कुल पेज दृश्य

रविवार, 26 जुलाई 2020

नवगीत: संजीव

नवगीत:
संजीव
*
गैर कहोगे जिनको
वे ही
मित्र-सगे होंगे
*
ना माँगेंगे पानी-राशन
ना चाहेंगे प्यार
नहीं लगायेंगे वे तुमको
अनचाहे फटकार
शिकवे-गिले-शिकायत
तुमसे?, होगी कभी नहीं
न ही जतायेंगे वे तुम पर
कभी तनिक अधिकार
काम पड़े पर नहीं
आचरण
प्रेम-पगे होंगे
गैर कहोगे जिनको
वे ही
मित्र-सगे होंगे
*
अगर न चाहो तो वे किंचित
निकट नहीं आते
काम पड़े तो अ
अपनापन दे
तनिक न भरमाते
लेन-देन साँसों के
आने-जाने सा व्यापार
कहो कभी क्या किंचित भी वे
तुमको तरसाते?
नाम न उनके, मन-
खूँटी पर
कभी टँगे होंगे
गैर कहोगे जिनको
वे ही
मित्र-सगे होंगे
*
सगा कह रहे जिनको वे ही
रहे निभाते बैर
सम्राटों की शहजादों से
कहो रही कब खैर?
जन्मा, गोद खिलाया-पाला
जिसको देता फूँक
बाप गधे को कहता, कहिए
जीते जी क्या गैर?
वे न जगेंगे,
जिनकी खातिर
आप जगे होंगे
गैर कहोगे जिनको
वे ही
मित्र-सगे होंगे
*

२४-७-२०१५ 

कोई टिप्पणी नहीं: