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शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

ज्योतिष की परीक्षा : पूर्व निर्धारित नाटक - कुछ सवाल --अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'


ज्योतिष पर प्रतिबन्ध की माँग और विरोध : अभियंता संजीव वर्मा 'सलिल'



 ज्योतिष की परीक्षा : पूर्व निर्धारित नाटक - कुछ सवाल

* ज्योतिष के विरोधियों का तर्क यह है कि इस विधा का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है और यह अंध विश्वास पर आधारित है. यह भी कि इससे आम आदमी भाग्य पर विश्वास कर कर्मठता से दूर होगा. दूसरी ओर ज्योतिष को व्यवसाय बनानेवाले निथालों की जमात खड़ी हो जायेगी जो आम लोगों की सरलता का लाभ लेकर ठगी करेगी तथा इसकी इन्तिहाँ बाल-बलि जैसे प्रकरणों में होगी.
 
* इसमें कोई संदेह नहीं कि इन तर्कों में दम है पर यह भी सच है कि इनमें से कोई भी तर्क अंतिम सच नहीं है.
 
* ज्योतिष को विज्ञानं सम्मत न माननेवालों के पास अपने इस मत के समर्थन में कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है सिवाय इसके कि कुछ ज्योतिषी वह नहीं कर सके जिसका उन्होंने दावा किया था.
 
* सच है कि वे स्वयंभू प्रदर्शनकारी झूठे सिद्ध हुए पर ज्योतिष विधा झूठी सिद्ध नहीं हुई. क्या पूर्व में कई वैज्ञानिकों के प्रयोग असफल तथा बाद में सफल नहीं हुए? यदि असफलता को ही सच-झूठ का अंतिम आधार माना जाये तो कोई उन्नति ही नहीं हो सकेगी.
 
* प्रश्न यह भी है कि जिन्होंने परखने का प्रयास किया उनकी अपनी योग्यता और नीयत कैसी है? क्या वे ज्योतिष को नकारने का पूर्वाग्रह लेकर समूचा आयोजन मात्र इसलिए नहीं कर रहे थे कि उनके कार्यक्रम और चैनल की टी.आर.पी. बढे? हम जानते हैं कि बिग बास, नृत्य और गीत प्रतियोगिता ही नहीं खेल प्रतियोगिताएँ तक धनार्जन के लिये हो रही हैं तथा कब, कहाँ क्या होना है ? यह सब पहले से निर्धारित होता है. यहाँ जीत-हार ही नहीं सच-झूठ भी नकली होता है. ऐसी स्थिति में यह कैसे माना जाये कि ज्योतिष की जड़ खोदने जा रहे महानुभावों की नीयत में खोट नहीं थी? यदि उनका उद्देश्य सही था तो इसके लिये ज्योतिष के विद्वानों को ही परीक्षक क्यों नहीं बनाया गया?
 
* प्रश्न परखे जानेवाले ज्योतिषियों के चयन की विधि तथा योग्यता का भी है. कौन बतायेगा परखे गए लोग वास्तव में विधा के विद्वान थे... केवल अभिनेता ही नहीं. यह कैसे सिद्ध होगा कि यह सब पूर्व निर्धारित नाटक नहीं था जिसके पात्र धन लेकर वह भूमिका निभा रहे थे जो उन्हें दी गयी थी. सच-झूठ को परखने की विधि भी संदेह से परे नहीं है.
 
* विचारणीय यह भी है कि किसी विषय का परीक्षक वही हो सकता जो उस विषय में निष्णात हो. किसी विषय का प्रारंभिक ज्ञान भी न रखनेवाला उस विषय की सार्थकता पर कोई निर्णय कैसे कर सकता है? ज्योतिष की वैज्ञानिकता की परख वे ही कर सकते हैं जो इस विषय के ज्ञाता हैं पर इससे पेट नहीं पालते. ज्योतिष से पेट पालना अपराध नहीं है पर ऐसे जाँचकर्ताओं के निष्कर्ष पर ज्योतिष विरोधी यह कहकर उँगली उठायेंगे कि उन्होंने निजी स्वार्थवश ज्योतिष के पक्ष में फैसला दिया.
 
