कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

रचना और रचयिता संजीव 'सलिल'

रचना और रचयिता
संजीव 'सलिल'
*















*
किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.
मात-पिता बेटे-बेटी में-
अगर न हों तो दिखला दो...
*
बीज हमेशा रहे पेड़ में,
और पेड़ पर फलता बीज.
मुर्गी-अंडे का जो रिश्ता
कभी न किंचित सकता छीज..
माया-मायापति अभिन्न हैं-
नियति-नियामक जतला दो...
*
कण में अणु है, अणु में कण है
रूप काल का- युग है, क्षण है.
कंकर-शंकर एक नहीं क्या?-
जो विराट है, वह ही तृण  है..
मत भरमाओ और न भरमो-
सत-शिव-सुन्दर सिखला दो...
*
अक्षर-अक्षर शब्द समाये.
शब्द-शब्द अक्षर हो जाये.
भाव बिम्ब बिन रहे अधूरा-
बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...
****************************
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com

13 टिप्‍पणियां:

Dr.M.C. Gupta ✆ ekavita ने कहा…

सलिल जी,

सुंदर एवं सत्य--


किस रचना में नही रचयिता,
कोई मुझको बतला दो.

****

इस कथन की पुष्टि एक सामान्य उदाहरण से करना चाहता हूँ. कुछ लेखक ऐसे होते हैं जिनकी रचना पर टिप्पणी करने को मन आतुर नहीं होता. कारण कोई वैमनस्य नहीं, केवल यह तथ्य कि जब उनकी कविता को पढ़ते हैं तो सहसा मात्रा-छंद- बहर के नियमों के उल्लंघन के कारण प्रवाह में गतिरोध प्रतीत होता है, जैसे कौर खाते समय सहसा कंकरआ जाए. यदि किसी लेखक विशेष की रचनाएं पढ़ते समय ऐसा अक्सर होता हो तो मन में ऐसे लेखक के व्यक्तित्व के बारे यह धारणा बन जाना स्वाभाविक सा है कि उसके मानसिक कार्य-कलाप में संभवत: स्वानुशासन की कमी है.

--ख़लिश

achal verma ekavita ने कहा…

कविता जब पूज्य बने कोई , कवि पूज्य स्वयं ही हो जाता |
जैसे मानस को पढ़कर के , तुलसी पर मस्तक झुक जाता |
यह अहो भाग्य मैं समझूं जब कोई रचना मन मुग्ध करे ,
जो मिले रचयिता कहीं मुझे उससे जोडू अटूट नाता ||
राकेश खलिश आचार्य सलिल की पढ़ पढ़ कर सब रचनाएं |
प्रतिभा आनंद अमित प्रताप और सुरेन्द्र सभी की याद आये |
ऐसी ये याद बनी गहरी , मन कभी इन्हें न भुला पाए |
और कमल कुसुम से रचनाकारों से अपनापन बढ़ जाए |
बढ़ता जाए , मन मुस्काए|
शार्दूला , मैत्रेयी चंदावरकर न भूलें कभी , ये मन में रहें ,
इनसे जो बना रहे नाता , तो कभी नहीं हम मर पायें ||

Your's ,

Achal Verma

kusum sinha ekavita ने कहा…

priy sanjiv ji
namaskar
aapki kavita padhkar man mugdh ho gaya bahut sundar aur sarthak kavita bahut badhai
kusum

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

खलिश, कुसुम जी से अचल, पा परिमल-आशीष.
'सलिल' धन्य हो रहा है, रहिये सदय मनीष..

Pratibha Saksena ekavita ने कहा…

बहुत सुन्दर और यथार्थ भी .
साधु!
- प्रतिभा.

शकुन्तला बहादुर ने कहा…

अचल जी,
आपका कथन नितान्त सत्य है।

- shakun.bahadur@gmail.com ने कहा…

यथार्थ की मनोरम अभिव्यक्ति के लिये आपका साधुवाद!!

शकुन्तला

Pratibha Saksena ekavita ने कहा…

आ. अचल जी ,
जो मिले रचयिता कहीं मुझे उससे जोडू अटूट नाता |
नाता तो रचना पढ़ने के साथ ही जुड़ जाता है और प्रतिक्रिया पा कर दूसरा मानस भी संयुक्त हो जाता है .
मुझे लगता है .इतने दिनों में जो आपसी समझ विकसित हो गई वह संबंध भी कुछ कम महत्व नहीं रखता.
सादर ,
प्रतिभा.

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन रचना संजीव 'सलिल' जी. बहुत खूब!

Maria Mcclain … ने कहा…

You have a very good blog that the main thing a lot of interesting and beautiful! hope u go for this website to increase visitor.

PRAN : ने कहा…

Sashakt rachnaa.Badhaaee aur shubh kamna.



PRAN

Prajyan Pande ने कहा…

"रचना और रचयिता:

बिम्ब भाव के बिन मर जाये.
साहुल राहुल तज गौतम हो
बुद्ध, 'सलिल' मत झुठला दो...waah kya baat hai...salil ki tarah bah rahe hain bhaaw!!:

ब्लॉगर सूर्यकान्त गुप्ता … ने कहा…

शानदार कविता! बधाई।