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मंगलवार, 10 अगस्त 2021

अनामिका तिवारी

अनामिका तिवारी: रंगकर्मी से कृषि वैज्ञानिक तक का सफ़र
#पंकज स्वामी
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अनामिका तिवारी के कई परिचय हो सकते हैं और उन्हें कई रूपों में पहचाना जाता है। वे रंगकर्मी, गायिका, नाटककार, ग़ज़लकार हैं। उन्‍होंने साहित्‍यकार के रूप में कविताएं व व्यंग्य लिखे हैं। नाटकों की समीक्षा वे सूक्ष्‍मता से करती हैं। अनामिका ने संगीत निर्देशन करते हुए सैकड़ों गीत कंपोज किए हैं। एक कृषि वैज्ञानिक के रूप में वर्षों तक उनहोंने बड़ी भूमिका निभाई है। वे प्रतिष्ठ‍ित साहित्यकार रामानुज लाल श्रीवास्तव ‘ऊंट’ की सबसे छोटी पुत्री हैं। जबलपुर के सात बार महापौर व दो बार सांसद रहे एवं रवीन्द्रनाथ टैगोर की गीतांजलि का हिन्दी में भावानुवाद करने वाले कवि, पत्रकार, कथाकार पद्मश्री भवानी प्रसाद तिवारी की पुत्रवधु हैं-अनामिका तिवारी। अनामिका तिवारी के अग्रज विनोद श्रीवास्तव खस्ता व बड़ी बहिन साधना उपाध्याय और पति सतीश तिवारी से इस श्रृंखला को पढ़ने वाले परिचित हो गए हैं। इसे इतफ़ाक ही कहेंगे कि अनामिका सहित सातों बहिनों के एकमात्र भाई विनोद श्रीवास्तव खस्ता और सतीश तिवारी पाँच बहिनों के एकमात्र भाई थे।


रामानुज लाल श्रीवास्तव ‘ऊंट’ की सबसे छोटी पुत्री के रूप में जब अनामिका का जन्म हुआ, उसके कुछ दिन पश्चात् कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला सुभद्रा कुमारी चौहान से मिलने जबलपुर आए हुए थे। एक दिन जब उनकी मुलाकात ऊंट साहब से हुई और निराला को जानकारी मिली कि घर में पुत्री का जन्म हुआ है, तब उन्होंने बातचीत में पूछा कि बेटी का नाम क्या रखा है ? ऊंट साहब ने अपने चिर परिचित विनोदपूर्ण अंदाज में कहा-‘’एटम बम’’। निराला ने कहा-‘’नहीं यह अनामिका है।‘’ इस तरह ऊंट साहब की सबसे छोटी पुत्री का नाम विधिवत अनामिका हो गया। उस समय शायद ही किसी लड़की का नाम अनामिका होता था, लेकिन ऊंट साहब की पुत्री अनामिका के नाम के बाद कई दंपतियों ने अपनी बेटियों के नाम अनामिका रखना शुरू कर दिए। अनामिका को घर में ही साहित्य‍िक व कला का वातावरण मिला। रामानुज लाल श्रीवास्तव ‘ऊंट’ के रंगकर्म के अंश पुत्र व पुत्रियों को संस्कार में मिले थे। ऊंट साहब राजनांदगांव रियासत में थे, तब वहां का जीवन राममय, कृष्णमय और इन्दर सभामय था। ऊंट साहब ने राजमहल में कृष्ण और मोहल्लों में इन्दरसभा, जिसमें सब्जपरी से ले कर राजा इन्दर के सारे पात्र निभाए थे। स्त्री पार्ट में पटु होते-होते ऊंट साहब के सवा छह फुट के कद ने विघ्न डाल दिया था। वे भारतेंदु के ‘नीलदेवी’ नाटक में पहरेदार के रूप में दो गीत प्रस्तुत करते थे। इस नाटक के दूसरे दिन हवा फैल गई-पहरेदार की भूमिका करने वाले पात्र ने खूब हाथ पैर हिला कर गीत गाए। चलते फिरते पैर दिखे। गाने सुनाई दिए। परन्तु चेहरा स्टेज के ऊपर होने से पता ही नहीं चला कि वह कलाकार कौन था ? दरअसल ऊंट साहब का सवा छह फुट कद होने से उनका सिर पर्दे के ऊपर चला गया था और सिर्फ उनका धड़ व हाथ-पैर ही दर्शकों को दिख रहे थे। भवानी प्रसाद तिवारी ने भी ‘कीचक वध’ नाटक का मराठी से हिन्दी में अनुवाद कर नाटक विधा से स्वयं को जोड़ा था।