* दूरदर्शन पर जिन्होंने भी ज्योतिष को झूठा सिद्ध करनेवाले ये भोंडे कार्यक्रम देखे होंगे उन्हें पहले ही आभास हो जाता होगा कि जो किया और कराया जा रहा है उसका परिणाम क्या होगा? इसी से सिद्ध होता है कि यह सब पूर्व नियोजित और सुविचारित था. * अंध श्रद्धा उन्मूलन के नाम पर सदियों से स्थापित किसी विषय और विधा की जड़ों में मठा डालकर गर्वित होने का भ्रम वही पाल सकता है जो नादान या स्वार्थप्रेरित हो.
* एक और बिंदु विचारणीय है कि क्या ज्योतिष को केवल सनातन धर्मी मानते हैं? इस्लाम के अनुयायी नजूमियों को स्वीकारते है. ईसाई भी ज्योतिष पर विश्वास करते हैं पर ज्योतिष को परखने के नाम पर केवल सनातनधर्मी ज्योतिषी परखे गए क्योंकि सनातनधर्मी ही सहिष्णु हैं. यदि निष्पक्षतापूर्वक ज्योतिष को परखा जाना था तो सभी प्रकार के ज्योतिषियों की परीक्षा विषय के विद्वान् विषयसम्मत तरीके से लेते.
 
* ज्योतिष के विविध अंग तथा उपांग हैं. हस्त रेखा, पद रेखा, मस्तक रेखा, शारीरिक गठन, कुण्डली, शगुन विद्या, प्रश्नोत्तर विद्या आदि अनेक ज्ञात-अज्ञात पक्ष हैं ज्योतिष के... समस्या की पहचान तथा निदान के अनेक उपायों में से किन्हें और क्यों चुना गया? इसका आधार क्या था? जिन्हें चुद दिया गया उसके पीछे क्या कारण और धरना है? छोडी गयी दिशों को सही माना गया या एक-के बाद एक उन को भी झूठा सिद्ध किया जाएगा? यह प्रश्न अनुत्तरित है.
 
* इस समस्त चर्चा का उद्देश्य मात्र इतना है कि दूरदर्शनी मनोरंजक कार्यक्रमों को प्रमाण नहीं माना जा सकता. ऐसे कार्यक्रम उद्देश्य विशेष से बनाये और दिखाए जाते हैं. भारत शासन ने इन कुछ कार्यक्रमों के कारण सदियों से परखी और स्वीकारी गयी ज्योतिष विद्या पर प्रतिबन्ध लगाने की दुर्बुद्धिपूर्ण माँग को अस्वीकार कर एक सही निर्णय लिया है जिसे आम लोगों द्वारा सराहा जाना जरूरी है. ज्योतिषप्रेमियों को इस निर्णय हेतु भारत सरकार को धन्यवाद देना चाहिए और सम्बंधित मत्रियों औए अधिकारियों को साधुवाद देना चाहिए. किसी सही निर्णय को समय पर ना सराहा जाये तो उसका औचित्य शंकास्पद हो जाता है.
 
* दिव्य नर्मदा परिवार तहे-दिल से ज्योतिष पर प्रतिबन्ध लगाने की माँग को ठुकराने के निर्णय के साथ है तथा निर्णयकर्ताओं के प्रति आभार व्यक्त करता है.

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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

विदेशियों के शासन काल में तो लुकछिप कर ज्‍योतिष जैसे प्राचीन धरोहर को संभालकर रखा गया .. स्‍वतंत्र देश में तो इसके अध्‍ययन की छूट मिलनी ही चाहिए थी .. सरकार के इस फैसले का हम ज्‍योतिषी भी स्‍वागत करते हैं .. पर इतने से ही ज्‍योतिष का भला नहीं हो सकता .. दूसरे विज्ञानों की तरह ज्‍योतिष के विकास पर भी खर्च किया जाना चाहिए .. दूसरे विज्ञानों से तालमेल बिठाकर उसे अधिक उपयोगी बनाया जाना चाहिए !!

दिव्य नर्मदा divya narmada ने कहा…

aapka kahana bilkul sahee hai. durbhagya se azadee keval netaon aur afsaron ko mlee jan samanya ka khoon choosane kee...

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma ने कहा…

ज्योतिष शास्त्र को हिन्दू, मुस्लिम या किसी खाश धर्म या जाती से जोड़ना ठीक नहीं है. यह तो एक विज्ञान है और यदि इसकी बात सही है तो फिर इसे झूठा साबित करने का बेमतलब का प्रयास करना सही नहीं है. हाँ, ज्योतिष में जहाँ कमी है उसमें भी उसी तरह शोध हो रहे हैं जैसे अन्य मान्यप्राप्त विज्ञान में होते हैं. अन्य मान्यताप्राप्त विज्ञान में भी कई बार गलती देखने में आता है तो उसे गलत साबित करने लिए कोई क्यों नहीं हल्ला करते हैं? हाँ, यह बात सही है कि कोई ज्योतिषी या कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपने को पूर्ण जानकार या विद्वान होने का दावा नहीं कर सकता है. और किसी ज्योतिषी या किसी भी व्यक्ति के जानकारी के कमी के कारण कोई बात गलत हो जाती है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह संबंधित विज्ञान ही गलत है.