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रविवार, 25 जुलाई 2010

गुरु पूर्णिमा पर : दोहे गुरु वंदना के... संजीव 'सलिल'

गुरु पूर्णिमा पर :

दोहे गुरु वंदना के...

संजीव 'सलिल'
*
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गुरु को नित वंदन करो, हर पल है गुरूवार.
गुरु ही देता शिष्य को, निज आचार-विचार..
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विधि-हरि-हर, परब्रम्ह भी, गुरु-सम्मुख लघुकाय.
अगम अमित है गुरु कृपा, कोई नहीं पर्याय..
*
गुरु है गंगा ज्ञान की, करे पाप का नाश.
ब्रम्हा-विष्णु-महेश सम, काटे भाव का पाश..
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गुरु भास्कर अज्ञान तम्, ज्ञान सुमंगल भोर.
शिष्य पखेरू कर्म कर, गहे सफलता कोर..
*
गुरु-चरणों में बैठकर, गुर जीवन के जान.
ज्ञान गहे एकाग्र मन, चंचल चित अज्ञान..
*
गुरुता जिसमें वह गुरु, शत-शत नम्र प्रणाम.
कंकर से शंकर गढ़े, कर्म करे निष्काम..
*
गुरु पल में ले शिष्य के, गुण-अवगुण पहचान.
दोष मिटा कर बना दे, आदम से इंसान..
*
गुरु-चरणों में स्वर्ग है, गुरु-सेवा में मुक्ति.
भव सागर-उद्धार की, गुरु-पूजन ही युक्ति..
*
माटी शिष्य कुम्हार गुरु, करे न कुछ संकोच.
कूटे-साने रात-दिन, तब पैदा हो लोच..
*
कथनी-करनी एक हो, गुरु उसको ही मान.
चिन्तन चरखा पठन रुई, सूत आचरण जान..
*
शिष्यों के गुरु एक है, गुरु को शिष्य अनेक.
भक्तों को हरि एक ज्यों, हरि को भक्त अनेक..
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गुरु तो गिरिवर उच्च हो, शिष्य 'सलिल' सम दीन.
गुरु-पद-रज बिन विकल हो, जैसे जल बिन मीन..
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ज्ञान-ज्योति गुरु दीप ही, तम् का करे विनाश.
लगन-परिश्रम दीप-घृत, श्रृद्धा प्रखर प्रकाश..
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गुरु दुनिया में कम मिलें, मिलते गुरु-घंटाल.
पाठ पढ़ाकर त्याग का, स्वयं उड़ाते माल..
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गुरु-गरिमा-गायन करे, पाप-ताप का नाश.
गुरु-अनुकम्पा काटती, महाकाल का पाश..
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विश्वामित्र-वशिष्ठ बिन, शिष्य न होता राम.
गुरु गुण दे, अवगुण हरे, अनथक आठों याम..
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गुरु खुद गुड़ रह शिष्य को, शक्कर सदृश निखार.
माटी से मूरत गढ़े, पूजे सब संसार..
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गुरु की महिमा है अगम, गाकर तरता शिष्य.
गुरु कल का अनुमान कर, गढ़ता आज भविष्य..
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मुँह देखी कहता नहीं, गुरु बतलाता दोष.
कमियाँ दूर किये बिना, गुरु न करे संतोष..
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शिष्य बिना गुरु अधूरा, गुरु बिन शिष्य अपूर्ण.
सिन्धु-बिंदु, रवि-किरण सम, गुरु गिरि चेला चूर्ण..
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गुरु अनुकम्पा नर्मदा,रुके न नेह-निनाद.
अविचल श्रृद्धा रहे तो, भंग न हो संवाद..
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गुरु की जय-जयकार कर, रसना होती धन्य.
गुरु पग-रज पाकर तरें, कामी क्रोधी वन्य..
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गुरुवर जिस पर सदय हों, उसके जागें भाग्य.
लोभ-मोह से मुक्ति पा, शिष्य वरे वैराग्य..
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गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण.
शिष्य और गुरु जगत में, केवल दो ही वर्ण..
*
संस्कार की सान पर, गुरु धरता है धार.
नीर-क्षीर सम शिष्य के, कर आचार-विचार..
*
माटी से मूरत गढ़े, सद्गुरु फूंके प्राण.
कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु, भव से देता त्राण..
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गुरु से भेद न मानिये, गुरु से रहें न दूर.
गुरु बिन 'सलिल' मनुष्य है, आँखें रहते सूर.
*
टीचर-प्रीचर गुरु नहीं, ना मास्टर-उस्ताद.
गुरु-पूजा ही प्रथम कर, प्रभु की पूजा बाद..
********
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

14 टिप्‍पणियां:

गुड्डोंदादी: ने कहा…

बिटवा भाई

चिरंजीव भवः

बहुत ही सुंदर दोहे आपने घड घड के लिखें है

क्या आज के बच्चे भविष्य के नेता ,माता पिता इन्हें समझ पायेंगे

यही चिंता है

- shakun.bahadur@gmail.com ने कहा…

आ.आचार्य जी,
गुरु-पूर्णिमा के अवसर पर इन सार्थक एवं सशक्त दोहों
ने मन को आनन्दित किया। गुरु-गौरव के पूर्व-पठित
अनेक दोहे स्मृति में उभर आए।साधुवाद!!

