ॐ
मालवी सलिला :
*
कविता
बड़ा की बड़ी भूल
बालमुकुंद रघुवंशी 'बंसीदा'
*
बड़ा-बड़ा घराणा की,
बड़ी-बड़ी हे पोल।
नी हे कोई में दम,
जी उनकी उडई ले मखोल।
दूर-दराज की
तो बात कई
बड़ा का सांते रेणेवाला
बी सदा डरे।
कारण यो हे के
हर बड़ा मरनेवालो
चार-छे के सांते
ली ने मरे।
थोड़ी दूर
घिसाणा में बी
हरेक छोटो हुई
जाय चकनाचूर।
ईकई वास्ते
अपणावाला बी,
छोटा से
सदा रेवे दूर।
हूँ तमारे आज
दिवई दूं याद,
सबसे बड़ा की
एक बड़ी भूल।
ऊपरवाला ने
तीख काँटा में,
दिया हे
गुलाब का फूल।
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मालवी सलिला :
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कविता
बड़ा की बड़ी भूल
बालमुकुंद रघुवंशी 'बंसीदा'
*
बड़ा-बड़ा घराणा की,
बड़ी-बड़ी हे पोल।
नी हे कोई में दम,
जी उनकी उडई ले मखोल।
दूर-दराज की
तो बात कई
बड़ा का सांते रेणेवाला
बी सदा डरे।
हर बड़ा मरनेवालो
चार-छे के सांते
ली ने मरे।
थोड़ी दूर
घिसाणा में बी
हरेक छोटो हुई
जाय चकनाचूर।
ईकई वास्ते
अपणावाला बी,
छोटा से
सदा रेवे दूर।
हूँ तमारे आज
दिवई दूं याद,
सबसे बड़ा की
एक बड़ी भूल।
ऊपरवाला ने
तीख काँटा में,
दिया हे
गुलाब का फूल।
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1 टिप्पणी:
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