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मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

लघु कथा: शब्द और अर्थ --संजीव वर्मा "सलिल "

लघु कथा: शब्द और अर्थ
संजीव वर्मा "सलिल "

शब्द कोशकार ने अपना कार्य समाप्त किया...कमर सीधी कर लूँ , सोचते हुए लेटा कि काम की मेज पर कुछ खटपट सुनायी दी... मन मसोसते हुए उठा और देखा कि यथास्थान रखे शब्दों के समूह में से निकल कर कुछ शब्द बाहर आ गए थे। चश्मा लगाकर पढ़ा , वे शब्द 'लोकतंत्र', प्रजातंत्र', 'गणतंत्र' और 'जनतंत्र' थे।

शब्द कोशकार चौका - ' अरे! अभी कुछ देर पहले ही तो मैंने इन्हें यथास्थान रखा रखा था, फ़िर ये बाहर कैसे...?'

'चौंको मत...तुमने हमारे जो अर्थ लिखे हैं वे अब हमें अनर्थ लगते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा लोक तंत्र लोभ तंत्र में बदल गया है। प्रजा तंत्र में तंत्र के लिए प्रजा की कोई अहमियत ही नहीं है। गण विहीन गण तंत्र का अस्तित्व ही सम्भव नहीं है। जन गण मन गाकर जनतंत्र की दुहाई देने वाला देश सारे संसाधनों को तंत्र के सुख के लिए जुटा रहा है। -शब्दों ने एक के बाद एक मुखर होते हुए कहा


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10 टिप्‍पणियां:

डॉ. जयप्रकाश गुप्त ने कहा…

We have devised Hindi words with our thought in English, so Democracy was translated- Prajatantra/Janatantra/loktantra etc., I don't know which is correct.
Yet, practically in Democracy neither of these words can be justified here in Bharat

Sapna Verma ने कहा…

accha likhte hain aap.

Sanjay Ahuja ने कहा…

bahut achchha

Arpit Pathak ने कहा…

Arpit Pathak

amzing :)

Rajendra Agarwal ने कहा…

मुझे तो यह गड़बड़ तंत्र ज्यादा नजर आता है .इस देश का गण तो बेचारा मजबूर है.सारी सड़ांध तंत्र ने पैदा क़ी है .इस देश में आज भी यानि २०१० में ३५ करोड़ लोग निरक्षर है ,३२ करोड़ लोगो को पीने का साफ़ पानी उपलभ्ध नहीं है .२५करोद लोग चिकित्सा सुविधाओ से मरहूम है .78%लोग आज भी २० रूपये रोज पर गुजरा करने पर मजबूर है .जब कि OUR POLITICIANS AND BUREAUCRATS ... और देखेंLIVE IN HUGE HOUSES IN LUTYENS`DELHI AND THE STATE CAPITALS,OUR CORPORATE LEADERS SPLURGE MONEY ON MANSIONS,YACHTS AND PLANES, AND OUR YOUTH REVEL IN THEIR LATEST SPORT SHOES.ऐसे मेंआप किस गण से अपेक्षा पाल रहे है .. यदि फिजा बदलनी है तो पहले तंत्र को ही बदलना होगा .यथा राजा तथा प्रजा .

Lieut Sushma Mathur ने कहा…

Sachinji aapki tahey dill se tarif karti hu .... pata nahi kahan se aap chhun chhun kar itne khoobsoorat notes lekar aatey hei ... :).
Brilliant piece of writing !!

Nshah Hemnidhi ने कहा…

Sachin, Shabd to saare kho gaye hai, vismrit ho gaye hai, shahro ke naam badal jaate , insano ke kaam,
achha vyang likha hai
badhai

Ramakant Sharma ने कहा…

Kya karen Bhai hame Congress ke alaawa koi aur bhaata hi nahin.

Sanjiv Verma 'Salil' ने कहा…

dhanyavad, sabhee pathakon ka utsahvardhan hetu aabhaar.

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

भारत में प्रजातंत्र, गणतंत्र और जनतंत्र की अवधारणा और शासन व्यवस्था वैदिक काल में भी थी. पश्चिम में यह बहुत बाद में विकसित हुई, वह भी आधी-अधूरी. पश्चिम की डेमोक्रेसी ग्रीस में 'डेमोस' आधारित शासन व्यवस्था की भौंडी नकल है, जो बिना डेमोस के बिना ही खड़ी की गाई है. दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद भारत ने 'कहीं का ईंट कहीं का रोड़ा. भानुमती ने कुनबा जोड़ा' की तर्ज़ पर इसे अपना लिया. यह प्रणाली तीन खम्भों सरकार, कार्यपालिका व् न्यायपालिका पर आधारित है. इसकी अस्थिरता के कारण चौथे खम्भे के रूप में प्रेस (जनमत) को गिना जाता है. भारतीय व्यवस्था में राजगुरु, राजा, महामंत्री, बलाध्यक्ष तथा नगर सेठ के नाम से पञ्च स्तम्भ थे जो अधिक संतुलित तथा टिकाऊ शासन दे सकते हैं. स्वतंत्रता सत्याग्रहों में संघर्ष कर रहे हमारे अधिकतर नेता इंग्लॅण्ड से पढ़कर आये थे, उनके लिये पश्चिम ही आदर्श था. पूर्व के अतीत के बारे में वे अल्प ही जानते थे. अतः, पश्चिम के प्रादर्श को चुन लिया. गाँधी जी ने सिविल सेवा भंग करने के लिये इसीलिये कहा था कि पश्चिम पूर्व पर लड़ न जाये किन्तु नेहरी जी ने आई. ए. एस. के नाम पर उन्हें बनाये रखा. फलतः, लोर्ड मैकाले ने पश्चिमी मानसिकता से युक्त जिस भारतीय पीढी की भविष्यवाणी इंग्लॅण्ड की संसद में की थी वह आज सचाई है. इस लघु कथा को लिखने का उद्देश्य इन बिन्दुओं पर चिन्तन हेतु प्रेरित करना है.

रमाकांत जी! देश हित के चिंतन में किसी राजनैतिक दल से जुड़ाव कहाँ बाधक है? वैसे भी कोंग्रेस और भारतीय जनता दल वैचारिक रूप से मध्यममार्गी पूँजीवादी सोच के दल हैं जिनको साथ होना चाहिए. हर चुनाव में जनता इन्हें बहुमत देती है पर नेताओं के अहम् के टकराव के कारण ये जनमत की अवहेलना कर ठुकराए गए दलों से समर्थन की भीख माँगकर पक्ष-विपक्ष में बाँट जाते हैं और कमजोर सरकार बनाकर देश का अहित करते हैं. वैचारिक रूप से कोंग्रेस+ बी,जे.पी., समाजवादी +साम्यवादी तथा अन्य कुल ३ ही समूह हों तो जनता को चयन का सही अवसर मिले. अस्तु...फिर कभी.