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बुधवार, 18 नवंबर 2020

दोहा सलिला

 दोहा सलिला 

सुमन सदृश जो महकते, उन पर सलिल निसार
दोहा-दोहा दमकता, दीपित दिया उदार
*
क्षुधा-तृषा-धनहीनता, छल, चोरी लें जाँच
धीरज-समझ-प्रयास हैं, मिथ्या या कुछ साँच
*
क्या सोचेंगे लोग है, बंधन-व्याधि अकाट्य
ठेंगे पर दें मार तो, श्रम-साफल्य न काट्य
*
निज छाया ही खींचती, पीछे अपने पाँव
रहे शीश पर तब भली, 'सलिल' मानिए छाँव
*
कहता कम करता अधिक, जो वह सच्चा मीत
बिना कहे हित करे जो, उससे करिए प्रीत
*
कृपा न कमजोरी बने, ज्ञान न हो अभिमान
शौर्य त्याग हड़बड़ी दे, दृढ़ न जिद्द ले ठान
*
अंधकार को कोस मत, बन दीपिका-प्रकाश
पैर जमा कर जमीं पर, हाथ-उठा आकाश
*
चाह आह हो कर्म बिन, करती 'सलिल' तबाह
डाह दाह दे जलाती, कोशिश बनती वाह
*
भला सोच करिए भला, सब धर्मों का सार
सोच-करें यदि बुरा तो, पड़े दैव की मार
*
ईर्ष्या द्वेष जलन करे, नाश न छोड़े जान

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