निमाड़ी कविता
सदाशिव कौतुक, इंदौर
लड़ई मत लडो रे! भई
लड़ई ने केको भलो करयो?
लड़ई में अल्यांग को मरयो
चाय वल्यांग को मरयो
हात कटs कटsगा पांय नs माथो
हुई जासे लेखरु उघाडा अडात
जो बचsगा वू बी मरेल सी कम नी हुता
तलवार अनs बंदूक नस
कदी कोई को भलो करयो?
मरन वालो मरी गयो
मारन वालो जीवतs जीव मरयो।
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2 टिप्पणियां:
निमाड़ी कविता पहली बार पढी. पूरी समझ में नहीं आयी. हिंदी अनुवाद साथ होता तो बेहतर होता.
कौतुक जी !
रचना अच्छी लगी.
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