अनामिका की पढ़ाई-लिखाई जबलपुर के सेंट नॉर्बट स्कूल से शुरू हुई। इस स्कूल में उनकी बड़ी बहिन साधना भी पढ़ चुकी थीं। बड़ी बहिन की विपरीत अनामिका कम बात करती थीं। लगभग शांत ही रहती थीं। जब कोई दस वाक्य बोलता था, तब वे सिर्फ हां या ना में उत्तर देती थीं। अनामिका को बचपन में नृत्य करने का बहुत शौक था। वे स्कूल में नृत्य में भाग लेती थीं। एक बार जब वे नृत्य में भाग लेने वाली थीं, तब एक शिक्षिका ने उनके मासूम चेहरे को देखते हुए, उन्हें ईसा मसीह के जीवन पर आधारित एक नाटक में ईसा मसीह की मुख्य भूमिका के लिए चयन कर लिया था। नाटक का मंचन अच्छा रहा, लेकिन अनामिका के लिए नाटक में अभिनय करने का मौका स्वभावगत कोई उत्तेजना का विषय नहीं बना। यहां महत्वपूर्ण बात यह रही कि सेंट नार्बट स्कूल में परम्परानुसार किसी भी छात्रा को एक विधा में भाग लेने की अनुमति थी, लेकिन अनामिका इस मामले में अपवाद रहीं। उन्हें नाटक के साथ नृत्य करने का अवसर मिला। घर के पास स्थि‍त भातखंडे महाविद्यालय में अन्य बहिनों की तरह अनामिका संगीत शिक्षा लेने लगीं। उन्होंने मध्यमा तक संगीत की शिक्षा ली।


ग्यारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् अनामिका ने जबलपुर के होमसाइंस कॉलेज में एडमिशन ले लिया। शालेय जीवन से अनामिका मिलन संस्था के कार्यक्रमों में अपना गायन प्रस्तुत करने लगी थीं। होम साइंस कॉलेज में पढ़ने के दौरान अनामिका यूथ फेस्टीवल में भाग नहीं ले पाईं। इसका कारण कॉलेज की प्राचार्य कुसुम मेहता बहुत कड़क व अनुशासन पसंद सवभाव था। उनका साफ कहना था कि कॉलेज की कोई भी छात्रा यूथ फेस्टीवल में भाग नहीं लेगी। अनामिका को प्रतियोगिता में भाग लेने नहीं मिला। अनामिका के हम उम्र विद्यार्थी यूथ फेस्टीवल में भाग ले कर और जीत कर नेहरू जी के साथ फोटो खिंचवा रहे थे। अनामिका को महसूस हुआ कि प्राचार्य की पाबंदियों के चलते वे विद्यार्थी जीवन में यूथ फेस्टीवल में कभी भाग ही नहीं ले पाएंगी। विज्ञान की पढ़ाई करते हुए उनका वर्ष 1964 में मेडिकल कॉलेज में चयन हो गया, लेकिन कुछ कारणों से वे एडमिशन नहीं ले पाईं। अनामिका ने अपनी कला प्रतिभा को विस्तार व व्यापकता देने की दृष्ट‍ि साइंस कॉलेज में बी.