता छंद की पंक्ति से है. द्विपदी जिसमें दो पद हों. जैसे दोहा, सोरठा, शे'र आदि. त्रिपदी जिसमें तीन पद हों जैसे हाइकु, जनक छंद, ककुप, गायत्री आदि.
चतुष्पदी जिसमें चार पद हों जैसे सवैया, घनाक्षरी, मुक्तक, चौपदा, तुक्तक आदि. शतपदी जिसमें छ: पद हों जैसे कुण्डली आदि.

सलिला अर्थात नदी, दोहा सलिला भावार्थ दोहा की नदी की तरह यात्रा जिसमें लगातार लहरों की तरह नए-नए दोहे प्रवाहित होते रहें.

हिन्दी कम आना कोई दोष नहीं है, सीखने की इच्छा बहुत बना गुण है जिसे प्रणाम करते हुए अपने भीतर बनाये रखने के प्रति सजग हूँ. स्वजनों को नमन.

PADMSINGH, ने कहा…

अद्भुद प्रयोग ... सुन्दरतम

राज भाटिय़ा, ने कहा…

वाह जी... बहुत सुंदर

हिमान्शु मोहन, ने कहा…

चित्र बहुत सुंदर और दुर्लभ। मैं समझता था कि मैंने सभी कमल पुष्प देखे हैं - पर हिम-कमल आज ही देखा।
एक पुष्प और भी है जिसे थल-कमल के नाम से पुकारते हैं उत्तर-प्रदेश में। उसके अन्य नाम भी हैं, परन्तु एकाधिक स्रोतों से उसका प्रचलित नाम थल-कमल ही सुना तो जिज्ञासा बनी है कि क्या यह वाकई कमल कहलाने का अधिकारी पुष्प है, जब खिलता है तो श्वेत होता है और दो दिन पश्चात गुलाबी, और सूख कर झरने तक रक्तवर्ण हो जाया करता है यह पुष्प।
और रचना का तो कहना ही क्या! आचार्य जी के आचार्यत्व को शत-शत नमन। अति सुन्दर रचना - हिन्दी के शुद्ध और सुष्ठु किन्तु सरस प्रयोग ने आप्यायित किया। आभार!

प्रवीण पाण्डेय, ने कहा…

अभी तक अमृत उतार रहा हूँ ।