५ जून विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष..मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का जल गंगाजल से भी ज्यादा शुद्ध है। इस तथ्य का खुलासा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में हुआ है। नर्मदा के पानी में घुलित आक्सीजन का स्तर गंगा नदी से काफी ज्यादा है, इस कारण नदियों की ग्रेडिंग में नर्मदा को बी और गंगा को सी ग्रेड दी गई है। बोर्ड विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जल की मासिक सेंपलिंग कर उसका परीक्षण करता है।
इसमे देश भर की विभिन्न नदियों के पानी का भी परीक्षण किया जाता है। परीक्षण के आधार पर नदी जल की ग्रेडिंग होती है। प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त जलों में नर्मदा नदी के पानी को सर्वाधिक उच्च गुणवत्तायुक्त पाया गया है।
नर्मदाजल को बी ग्रेड
नर्मदा जल को अधिक शुद्धता के लिए बी ग्रेड दिया गया है। नर्मदा जल की सेंपलिंग प्रदेश के होशंगाबाद, ओंकारेश्वर, महेश्वर, बड़वानी और गुजरात के जड़ेश्वर में की गई। नर्मदाजल में होशंगाबाद में घुलित आक्सीजन की मात्रा 8.8 मिग्रा प्रतिलीटर पाई गई और खंभात की खाड़ी में मिलने से पहले गुजरात के जड़ेश्वर में 7 से 10 मिग्रा प्रतिलीटर पाई गई। इन स्थानों के बीच ओंकारेश्वर में 7.8, महेश्वर में 7.6 और बड़वानी में घुलित आक्सीजन की मात्रा 9.1 मिग्रा प्रतिलीटर पाई गई। एनएमबी कालेज होशंगाबाद में इंडस्ट्रियल केमेस्ट्री के प्रोफेसर ओएन चौबे के अनुसार घुलित आक्सीजन की मात्रा जितनी ज्यादा होती है जल उतना ही अधिक शुद्ध माना जाता है।
गंगाजल को सी ग्रेड
गंगाजल की सेपलिंग उत्तरांचल, रूद्रप्रयाग, हरिद्वार, बुलंदशहर, कानपुर, रायबरेली, इलाहाबाद, बक्सर और अंत में डायमंड हार्बर में की गई। उत्तरांचल में गंगाजल में डिसाल्वड आक्सीजन(घुलित आक्सीजन) की मात्रा 9.8 पाई गई और समुद्र में मिलने से पूर्व डायमंड हार्बर प्वाइंट पर घुलित आक्सीजन का निम्नतम स्तर 5.4 मिग्रा प्रतिलीटर पाया गया। सेंपलों के आधार पर गंगाजल को सी ग्रेड दिया गया है।
गुजरात की साबरमती नदी को सर्वाधिक प्रदूषित पाया गया। इसे डी ग्रेड दिया गया है।
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 3 जून 2009
नर्मदा का जल गंगाजल से भी ज्यादा शुद्ध है।
सामाजिक लेखन हेतु ११ वें रेड एण्ड व्हाईट पुरस्कार से सम्मानित .
"रामभरोसे", "कौआ कान ले गया" व्यंग संग्रहों ," आक्रोश" काव्य संग्रह ,"हिंदोस्तां हमारा " , "जादू शिक्षा का " नाटकों के माध्यम से अपने भीतर के रचनाकार की विवश अभिव्यक्ति को व्यक्त करने का दुस्साहस ..हम तो बोलेंगे ही कोई सुने न सुने .
यह लेखन वैचारिक अंतर्द्वंद है ,मेरे जैसे लेखकों का जो अपना श्रम, समय व धन लगाकर भी सच को "सच" कहने का साहस तो कर रहे हैं ..इस युग में .
लेखकीय शोषण , व पाठकहीनता की स्थितियां हम सबसे छिपी नहीं है , पर समय रचनाकारो के इस सारस्वत यज्ञ की आहुतियों का मूल्यांकन करेगा इसी आशा और विश्वास के साथ ..
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