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मंगलवार, 9 जून 2009

दो नवगीत - पूर्णिमा बर्मन


http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/purnimavarman.htm




रखे वैशाख ने पैर

रखे वैशाख ने पैर


बिगुल बजाती,


लगी दौड़ने


तेज़-तेज़


फगुनाहट


खिले गुलमुहर दमक उठी फिर


हरी चुनर पर छींट सिंदूरी!


सिहर उठी फिर छाँह


टपकती पकी निबौरी


झरती मद्धम-मद्धम


जैसे

पंखुरी स्वागत


साथ हवा के लगे डोलने


अमलतास के सोन हिंडोले!


धूप ओढनी चटक


दुपहरी कैसे ओढ़े


धूल उड़ाती


गली-गली


मौसम की आहट!
*****************


अमलतास
डालों से लटके
आँखों में अटके
इस घर का आसपास
गुच्छों में अमलतास
झरते हैं अधरों से जैसे मिठबतियाँ
हिलते है डालों में डाले गलबहियाँ
बिखरे हैं--
आँचल से इस वन के आँचल पर
मुट्ठी में बंद किए सैकड़ों तितलियाँ
बात बात रूठी
साथ साथ झूठी
मद में बहती वतास
फूल फूल सजी हुईं धूल धूल गलियाँ
कानों में लटकाईं घुँघरू सी कलियाँ
झुक झुक कर झाँक रही
धरती को बार बार
हरे हरे गुंबद से ध्वजा पीत फलियाँ
मौसम ने टेरा
लाँघ के मुँडेरा
फैला सब जग उजास
*******************

4 टिप्‍पणियां:

mayank ने कहा…

nice geet. melodious.

Divya Narmada ने कहा…

पूर्णिमा जी!

दिव्या नर्मदा पर पधारने हेतु धन्यवाद.

आपने दोनों गीतों में बहुत सटीक शब्द-सचित्र उकेरे हैं. साधुवाद.

संजीव 'सलिल'

अर्पिता ने कहा…

गीत अच्छे लगे.

pro. archana shrivastav, raipur ने कहा…

ruchikar geet, mn bhaye.