गीतिका-१
तुमने कब चाहा दिल दरके?
हुए दिवाने जब दिल-दर के।
जिन पर हमने किया भरोसा
वे निकले सौदाई जर के..
राज अक्ल का नहीं यहाँ पर
ताज हुए हैं आशिक सर के।
नाम न चाहें काम करें चुप
वे ही जिंदा रहते मर के।
परवाजों को कौन नापता?
मुन्सिफ हैं सौदाई पर के।
चाँद सी सूरत घूँघट बादल
तृप्ति मिले जब आँचल सरके।
'सलिल' दर्द सह लेता हँसकर
सहन न होते अँसुआ ढरके।
********************************
गीतिका-२
आदमी ही भला मेरा गर करेंगे।
बदी करने से तारे भी डरेंगे.
बिना मतलब मदद कर दे किसी की
दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.
कलम थामे, न जो कहते हकीक़त
समय से पहले ही बेबस मरेंगे।
नरमदा नेह की जो नहाते हैं
बिना तारे किसी के ख़ुद तरेंगे।
न रुकते जो 'सलिल' सम सतत बहते
सुनिश्चित मानिये वे जय वरेंगे।
*********************************
(अभिनव प्रयोग)
दोहा गीतिका
तुमको मालूम ही नहीं शोलों की तासीर।
तुम क्या जानो ख़्वाब की कैसे हो ताबीर?
बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तकरीर
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।
दहशतगर्दों की हुई है जबसे तक्सीर
वतनपरस्ती हो गयी ख़तरनाक तक़्सीर
फेंक द्रौपदी ख़ुद रही फाड़-फाड़ निज चीर
भीष्म द्रोण कूर कृष्ण संग, घूरें पांडव वीर।
हिम्मत मत हारें- करें, सब मिलकर तदबीर
प्यार-मुहब्बत ही रहे मज़हब की तफ़सीर।
सपनों को साकार कर, धरकर मन में धीर।
हर बाधा-संकट बने, पानी की प्राचीर।
हिंद और हिंदी करे दुनिया को तन्वीर।
बेहतर से बेहतर बने इन्सां की तस्वीर।
हाय!सियासत रह गयी, सिर्फ़ स्वार्थ-तज़्वीर।
खिदमत भूली, कर रही बातों की तब्ज़ीर।
तरस रहा मन 'सलिल' दे वक़्त एक तब्शीर।
शब्दों के आगे झुके, जालिम की शमशीर।
***********************************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
रविवार, 28 जून 2009
तीन गीतिकाएं : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
चिप्पियाँ Labels:
ग़ज़ल,
गीतिका,
टावरी,
मुक्तिका,
संजीव 'सलिल'
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
27 टिप्पणियां:
ati sunder rachnaon ke liye aabhaar.
SWAPN ...20 June 2009 01:42
बहुत ख़ूबसूरत
BHAVON SE YUKT ACHARYA "SALIL" KEE
RACHNAAYEN PADHKAR BAHUT ACHCHHA
LAGAA HAI.KASH,UNKEE IN PANKTIYON
PAR SANSAR ANUSARAN KAR PAATAA--
BINA MTLAB MADAD KAR DE KISEE KEE
DUA KE PHOOL TUJHPAR TAB JHARENGE
----------
NAAM N CHAAHEN KAAM KAREN CHUP
VE HEE ZINDA RAHTE MARKKE
---------
HIMMAT MAT HAAREN,KAREN
SAB MILKAR TADBEER
PYAR MUHABBAT HEE RAHE
MAJHAB KEE TAFSEER
TARAS RAHAA MUN "SALIL" DE
WAQT EK TABSHEER
SHABDON KE AAGE JHUKE
ZAALIM KEE SHAMSHEER
KYA HEE ACHCHHA HOTA
AGAR ACHARYA JEE URDU-FARSEE KE
LAFZON KE ARTH HINDI MEIN DETE!
नाम न चाहें काम करें चुप
वे ही जिंदा रहते मर के।
YE DO LINE KITANI SACHHAAYEE LIYE HUYE HAI YE AACHARYA SAHIB HI LIKH SAKTE HAI .... KITANI KAMAAL KI BAAT KARI HAI UNHONE ... TINO HI RACHANAYEN HAM SIKHNE WAALON KE LIYE SAHEJANE LAYAK HAI ...
BAHOT BAHOT BADHAAYEE AACHARYA JI KO AUR AAPKO SAADAR PRANAAM GURU DEV...
ARSH
लाजबाव, बहुत सुंदर
आभार
दोनों रचनाऐं पसंद आई और तीसरी जिसमें दोहों के साथ एक बेहतरीन प्रयोगकर गीतिका के रुप में प्रस्तुत किया गया है, उसने तो मन मोह लिया. वाह!!
