बाल गीत: लंगडी -संजीव 'सलिल'
बाल गीत:
आचार्य संजीव 'सलिल'
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लंगडी खेलें.....
*************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
शनिवार, 13 जून 2009
बाल-गीत: लंगडी खेलें... आचार्य संजीव 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
बाल-गीत: लंगडी खेलें -आचार्य संजीव 'सलिल'
आचार्य संजीव वर्मा सलिल
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
8 टिप्पणियां:
बसंत आर्य ने कहा…
बाल कविताओ के अकाल के इस दौड मे अच्छा प्रयास है
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
सुन्दर बाल कविता।
इतने अच्छे बाल गीत के लिए हार्दिक बधाई.
Science Bloggers Association ने कहा…
लंगडी का आनन्द ही कुछ और है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आचार्य जी!
आपने तो सचमुच बचपन में पहुंचा दिया । आपकी कविता पढने के बाद मै भी अपने बेटे के साथ लंगडी खेलने लगी और बाद में आपको टिप्पणी लिख रही हूं ।
बहुत मजा आया....::::::))))))
nice
my kid is learning langadee and singing it during play
सभी गुण-ग्राहियों को धन्यवाद.
एक टिप्पणी भेजें