नवगीत 
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प्रजातंत्र का अर्थ हो गया 
केर-बेर का संग 
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संविधान कर प्रावधान 
जो देता, लेता छीन 
सर्वशक्ति संपन्न जनता 
केवल बेबस-दीन 
नाग-साँप-बिच्छू चुनाव लड़ 
बाँट-फूट डालें 
विजयी हों, मिल जन-धन लूटें 
जन-गण हो निर्धन 
लोकतंत्र का पोस्टर करती 
राजनीति बदरंग 
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया 
केर-बेर का संग 
*
आश्वासन दें, जीतें चुनाव, कह 
जुमला जाते भूल 
कहें गरीबी पर गरीब को 
मिटा, करें निर्मूल 
खुद की मूरत लगा पहनते, 
पहनाते खुद हार 
लूट-खसोट करें व्यापारी 
अधिकारी बटमार 
भीख , पा पुरस्कार 
लौटा करते हुड़दंग 
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया 
केर-बेर का संग 
*
गौरक्षा का नाम, स्वार्थ ही 
साध रहे हैं खूब 
कब्ज़ा शिक्षा-संस्थान पर
कर शराब में डूब 
दुश्मन के झंडे लहराते 
दें सेना को दोष 
बिन मेहनत पा सकें न रोटी 
तब आएगा होश 
जनगण जागे, गलत दिखे जो 
करे उसी से जंग 
प्रजातंत्र का अर्थ हो गया 
केर-बेर का संग 
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मुक्तक 
राकेशी चंदनी चाँदनी, बिम्बित हुई सलिल में जब-जब 
श्री प्रकाश महिमा सुरेंद्र सँग, निरख गए आकर महेश तब 
कुसुम-सुमन की गीत-अंजुरी, पिंगल नाग सुने हर्षाए 
बरसाए अमृत धरती पर, गगन-मेघ हँस बलि-बलि जाए
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