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गुरुवार, 29 जुलाई 2010

अभिनव प्रयोग दोहा-हाइकु गीत समस्या पूर्ति: प्रतिभाओं की कमी नहीं... संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग / समस्या पूर्ति:

दोहा-हाइकु गीत

प्रतिभाओं की कमी नहीं...

संजीव 'सलिल'
*

*
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
         धूप-छाँव का खेल है
         खेल सके तो खेल.
         हँसना-रोना-विवशता
         मन बेमन से झेल.

         दीपक जले उजास हित,
         नीचे हो अंधेर.
         ऊपरवाले को 'सलिल' 
         हाथ जोड़कर टेर.

         उसके बिन तेरा नहीं
         कोई कहीं अस्तित्व.
         तेरे बिन उसका कहाँ
         किंचित बोल प्रभुत्व?

क्षमताओं की
कमी नहीं किंचित
समताओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
       पेट दिया दाना नहीं.
       कैसा तू नादान?
       'आ, मुझ सँग अब माँग ले-
        भिक्षा तू भगवान'.

        मुट्ठी भर तंदुल दिए,
        भूखा सोया रात.
        लड्डूवालों को मिली-
        सत्ता की सौगात.

       मत कहना मतदान कर,
       ओ रे माखनचोर.
       शीश हमारे कुछ नहीं.
       तेरे सिर पर मोर.

उपमाओं की
कमी नहीं किंचित
रचनाओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
http://divyanarmada.blogspot.com

4 टिप्‍पणियां:

- anandkrishan@yahoo.com ने कहा…

badhiya hai- naye upmaanon kaa saarthak prayog.......

saadar-

आनंदकृष्ण, जबलपुर
मोबाइल : 09425800818
http://hindi-nikash.blogspot.com

- ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी ,
सुन्दर भाव ! एक एतिहासिक सत्य यह भी है कि सदा
विपदाओं से रक्षा प्रतिभाओं की बदौलत ही संभव हो सकी है |
अतीत है गवाह , वर्तमान में प्रवाह , और भविष्य में निर्वाह
सभी तो प्रतिभाओं की बदौलत संभव हुआ था , हो रहा है
और आगे भी होगा |
सादर,
कमल

Pratibha Saksena ekavita ने कहा…

सचमुच आपके आचार्यत्व की व्याप्ति अनेक दिशाओँ में है .
- प्रतिभा

- ahutee@gmail.com ने कहा…

हिंदी प्रयोग में सुधार का अभिनव सन्देश !
साधुवाद
कमल