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शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

निमाड़ी दोहा:

 निमाड़ी दोहा:

संजीव 'सलिल'
पाठकों की सुविधा को ध्यान में रखकर निमाड़ी दोहों का अर्थ दिया जा रहा है. यदि हर भारतवासी देश के विविध भागों में बोली जा रही भाषा-बोली को समझ सके तो राजनैतिक टकराव के स्थान पर साहित्यिक और सामाजिक एकता बलवती होगी. विवाह या आजीविका हेतु अन्य अंचल में जाने पर परायापन नहीं लगेगा.

जिनी वाट मंs झाड नी, उनी वांट की छाँव.
नेह मोह ममता लगन, को नारी छे ठाँव..

जिस राह में वृक्ष हो वहीं छाँह रहती है. नारी में ही स्नेह, मोह, ममता और लगन का निवास होता है अर्थात नारी से ही  स्नेह, मोह, ममता और लगन प्राप्त हो सकती है.
*
घणा  लीम को झाड़ छे, न्यारो देस निमाड़.
धौला रंग कपास को, जंगल नदी पहाड़..

नीम के सघन वृक्ष की तरह मेरा निमाड़ देश भी न्यारा है जिसमें धवल सफ़ेद रंग की कपास (रुई), जंगल, नदी तथा पर्वत शोभ्यमान हैं.
 *
लाल निमाड़ी मिर्च नंs, खूब गिराई गाजs.
पचरंग चूनर सलोणी, अजब अनोखी साजs.

निमाड़ में पैदा होने वाली तीखी सुर्ख लाल मिर्च प्रसिद्ध है. निमाड़ की तीखी लाल मिर्च ने छक्के छुड़ा दिए. पाँच रंगों में सजी सुंदरियों की शोभा ही न्यारी है.
*
पेला-काला रंग की, तोर उड़दया डाल.
हरी मूंग-मक्की मिली, गले- दे रही ताल..

निमाड़ में नरमदा नदी के किनारे झूमती फसलों को देखकर कवि कहता है पीले रंग की तुअर, काले रंग की उड़द तथा हरे रंग की मूंग और मक्का की फसलें खेतों में ताल दे-देकर नाचती हुई प्रतीत हो रही हैं.  *
ज्वारी-रोटो-अमाड़ी,  भाजी ताकत लावs.
नेह नरमदा मंs नहा, खे चल जीवन-नावs..

ज्वार की रोटी, अमाड़ी की भाजी खाकर शरीर शक्तिवां होता है. पारस्परिक भाईचारे रूपी नरमदा में रोज नहाकर आनंदपूर्वक ज़िंदगी बिताओ.
*
आदमी छे पंण मनुस नी, धन नी पंण धनवान.
पाणी छे पंण मच्छ नी, गाँव छे णी हनमान..

यहाँ कवि विरोधाभासों को इंगित करता है. जो आदमी मनुष्य नहीं है वह भी कोई आदमी है. जिसके पास धन नहीं है वह भी धनवान है अर्थात धनवान वास्तव में निर्धन है. जहाँ पानी है पर मछली नहीं है वह व्यर्थ है क्योंकि कुछ न हो तो मछली पकड़-खा कर भूख मिटाई जा सकती है. मछली पानी को स्वच्छ करती है. मछली न होना अर्थात पानी गंदा होना जिसे पिया नहीं जा सकता. अतः वह व्यर्थ है. इसी तरह  जिस गाँव में हनुमान जी का मन्दिर न हो वह भी त्याज्य है क्योंकि हनुमान जी सच्चरित्रता, पराक्रम, संयम, त्याग और समर्पण के पर्याय हैं जहाँ वे न हों वहाँ रहना व्यर्थ है.

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--- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

1 टिप्पणी:

shashi ranjan ने कहा…

salil jii jai bhojpuri

Bahut sundar baa i doha rauwa bahut musakil kam ke bara asani se
safalta purbak dohara rahal bani u dhnywad ke patr baa

Doha ke sath sath okar arth dihala se samajhe me kono paresani na hola

bahut bahut dhnywa

jai bhojpuri