एससी. द्वितीय वर्ष में प्रवेश ले लिया। उन्होंने उस समय तक अपने भविष्य व कैरियर के बारे में कुछ नहीं सोचा था। वर्ष 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध का असर जबलपुर के सांस्कृतिक क्षेत्र व खासतौर से रंगकर्म पर पड़ा। उस समय यूथ फेस्टीवल जैसे आयोजन को रद्द करना पड़ा। उस दौरान अनामिका ने नेशनल डिफेंस फंड में राशि एकत्रित करने के लिए रार्बट्सन कॉलेज के सभागार में देशभक्त‍ि गीत व सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए। के. के. उपाध्याय हारमोनियम व सतीश तिवारी तबले पर संगत देते थे। अनामिका को उस समय जुनून सा चढ़ा हुआ था। दिन भर वे साथी कलाकारों के साथ अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करती रहती थीं। इन कार्यक्रमों में सुंदर ट्रूमेन की भी सहभागिता रहती थी। अनामिका ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत को जबलपुर के विभिन्‍न स्थानों में साथियों के साथ प्रस्‍तुत करती थीं। गीत सुन कर लोगों में जोश जाग जाता था।


अनामिका ने मिलन संस्था के मंचीय नाटकों ‘बेबात की बात’ व ‘उधार का पति’ और रेडियो नाटक ‘फातिहा’ से शुरूआत की थी। ‘फातिहा’ प्रेमचंद की कथा का नाट्य रूपांतरण था। इसे सतीश तिवारी ने रूपांतरित किया था। वर्ष 1965 में अनामिका ने रेडियो नाटक में प्रमुख पात्र की भूमिका निभाई थी। इस नाटक को अंतर्महाविद्यालयीन रेडियो नाटक प्रतियोगिता के लिए तैयार किया गया था। कॉलेज में नाटकों व अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रिहर्सल करते समय देर शाम हो जाती थी। अंधेरा होने से वे घबड़ा जाती थीं। तब चहल-पहल नहीं रहती थी। सड़कें सुनसान रहती थीं। सिविल लाइंस से राइट टाउन तक पहुंचने काफ़ी समय लगता था। उस समय अनामिका को घर जाने का कोई साधन नहीं मिलता था। देर शाम को आखि‍री बस आती थी, तब उससे अनामिका राइट टाउन स्थि‍त घर वापस पहुंच पाती थीं। मिलन संस्था के कार्यक्रमों में अनामिका को गीत गाने के अवसर व प्रोत्साहन के. के. उपाध्याय ने दिलवाए थे। उस समय जबलपुर के आसपास के आंचलिक क्षेत्रों में एक कार्यक्रम में गीत प्रस्तुति देने के लिए अनामिका को पचास रूपए प्रोत्साहन राशि‍ के रूप में मिलने लगे थे। यह राशि अनामिका के काम बहुत आई। इससे वे कभी अपनी पढ़ाई की पुस्तकें खरीद लेती थीं, तो कभी दीगर कामों में इस राशि का उपयोग कर लिया जाता था। इस समय तक अनामिका की माँ ने रात का भोजन बनाना छोड़ दिया था । अनामिका की बड़ी बहिन साधना अपनी इच्छाओं या शौक को ले कर स्पष्ट थीं। साधना अपनी डांस क्लास, म्यूजिक क्लास और अपनी रिहर्सल में शाम से व्यस्त हो जातीं थीं । अनामिका शाम का भोजन जोर-जोर से फिल्मी गीत गा गाकर बनाया करतीं थीं । उन्हें यह भी चिन्ता रहती थी कि खस्ता भैया भी सात बजे के आसपास एक ग्लास पानी पीने चौके तक अवश्य आते हैं, सात बहनों के चहेते भाई। उन्हें अपने हाथ से लेकर पानी न पीना पड़े। इस चिंता से अनामिका को घर में रहना और चौके में खाना बनाना रुचिकर लगता था। धीरे-धीरे वे भोजन बनाने में सिद्धहस्त हो गईं। पाककला प्रतियोगिता में भी उन्‍होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसी सिद्धहस्तता से भविष्य में उनके जीवन में नया मोड़ भी आया। दैनिक जीवनचर्या के बीच अनामिका को मिलन की प्रस्तुति ‘उधार का पति’ नाटक में राजेन्द्र दुबे के साथ मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला। बड़े भाई विनोद श्रीवास्तव ने उन्हें ‘बेबात की बात’ नाटक में अभिनय का मौका दिया। एक बड़े भाई द्वारा छोटी बहिन को नाटक में अभिनय करने का मौका देना और इस क्षेत्र में प्रोत्साहित करना, इस दृष्ट‍ि से बड़ी व विशिष्‍ट बात थी, क्योंकि उस ज़माने में लड़कियों व महिलाओं का नाटक से जुड़ने के लिए कोई भी व्यक्त‍ि या परिवार अनुमति नहीं देता था।


वर्ष 1968 में अनामिका ने आंतोन चेखव के ‘द एनिवर्सरी’ के हिन्दी रूपांतरण ‘रजतजयंती’ नाटक में प्रमुख भूमिका निभाई। इस नाटक के मंचन की कुछ विशेषताएं रहीं। नाट्य का मंचन जबलपुर विश्वविद्यालय के ग्यारहवें दीक्षांत समारोह के अवसर हुआ था। नाटक के मंचन के समय आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी मुख्य अतिथि‍ के रूप में उपस्थि‍त थे। नाट्य मंचन का संयोजन रामेश्वर प्रसाद शुक्ल ‘अंचल’ ने किया था। नाटक का निर्देशन रतनप्रकाश व कैलाश नारद ने संयुक्त रूप से किया था। नाटक में अनामिका के साथ रत्ना, सूरज, सुरेन्द्र शर्मा, जगदीश गुप्ता मोती व कैलाश नारद ने अभिनय किया था। जबलपुर में चेखव का नाटक दूसरी बार हुआ था। इससे पूर्व सागर से विजय चौहान ने आ कर चेखव का नाटक ‘भालू’ का निर्देशन किया था। चेखव का रजतजयंती (एनिवर्सरी) वर्ष 1891 में लिखा गया एक मनोरंजक नाटक है। नाटक में बैंक की 15 वीं वर्षगांठ समारोह के अवसर पर बैंकर अपने कुछ सम्मानीय शेयर धारकों से मिलने की तैयारी कर रहा है। नाटक में चार मुख्य चरित्र हैं। इस नाटक में अनामिका ने बैंकर की पत्नी की भूमिका निभाई थी। नाटक में अनामिका के अभिनय को देखने वाले सभी लोग प्रभावित हुए थे।


वर्ष 1969 में अनामिका ने बॉटनी विषय में एम.एससी. की परीक्षा उत्‍तीर्ण की। सतीश तिवारी अनामिका के गायन, उनके बनाए गए भोजन व रूप से इतने मोहित हुए कि उन्होंने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे अनामिका ने स्वीकार कर लिया। दोनों ने परिवार की असहमति के बीच लखनऊ में जा कर विवाह किया। दोनों वहां से दिल्ली पहुंचे। उस समय सतीश तिवारी के पिताजी भवानी प्रसाद तिवारी राज्यसभा के सांसद थे। उस समय संसद का सत्र चल रहा था। भवानी प्रसाद तिवारी को जब दोनों के विवाह की जानकारी मिली तो उन्होंने पुत्र सतीश को निर्देश दिया-‘’तुम तो जबलपुर जाओ और बहुरानी हमारे पास दिल्ली में ही रहेगी।‘’ अनामिका अपने श्वसुर भवानी प्रसाद तिवारी के पास दिल्ली में ही रूक गईं। अनामिका ने एक माह के भीतर अपने व्‍यवहार व सेवाभाव से श्वसुर जी का दिल जीत लिया। लगभग एक माह तक संसद का सत्र चला, तब तक अनामिका दिल्ली में ही रहीं। एक माह में ही अनामिका को महसूस हुआ कि वे श्वसुर जी के पास नहीं बल्क‍ि अपने पिता के साथ रह रहीं हैं। भवानी प्रसाद तिवारी ने पुत्रवधु को आंखों की पलकों पर बैठा कर रखा। सत्र समाप्त