अभिनव प्रयोग:
दोहा-गीत
-संजीव 'सलिल',संपादक दिव्य नर्मदा
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.
स्नेह-सलिल सिंचन करें,
महकें सुमन अनेक...
*
मन-वृन्दावन में बसे,
कोशिश का घनश्याम.
तन बरसाना राधिका,
पाले कशिश अनाम..
प्रेम-ग्रंथ के पढ़ सकें,
ढाई अक्षर नेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.....
*
कंस प्रदूषण का करें,
मिलकर सब जन अंत.
मुक्त कराएँ उन्हें जो
सत्ता पीड़ित संत..
सुख-दुःख में जागृत रहे-
निर्मल बुद्धि-विवेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो, लगायें एक.
*
तरु कदम्ब विस्तार है,
संबंधों का मीत.
पुलक सुवासित हरितिमा,
सृजती जीवन-रीत..
ध्वंस-नाश का पथ सकें,
निर्माणों से छेक.
तरु कदम्ब काटे बहुत,
चलो लगायें एक.....
*********************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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मंगलवार, 9 जून 2009
दोहा-गीत संजीव 'सलिल'
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8 टिप्पणियां:
parya-chetana jagata saras geet. sadhuvaad.
purani yaad taza ho gayee. dhanyavad. subhadra ji ka kadamb yaad aa gaya.
कदम्ब जैसे भूले-बिसरे वृक्ष को प्रतिक बनाकर अपने सार्थक सन्देश दिया है.
dohe kee chhandas maryada ke palan ke sath geet ke gun-dharmon ka samavesh vastutah kathin hai. asdhuvad.
आदरणीय् आचार्य जी,
आपका इन्दौर आना हुआ यह नईदुनिया में छपी एक ख़बर से ज्ञात हुआ, खेद इस बात का है कि आपसे मुलाकात नही हो पायी।
मैनें , पहले भी हिन्द-युग्म पर यह कहा है कि मैं एकलव्य की भांति आपका शिष्य हूँ।
गुरूवर आज पुनि दीन्हें, मशविरा इक नेक
जनसंख्या को रोककर, पेड़ लगाओ अनेक
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
I like it.
भूले-बिसरे कदम्ब को याद कर आपने सुप्त चेतना को जाग्रत कर दिया.
kadamb kaisa hota hai? kahan dekh sakta hoon?
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