मुक्तिका
बिन सपनों के सोना क्या
बिन आँसू के रोना क्या
*
वह मुस्काई, मुझे लगा
करती जादू-टोना क्या
*
नहीं वफा जिसमें उसकी
खातिर नयन भिगोना क्या
*
दाने चार न चाँवल के
मूषक तके भगोना क्या
*
सेठ जमीनें हड़प रहे
जानें फसलें बोना क्या
*
गिरती हो जब सर पर छत
सोच न घर का खोना क्या
*
जीव न यदि 'संजीव' रहे
फिर होना-अनहोना क्या
*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
बुधवार, 5 अगस्त 2020
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
टिप्पणी पोस्ट करें