होने के बाद भवानी प्रसाद तिवारी ने जबलपुर में घर पर तार किया अरेंज शहनाई, हम लोग जबलपुर पहुंच रहे हैं। इसके बाद जब भी दिल्ली में संसद का सत्र होता, तब हर बार अनामिका उनके साथ दिल्ली जाती थीं। भवानी प्रसाद तिवारी को अनामिका के साथ शतरंज खेलने में बहुत आनंद मिलता था। जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि‍ विश्वविद्यालय के पौध रोग (प्लांट पेथोलॉजी) विभाग में सीनियर रिसर्च असिस्‍टेंट के पद का विज्ञापन निकला। अनामिका की एक मित्र ने उस विज्ञापन को देख कर आवेदन भर दिया। मित्र की सलाह पर अनामिका ने भी इस पद के लिए आवेदन भर दिया। अनामिका के मन में उस समय नौकरी करने का कोई विचार नहीं था और न ही कोई चाह भी। इतफ़ाक से अनामिका का इंटरव्यू अच्छा रहा और वर्ष 1971 में वे सीनियर रिसर्च असिस्‍टेंट के पद पर चुन ली गईं। उस समय कृषि विश्वविद्यालय में अकादमिक पदों पर महिलाएं नाममात्र को कार्यरत थीं। अनामिका ने विश्वविद्यालय में सांस्कृतिक गतिविधियों के संचालन का दायित्व संभाल लिया।


सतीश तिवारी से विवाह के पश्चात् अनामिका ने जबलपुर के कई नाट्य प्रस्तुतियों में पार्श्व गायन किया। वर्ष 1972 में उन्होंने श्याम खत्री निर्देशित ‘पराजित’ नाटक में नरेन्द्र चंदेल के साथ सतीश तिवारी-मदन गुप्ता के संगीत निर्देशन में गायन किया। ‘पराजित’ नाटक के गीत श्याम श्रीवास्तव ने लिखे थे। इसी वर्ष ‘अनुकृति’ संस्था की नाट्य प्रस्तुति ‘लंगड़ी टांग’ में अनामिका ने बड़ी बहिन साधना उपाध्याय व हरिनाथ यादव के साथ पार्श्व गायन किया। विश्वभावन देवलिया के निर्देशन में प्रस्तुत किया गया यह नाटक हरिशंकर परसाई की रानी नागफनी की कहानी व अन्य रचनाओं पर आधारित था। परसाई के व्यंग्य को इलाहाबाद के सरनबली श्रीवास्तव ने नाट्य रूपांतरित किया था। ‘लंगड़ी टांग’ में ध्वनि संकलन का दायित्व जबलपुर के प्रसि‍द्ध मिमिक्री कलाकार राजनीकांत त्रिवेदी ने निभाया था। वर्ष 1975 अनामिका तिवारी के लिए एक महत्वपूर्ण वर्ष था। इस वर्ष जहां उन्होंने ‘हयवदन’ नाटक के लिए पार्श्व गायन किया, वहीं गोविंद मिश्रा के निर्देशन में ‘इतिहास चक्र’ नाटक में मोहिनी की महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई थी। उस समय दर्शकों महसूस होता था कि ‘इतिहास चक्र’ की मोहिनी की भूमिका संभवत: अनामिका को देख कर ही लिखी गई हो। ‘इतिहास चक्र’ में उस समय के जबलपुर में अभिनय के दिग्गज माने जाने वाले महेश गुरू, रावेन्द्र मोरे, कामता मिश्रा व कुमार किशोर जैसे कलाकारों ने अभिनय किया था। इन कलाकारों के बीच में अनामिका अपने विशिष्‍ट अभिनय के कारण पूरी नाट्य प्रस्तुति में अलग ही दिखी थीं। अखिल भारतीय रेल नाट्य प्रतियोगिता में अनामिका को इस नाटक में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ कलाकार का पुरस्कार मिला था। ‘हयवदन’ नाट्य प्रस्तुति के लिए श्याम श्रीवास्तव ने चार गीत विशेष रूप से लिखे थे। बन आई सोन