हिंदी दिवस पर विशेष 
मुहावरा कौआ स्नान 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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कौआ पहुँचा नदी किनारे, शीतल जल से काँप-डरा रे! 
कौवी ने ला कहाँ फँसाया, राम बचाओ फँसा बुरा रे!! 
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पानी में जाकर फिर सोचे, व्यर्थ नहाकर ही क्या होगा?
रहना काले का काला है, मेकप से मुँह गोरा होगा। .
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पूछा पत्नी से 'न नहाऊँ, क्यों कहती हो बहुत जरूरी?'
पत्नी बोली आँख दिखाकर 'नहीं चलेगी अब मगरूरी।।' 
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नहा रहे या बेलन, चिमटा, झाड़ू लाऊँ सबक सिखाने 
कौआ कहे 'न रूठो रानी! मैं बेबस हो चला नहाने' 
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निकट नदी के जाकर देखा पानी लगा जान का दुश्मन 
शीतल जल है, करूँ किस तरह बम भोले! मैं कहो आचमन?
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घूर रही कौवी को देखा पैर भिगाये साहस करके 
जान न ले ले जान!, मुझे जीना ही होगा अब मर-मर के 
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जा पानी के निकट फड़फड़ा पंख दूर पल भर में भागा 
'नहा लिया मैं, नहा लिया' चिल्लाया बहुत जोर से कागा
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पानी में परछाईं दिखाकर बोला 'डुबकी देखो आज लगाई 
अब तो मेरा पीछा छोडो, ओ मेरे बच्चों की माई!' 
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रोनी सूरत देख दयाकर कौवी बोली 'धूप ताप लो 
कहो नर्मदा मैया की जय, नाहक मुझको नहीं शाप दो' 
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गाय नर्मदा हिंदी भारत भू पाँचों माताओं की जय 
भागवान! अब दया करो चैया दो तो हो पाऊँ निर्भय 
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उसे चिढ़ाने कौवी बोली' आओ! संग नहा लो-तैर' 
कर ''कौआ स्नान'' उड़ा फुर, अब न निभाओ मुझसे बैर 
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बच्चों! नित्य नहाओ लेकिन मत करना कौआ स्नान 
रहो स्वच्छ, मिल खेलो-कूदो, पढ़ो-बढ़ो बनकर मतिमान 
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आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
२०४ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१ 
चलभाष ९४२५१८३२४४
 
 
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