Lajawaab .......... thank you for poems
आचार्य श्री की सुन्दर रचनाएं ,
मन को, सदैव आनंद
व तृप्ति दे जाती हैं
आदरणीय महावीर जी ,
आभार !
इन्हें हम तक पहुंचाने के लिए -
सद`भाव सहित,
- लावण्या
20 June 2009 15:27
बहुत सुन्दर रचनाएं है।बहुत पसंद आई।आशा है इसी तरह रचनाएं पढने को मिलती रहेगी।धन्यवाद।
अच्छी रचना। नव- गीतिका ज्यादा भायी।
महावीर जी आचार्य जी को कौन नहीं जानता, उनकी रचनाएँ पहले भी पढ़ी हैं और आपके ब्लॉग़ पर उनकी रचनाएँ पढ़ कर आनंद आया,
आचार्य जी की रचनाएँ पढ़वाने का शुक्रिया!
बहरे मिलकर सुन रहे गूँगों की तकरीर
बिलख रही जम्हूरियत, सिसक रही है पीर।
kisi bhi mahatvapoorn baat ko km.se.km shabdoN meiN kaise prabhaavshali dhang se kahaa jata hai, iska spasht aur steek udaaharan hai aadarneey Aacharyaji ki lekhan shaili........
har baat vandaneey, anukaraneey.
abhivaadan svikaareiN.
---MUFLIS---
रचनाऐं पसंद आई ....
आप का ब्लाग अच्छा लगा...बहुत बहुत बधाई....
नाम न चाहें काम करें चुप
वे ही जिंदा रहते मर के।
बिना मतलब मदद कर दे किसी की
दुआ के फूल तुझ पर तब झरेंगे.
सादा जबान में कहे गए ये शेर पढने वाले के सीधे दिल में उतर जाते हैं...बहुत बहुत शुक्रिया महावीर जी, आपने उनकी रचनाओं को पढने का मौका जो हमें दिया ...सलिल साहेब को भी इन कमाल की रचनाओं के लिए बधाई...
नीरज
Bahut sundar rachana..Bahut gahri fellings...
Regards.
DevPalmistry|Know about Ur Hand
बेहतरीन ग़ज़लों की प्रस्तुति के लिये बधाई..
namaskar .. deri se aane ke liye maafi chahunga...
aacharya ji ki rachnaay shreshth hoti hai har parameter par .. chahe wo technical ho ya phit sorf bhaavo ki abhivyakti ...
unki rachnaaye raspoorn hoti hai ... waah
mera naman hai unhe ...
aapko bhi dhanywad deta hoon ki aapne unki rachnaao ko padhwaaya...
aabhar..
aapka
vijay
laajwaab hai ji alfaajon main bayaan nahi hota
रचनाएँ भाईं जिन्हें
वे भावों के मीत.
शत-शत वंदन कर उन्हें,
धन्य गीतिका-गीत.
'सलिल' स्नेह पा तर गया,
सबको नम्र प्रणाम.
महावीर जी बीच में
इत तुलसी-उत राम.
सुन्दर गीतीकाएं हैं |
बधाई|
अवनीश तिवारी
रचनाएं बहुत अच्छी लगीं. बधाई.
aacharya ji
namaskar
aapki teeno rachnaao ne man moh liya ji .... specially tisari rachana jo dohawali men hai wo amulya hai ji .. bahut sundar aur saarthak lekhan .. aapko mera pranaam sir
Aabhar
Vijay
Pls read my new poem : man ki khidki
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html
आह सलील जी को पढ़ना तो किसी आँखों, मन-मस्तिष्क के लिये किसी ट्रीट से कम नहीं..
दोहे के अनूठे प्रयोग ने चकित किया तो वहीं दोनों गीतिका ने मन मोह लिया है।
30 June 2009 17:20
बहुत ही बेहतरीन प्रयोग सलिल साहब। ऐसी पुख़्ता साहित्यिक रचनाएँ सिर्फ़ सलिल साहब ही के बस की बात है। क्या कहना ! बहुत आभार आपका।
सभी कद्रदानों को धन्यवाद.
Salil ji, jaisey aap sidhey-sadey, bhole bhale hain wasi hi aapki kavita hai. saral shabdon mein gagar bhar di hai aapney.
Shubh Kamanaoon sahit
Dr. Shareef
Karachi(Pakistan)
gms_checkmate@yahoo.com
16 July 2009 17:35
आचार्वर की कृति पढना ,एक परम सुखद अनुभूति है.....माता का वरद हस्त है इनपर....इनकी लेखनी को शत शत नमन....
आदरणीय महावीर जी, आपका यह ब्लॉग तो बस उत्कृष्ट रचनाओं का ऐसा नंदन वन है,जिसमे विचरण मन आँखों और आत्मा को तृप्ति दे जाता है.....
कोटिशः आभार आपका,इस सुन्दर मंगलकारी प्रयास हेतु .....
23 July 2009 10:49
एक टिप्पणी भेजें