पुस्तक चर्चा :
''कालचक्र को चलने दो'' भाव प्रधान कवितायें
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[पुस्तक विवरण: काल चक्र को चलने दो, कविता संग्रह, सुनीता सिंह, प्रथम संस्करण २०१८, पृष्ठ १२५, आकार २० से.मी. x १४.५ से. मी., आवरण बहुरंगी पेपर बाइक लेमिनेटेड, २००/- प्रतिष्ठा पब्लिशिंग हाउस, लखनऊ]
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साहित्य समय सापेक्षी होता है। कविता 'स्व' की अनुभूतियों को 'सर्व' तक पहुँचाती है। समय सनातन है। भारतीय मनीषा को 'काल' को 'महाकाल' का उपकरण मानती है इसलिए भयाक्रांत नहीं होती, 'काल' का स्वागत करती है। 'काल को चलने दो' जीवन में व्याप्त श्वेत-श्याम की कशमकश को शब्दांकन है।कवयित्री सुनीता सिंह के शब्दों में "अकस्मात मन को झकझोर देनेवाली परिस्थितियों से मन को अत्यंत नकारात्मक रूप से प्रभावित होने से बचने के लिए उन परिस्थितियों को स्वीकार करना आवश्यक होता है जो अपने बस में नहीं होतीं। जीवन कभी आसान रास्ता नहीं देता। हतोत्साहित करनेवाले कारकों और नकारात्मकता के जाल से जीवन को अँधेरे से उजाले की ओर शांत मन से ले जाने की यात्रा का दर्शन काव्य रूप से प्रस्तुत करती है यह पुस्तक।'
५४ कविताओं का यह संकलन अजाने ही पूर्णता को लक्षित करता है। ५४ = ५+४=९, नौ पूर्णता का अंक है। नौ शक्ति (नौ दुर्गा) का प्रतीक है। नौ को कितनी ही बार जोड़े या गुणा करें ९ ही मिलता है।संकलन में राष्ट्रीयता के रंग में रंगी ५ रचनाएँ हैं। ५ पंचतत्व का प्रतीक है। 'अनिल, अनल, भू, नभ सलिल' यही देश भी है। भारत भूमि, भारत वर्ष, स्वदेश नमन, प्रहरी, भारत अखंड शीर्षक इन रचनाओं में भारत का महिमा गान होना स्वाभाविक है।
इसकी गौरव गाथा को हिमगिरि झूम कर गाता है
जिस पर गर्वित होकर के सागर भी लहराता है
तिलक देश के माथे का हिम चंदन है
शत बार तुझे ऐ देश मेरे अभिनन्दन है
कवयित्री देश भक्त है किन्तु अंधभक्त नहीं है। देश महिमा गुँजाते हुए भी देश में व्याप्त अंतर्विरोध उसे दुखी करते हैं -
एक देश में दो भारत / क्यों अब तक है बसा हुआ?
एक माथ पर उन्नत भाल / दूजा क्यों है धँसा हुआ?
'माथ' और 'भाल' पर्यायवाची हैं। एक पर दूसरा कैसे? 'माथ' के स्थान पर 'कांध' होता तो अर्थवत्ता में वृद्धि होती।
इस भावभूमि से जुडी रचनाएँ रणभेरी, बढ़ते चलो, वीरों की पहचान आदि भी हैं जिनमें परिस्थितियों से जूझकर उन्हें बदलने का आव्हान है।
कवि को प्राय: काव्य-प्रेरणा प्रकृति से मिलती है। इस संग्रह में प्रकृति से जुडी रचनाओं में प्रकृति दोहन, आंधी, हरीतिमा, जल ही जीवन, मकरंद, फाग, बसंत, चूनर आदि प्रमुख हैं।
प्रकृति का अनुपम उपहार / यह अभिलाषा का संसार
इच्छाओं की अनंत श्रृंखला / दिव्य लोक तक जाती है
स्वच्छंद कल्पना के उपवन में / सतरंगी पुष्प खिलाती है
स्वप्नों में स्वर्णिम पथ पर / आरूढ़ होकर आती है
कितना मोहक, कितना सुंदर / है यह विशाल अंबर निस्सार
एक बाल कथा सुनी थी जिसमें गुरु जी शिष्यों को सिखाने के बाद अंतिम परीक्षा यह लेते हैं कि वह खोज के लाओ जो किसी काम का नहीं। प्रथम वह विद्यार्थी आया जो कुछ नहीं ला सका। गुरु जी ने कहा हर वास्तु का उपयोग कर सकनेवाला ही श्रेष्ठ है। ईश्वर ने निरुपयोगी कुछ नहीं बनाया। कवयित्री ने वाकई अंबर को निस्सार पाया या तुक मिलाने के लिए शब्द का प्रयोग किया? अंबर पाँच तत्वों में से एक है, वह निस्सार कैसे हो सकता है?
दर्शन को लेकर कवयित्री ने कई रचनाएँ की हैं। गुरु गोरखनाथ की साधनास्थली में पली-बढ़ी कलम दर्शन से दूर कैसे रह सकती है?
मन की आँखों से है दिखता / खोल हृदय के द्वार
निहित कर्म पर गढ्ता / सद्गति या दुर्गति आकार
''कर्म प्रधान बिस्व करि राखा'' का निष्कर्ष तुलसी ने भी निकाला था, वही सुनीता जी का भी प्राप्य है।
संग्रह की रचनाओं में 'एकला चलो रे' हे प्रिये, हे मन सखा आदि पठनीय हैं। कवयित्री में प्रतिभा है, उसे निरंतर तराशा जाए तो उनमें छंद, शुद्ध छंद रचने की सामर्थ्य है किन्तु समयाभाव उन्हें रचना को बार-बार छंद-विधान के निकष पर कसने का अवकाश नहीं देता। पुरोवाक में नीलम चंद्रा के अनुसार 'इनके हर अलफ़ाज़ चुनिंदा होते हैं' के संदर्भ में निवेदन है कि 'हर' एक वचन है, अल्फ़ाज़ बहुवचन, 'हर लफ्ज़' सही होता।
''कालचक्र चलने दो'' कवयित्री के संवेदनशील मन की भाव यात्रा है। रचनाओं में पाठक को अपने साथ रख पाने की सामर्थ्य है। कथ्य मौलिक है। शब्द चयन सटीक है। सारत: यह कृति मानव जीवन की तरह गन-दोष युक्त है और यही इसे ग्रहणीय बनाता है। सुनीता का भविष्य एक कवयित्री के नाते उज्जवल है। वे 'अधिक' और 'श्रेष्ठ' का अंतर समझ कर 'श्रेष्ठ' की दिशा में निरंतर अग्रसर हैं।
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[संपर्क: आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', सभापति विश्ववाणी हिन्दी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१, चलभाष ७९९९५५९६१८, salil.sanjiv@gmail.com ]
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