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गुरुवार, 18 जून 2009

नवगीत: हवा में ठंडक --सलिल

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नवगीत


आचार्य संजीव 'सलिल'


हवा में ठंडक

बहुत है...


काँपता है

गात सारा

ठिठुरता

सूरज बिचारा.

ओस-पाला

नाचते हैं-

हौसलों को

आँकते हैं.

युवा में खुंदक

बहुत है...



गर्मजोशी

चुक न पाए,

पग उठा जो

रुक न पाए.

शेष चिंगारी

अभी भी-

ज्वलित अग्यारी

अभी भी.

दुआ दुःख-भंजक

बहुत है...



हवा

बर्फीली-विषैली,

नफरतों के

साथ फैली.

भेद मत के

सह सकें हँस-

एक मन हो

रह सकें हँस.

स्नेह सुख-वर्धक

बहुत है...



चिमनियों का

धुँआ गंदा

सियासत है

स्वार्थ-फंदा.

उठो! जन-गण

को जगाएँ-

सृजन की

डफली बजाएँ.

चुनौती घातक

बहुत है...


नियामक हम

आत्म के हों,

उपासक

परमात्म के हों.

तिमिर में

भास्कर प्रखर हों-

मौन में

वाणी मुखर हों.

साधना ऊष्मक

बहुत है...


divyanarmada.blogspot.com
divynarmada@gmail.com

8 टिप्‍पणियां:

m.m.chatterji ने कहा…

melodious as well as contemporary.

उड़नतश्तरी ने कहा…

बेहतरीन गीत. बहुत सुन्दर लगा. प्रवाहमय.

डॉ. श्याम गुप्ता ने कहा…

उत्तम व सार्थक नवगीत सलिल जी.

बाढ़ के कूदे में निर्झर सलिल-धारा, नव-गीत के नाम पर अस्पष्ट भाव, नए-नए गढे हुए अस्पष्ट-अति दूरस्थ शब्द व मुहावरे व उनके अर्थ,रोने-धोने के कथ्य आजकल बहुत लिखे जा रहे हैं.

Dr. Deepti bhardwaj. ने कहा…

Nice poem.

Vamshi Krishna A ने कहा…

it doesnt get better.

Nice thought.

took some time to read but was good.

Can you also post a translation of the main idea in english plz.

Divya Narmada ने कहा…

The main idea behind the geet is that the youth is frustated due to the dirty politics. Self restrain, god fearing, appreciation of others & sacrifice are the only ways for betterment.

बेनामी ने कहा…

सुन्दर ...शुभ ...प्रयास ....

pro. dr. sadhana varma ने कहा…

nice poetry.