-शकुन्तला बहादुर

Pratibha Saksena ekavita ने कहा…

आ.आचार्य जी ,
सुन्दर कथन !विशेष रूप से -
*
गुरुता जिसमें वह गुरु, शत-शत नम्र प्रणाम.
कंकर से शंकर गढ़े, कर्म करे निष्काम..
*
गुरु पल में ले शिष्य के, गुण-अवगुण पहचान.
दोष मिटा कर बना दे आदम से इंसान..
*
कथनी-करनी एक हो, गुरु उसको ही मान.
चिन्तन चरखा (पठान ?)रुई, सूत आचरण जान.
आभार !
- प्रतिभा

- ahutee@gmail.com ने कहा…

आ० आचार्य जी,
गुरु वन्दना पर आपके दोहे पढ़ कर मुग्ध हूँ |
आपकी कला-साधना को साधुवाद
कमल !

- ahutee@gmail.com ने कहा…

प्रतिभा बहन ,
शब्द पठान नहीं उसे " पठन " पढ़ें | टाइप से ठ दीर्घ हो गया था |
कमल

- anmolsaab@gmail.com ने कहा…

आचार्य जी
बहुत सुन्दर लगे गुरु वंदना के दोहे
साधुवाद
सादर

अनमोल

achal verma ekavita ने कहा…

गुरु की महिमा पढ़कर मन प्रमुदित हुआ |
किन्तु एक चिंता भी हो गई |
मैं गुरु dhundhu कहाँ ?
वैसे तो आप सब ही मेरे गुरु हैं, पर कोई एक मुझे अपना शिष्य स्वीकार कर लें तो
सीखना शुरू कर दूं. बहुत कुछ सीखना है , और उम्र बहुत लम्बी है अभी तो केवल ७६ का ही हूँ.

Your's ,

Achal Verma

shar_j_n ekavita ने कहा…

आदरणीय आचार्य जी,
आज ये सुन्दर दोहे पढने को मिले. ह्रदय गद-गद हो गया!
बहुत आभार आपका!
सादर,
शार्दुला !

yograj prabhakar ने कहा…

परम श्रधेय आचार्य सलिल जी - गुरु पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर समस्त OBO परिवार की ओर से मैं आपको शत शत प्रणाम कहता हूँ ! अपनी छाँव हम बच्चों पर बनाये रखिये !

Rana Pratap Singh ने कहा…

श्रद्धेय आचार्य जी
गुरु की महिमा के गुणगान करते हुए यह दोहे अपने गुरुजनों के प्रति आदर के भाव को और बढ़ा देते है......
अपना आशीर्वाद बनाये रखे

Ganesh Jee 'Bagi' ने कहा…

गुरु को पारस जानिए, करे लौह को स्वर्ण.
शिष्य और गुरु जगत में, केवल दो ही वर्ण..
परम श्रद्धेय आचार्य जी, चरण स्पर्श, आज के पावन बेला पर आपकी यह दोहे सोने पर सुहागा सरीखे हैं, बहुत बहुत धन्यवाद है आपका जो इतने बहुमूल्य दोहे हम लोगो के मध्य रखे, सभी के सभी दोहे काफी अर्थपूर्ण और उच्च भाव से भरे हुये है,
एक निवेदन है आचार्य जी, OBO पर हम सभी एक दुसरे से ही कुछ कुछ सीखते है और लिखते है यदि आप का आशीर्वाद यहाँ पोस्ट हुये रचनाओं को भी मिलता रहे तो हम सभी बहुत बहुत आप के आभारी होंगे,धन्यवाद

Sanjay kumar singh ने कहा…

Guru purnima key din ees sey badhkar kuchh bhi nahi ho sakta , achhi rachna , thanks sir,

ksantosh_45@yahoo.co.in ने कहा…

आदरणीय संजीव जी,
गुरू वन्दना के दोहों को पढ़ कर अत्यन्त हर्ष हुआ।
सभी दोहे अच्छे हैं । मेरी बधाई स्वीकारें।
सन्तोष कुमार सिंह

कविता रावत … ने कहा…

Gurupurnima ke awasar par sundar saargarbhit saarthak prastuti ke liye abhar.
Gurupurnima kee haardik shubhkamnayne