चिरैया, उजले से घोड़े पे हो के सवार आया रे आया राजकुमार, चंदन डुलिया बैठी रे दुल्हनियां जाना है उस पार और तन मन को बांधे क्यों सिर्फ एक देह के साथ जैसे गीत में सतीश तिवारी के संगीत ने चार चांद लगा दिए थे। इन गीतों को अनामिका तिवारी के साथ नरेन्द्र चंदेल, आभा तिवारी, साधना उपाध्याय व प्रदीप मिश्रा ने अपने स्वर दिए थे। नाटक के ये गीत उन दिनों जबलपुर में खूब लोकप्रिय हुए थे। गीतों में आभा तिवारी ने सितार, तेजराज मावजी ने सेक्साफोन क्लांरनेट, रत्नाकर कुंडले ने वायलिन और अल्हाद पंडित ने तबले पर संगत दी थी। तेजराज मावजी जबलपुर में कुशल बैंड वादक माने जाते थे। इस दौरान पारिवारिक जिम्‍मेदारियों व इंदौर स्‍थानांतरण हो जाने से अनामिका की जबलपुर के रंगकर्म में सक्रियता धीरे-धीरे कम होने लगी। लगभग बीस वर्ष बाद वर्ष 1995 में अनामिका तिवारी ने पार्वती पांडे के साथ संस्कृत के महान ग्रंथ त्र‍िपुरा रहस्यम् पर आधारित ‘श्री त्र‍िपुर सुंदरी विजयम्’ नाटक में मुख्य पार्श्व गायन किया था। नाटक में जबलपुर की उस समय की महापौर कल्याणी पांडे ने प्रमुख भूमिका निभाई थी। नाटक का निर्देशन महेश गुरू व रामेन दत्ता ने किया था। संगीत पृथ्वीराज का था। इस नाटक के कलकत्ता के अलग-अलग सभागार में पांच मंचन हुए थे।


जबलपुर में कृषि विश्वविद्यालय में कार्यरत रहने के दौरान अनामिका तिवारी ने वर्ष 1972 से वर्ष 1976 तक आकाशवाणी के जबलपुर केन्द्र के लिए कृषि पर आधारित इंटरव्यू लिए। उन्होंने ‘कृषि‍ विश्वविद्यालय से खेतों तक’ के कार्यक्रम के लिए सैकड़ों इंटरव्यू लिए थे। यहां उन्होंने आकाशवाणी के नियमित स्टॉफ के स्थान पर इस कार्य को बहुत तन्मयता से किया था। अनामिका का वर्ष 1976 में इंदौर स्थानांतरण हो गया। यहां वे विजय नाट्य मंच से जुड़ गईं। एक दिन इंदौर में अनामिका को अचानक ही बाजार में जबलपुर के कीर्ति गोस्वामी मिल गए। कीर्ति गोस्‍वामी नाटकों में हास्य-व्यंग्य अभिनय करने में माहिर थे। जबलपुर में दोनों कई नाटकों में साथ काम कर चुके थे। कीर्ति गोस्‍वामी ने अनामिका का परिचय विजय दीक्षित से करवाया। जबलपुर के दोनों कलाकारों से प्रभावित विजय दीक्षित ने ‘विजय नाट्य मंच’ की स्थापना की। इस संस्‍था में वियज दीक्षित ने अनामिका को कई जिम्‍मेदारियां भी सौंपी। संस्‍था के छोटे-मोटे आयोजनों के साथ बड़े आयोजन के लिए जबलपुर की नाट्य संस्‍था ‘कचनार’ के दो नाटक ‘सगुन पंछी’ व ‘सिंहासन खाली है’ का मंचन इंदौर में करवाने की योजना बनी। नाटकों के मंचन के पूर्व ‘कचनार’ संस्था के कुमार किशोर व्‍यवस्‍थाओं के जायजे के लिए इंदौर आए। विजय दीक्षित नाटक संबंधी बातों को तय करने उपरांत जब कुमार किशोर को रेलवे स्टेशन छोड़ने गए, तब अचानक ट्रेन चलने से विजय दीक्षित डिब्‍बे डिब्बे से कूदे। गनीमत है उनकी जान बच गई, परन्‍तु पैर में फ्रैक्चर हो गया। इस हादसे के उपरांत अचानक ही अनामिका पर नाटक करवाने का सारा दारोमदार आ गया। उन्होंने इंदौर में नाटक के मंचन की जिम्मेदारी उठाते हुए जबलपुर से आने वाली ‘कचनार’ की टीम को होटल की बजाए कृषि महाविद्यालय के गेस्‍ट हाउस में ठहराने की व्‍यवस्‍था की। पूरी टीम की खाने की व्‍यवस्‍था स्‍वयं के घर में की। नाटकों के मंचन का प्रचार-प्रसार रिक्‍शे में भोंपू लगा कर मुनादी तक पिटवाई। नाटक के टिकट बिकवाने में अनामिका के महाविद्यालय के स्टाफ ने उनको सहयोग दिया। दोनों नाटकों का सफल मंचन रवीन्‍द्र नाट्य गृह में हुआ। इन नाटकों में अनामिका की बड़ी बहिन साधना ने भी अभिनय किया। इंदौर में ही उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने के मौके मिले। अनामिका ने अकेले नाटक का आयोजन करने से मिले आत्मविश्वास की बदौलत जबलपुर के कुलकर्णी बंधु (हेमंत व दत्तात्रेय) का कार्यक्रम इंदौर में आयोजित किया। इंदौर में अनामिका को रंगकर्म में नया आयाम निर्देशक के रूप में मिला। यहां उन्‍होंने सीता स्‍वयंवर, पुरस्‍कार, दर्दे-ए-आयात और रानी दुर्गावती जैसे नाटकों में अभिनय के साथ उनका निर्देशन भी किया। ये नाटक जबलपुर व इंदौर के कृषि‍ महाविद्यालयों के विद्यार्थ‍ियों ने प्रस्तुत किए थे। अनामिका ने इंदौर के कृषि महाविद्यालय में नाटक व सांस्‍कृतिक गतिविधि को बढ़ावा देने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।


वर्ष 1977 में अनामिका ने आकाशवाणी केन्‍द्र इंदौर से नाटकों का और वर्ष 1978 में सुगम गानों का ऑडीशन पास किया। आकाशवाणी के इंदौर केन्द्र में अनामिका को रणजीत सतीश, भारत रत्न भार्गव, स्वतंत्र कुमार ओझा, संतोष जोशी व इंदू आनंद से रेडियो नाटक व उनके प्रस्तुतिकरण के बारे में काफ़ी सीखने को मिला। इन्हीं लोगों के मार्गदर्शन में अनामिका ने वर्ष 1977 में ‘अदालत में महिला गवाह’ व ‘दृष्टिकोण’, वर्ष 1979 में ‘उपेक्षित’ व वर्ष 1980 में ‘तथागत के चरणों’ रेडियो नाटक में काम किया। रेडियो के लिए उन्‍होंने रामानुज लाल श्रीवास्‍तव ऊंट की कहानी (हम इश्‍क के बंदे हैं) ‘कहानी चक्र’ का नाट्य रूपांतरण ‘शक का भूत’ के नाम से किया। भवानी प्रसाद तिवारी की स्‍वतंत्रता संग्राम जीवनी का नाट्य रूपांतरण ‘आज़ादी के पथिक भवानी प्रसाद तिवारी’ के नाम से किया। अनामिका तिवारी ने इसके अलावा ‘लगी सुख सावन की झिरियां’ व ‘मैं तो हो गई पानी राजा हो गए पपीहरा’ रेडियो नाटक रूपक लिखे। ‘मैं तो हो गई पानी राजा हो गए पपीहरा’ का प्रसारण एक साथ आकाशवाणी के 19 केन्द्रों द्वारा किया गया। अनामिका लिखित रेडियो नाटक अमृत और विष, आईना व परछाई काफ़ी लोकप्रिय रहे। परछाई रेडियो नाटक का प्रसारण भी 19 आकाशवाणी केन्द्रों से एक साथ किया गया। उनका लिखा रेडियो नाटक ‘प्रत्‍यागमन’ अभी अप्रसारित है। विवाह के पश्चात् अनामिका ने जबलपुर के शारदा प्रसाद भट्ट व मधुकर राव पाठक से गायन में सिद्धहस्त होने के लिए संगीत सीखा। अनामिका ने शारदा प्रसाद भट्ट से विशेष रूप से ठुमरी व दादरा सीखा।


अनामिका तिवारी ने वर्ष 2018 में एक पूर्णकालिक नाटक ‘शूर्पणखा’ लिखा। यह नाटक पुस्‍तक के रूप में प्रकाशित हुआ है। उनका एक पूर्णकालिक नाटक ‘आग और फूस’ छप कर आने वाला है। उन्‍होंने कुछ व्‍यंग्‍य नाटक भी लिखे हैं, जिसमें ‘चन्‍द्र खिलौना लै हों बापू’ चर्चित हुआ है। अनामिका की व्‍यंग्‍य पुस्‍तक ‘दरार बिना घर सूना’ के विमोचन के अवसर उनके दो व्‍यंग्‍य- ‘हमको उनसे वफ़ा की है उम्‍मीद’ व ‘राजकाज’ का नाट्य रूपांतरण जबलपुर की ‘रंग टोली’ संस्‍था द्वारा किया गया था। ‘शूर्पणखा’ नाटक लेखन के लिए अनामिका तिवारी को गिरजादेवी स्‍मृति पुरस्‍कार व सेठ गोविंददास स्‍मृति पुरस्‍कार प्रदान किए गए। उन्‍होंने कृषि विश्‍वविद्यालय में सांस्‍कृतिक समन्‍वय के रूप में कई वर्षों तक युवा संसद (मॉक पार्लियामेंट) हेतु लेखन, स्क्रिप्‍ट, निर्देशन व संचालन किया। अनामिका ने इस विषय पर एक पुस्‍तक भी लिखी है। अभी यह पांडुलिपी स्‍वरूप में है। यदि इसका प्रकाशन संभव होता है, तो निश्चित रूप से संसदीय प्रक्रिया को समझने के लिए यह पुस्‍तक विद्यार्थियों के लिए उपयोगी साबित होगी।


अनामिका तिवारी ने रंगकर्म, पारिवारिक जिम्‍मेदारियों व नौकरी के मध्‍य संतुलन बनाए रखते हुए वर्ष 1993 में डाक्‍टरेट किया। कृषि वैज्ञानिक के रूप में फसल व पौधों की बीमारियों पर किए गए उनके शोध कार्यों व शोध पत्रों को राष्‍ट्रीय व अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर की संस्‍थाओं से मान्‍यता व पुरस्‍कार मिले। इन्‍हीं व्‍यस्‍तताओं के कारण अनामिका ‘अंधा युग’ में कुंती की भूमिका नहीं निभा पाईं थीं। उनकी अनुपलब्‍धता के कारण निर्देशक विश्‍वभावन देवलिया ने इस नाटक का मंचन ही नहीं किया। अनामिका तिवारी लंबे समय तक जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्‍वविद्यालय की सांस्‍कृतिक समन्‍वयक रहीं। इस भूमिका को निभाते हुए उन्‍होंने कई राष्‍ट्रीय प्रतियोगिताओं में विश्‍वविद्यालय को स्‍वर्णिम सफलताएं दिलवाईं। अनामिका तिवारी मध्‍यप्रदेश की प्रथम पौध रोग वैज्ञानिक के रूप में कृषि विश्‍वविद्यालय के पौध रोग विभाग के प्रोफेसर व विभागाध्‍यक्ष पद से वर्ष 2007 में सेवानिवृत्‍त हुईं।


वर्तमान में अनामिका तिवारी साहित्‍यिक रूप से सक्रिय हैं। उनकी पुत्री विजयश्री खन्‍ना एक गायिका व रंगकर्मी हैं। विजयश्री के पति व अनामिका के दामाद संजय खन्‍ना की पहचान एक उत्‍कृष्‍ट नाट्य अभिनेता के रूप में रही है, लेकिन कुछ वर्ष पूर्व उनका आकस्मिक निधन हो गया। बड़े पुत्र अनिमेष युवा संगीतकार के रूप में कुछ नाट्य प्रस्‍तुतियों में संगीत दे चुके हैं। छोटे पुत्र अभि‍षेक की नाटकों में अभिनय करने में रूचि है। पुत्री व पुत्रों के पास माता-पिता की भरपूर विरासत है। अनामिका तिवारी ने कभी सोचा ही नहीं था कि गायन, रंगकर्म से होता हुआ उनका जीवन एक कृषि वैज्ञानिक तक पहुंचेगा।
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