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सोमवार, 18 मई 2020

अभियान : काव्य विमर्श १८-५-२०२०

ॐ 
विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर 
पर्व १५ : काव्य विमर्श : कविता क्या?... क्यों?... किस तरह?... 
दिनाँक १८-५-२०२०, समय सायं  ४ बजे से 
मुखिया : आचार्य भगवत दुबे, ख्यात साहित्यकार, जबलपुर  
पाहुना : श्री राजेंद्र वर्मा, छन्दाचार्य, संपादक, लखनऊ 
विषय प्रवर्तक : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', जबलपुर 
उद्घोषक : प्रो. अलोक रंजन, पलामू झारखण्ड
शारदा वंदना : वन्दनाकार डॉ. अनामिका तिवारी, गायिका : मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' 
वाग्देवी शारदा तथा विघ्नेश्वर गजानन के श्री चरणों में प्रणति निवेदन के साथ डॉ. अनामिका तिवारी लिखित सरस्वती वंदना का सस्वर गायन मीनाक्षी शर्मा 'तारिका' ने किया। आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने विषय प्रवर्तन करते हुए कविता को अनुभूत की सरस अभिव्यक्ति निरूपित करते हुए लोक ग्राह्यता को कविता की कसौटी बताया। भीलवाड़ा की कवयित्री पुनीता भरद्वाज ने कविता में सरसता और दोषमुक्तता होना आवश्यक बताया। इंजी. अरुण भटनागर ने  कविता को लोकोत्तर उदात्त भावनाओं की वाहक बताया। डॉ. अनामिका तिवारी ने कविता को समय का दर्पण निरूपित करते हुए उसे जान संवेदनाओं की वाहक बताया। भारतीय वायु सेना में योद्धा रह चुके ग्रुप कैप्टेन श्यामल सिन्हा ने कविता को जीवन व्यापारों हुए मनोवेगों की सकारात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बताया। मेदिनी नगर पलामू झारखंड से सहभागिता कर रहे वरिष्ठ कवि श्री श्रीधर प्रसाद द्विवेदी ने भारतीय तथा पाश्चात्य समीक्षकों के मतों की तुलना करते हुए कविता को जीवन का अपरिहार्य अंग बताया। 
डॉ. मुकुल तिवारी ने कविता को जीवन में कविता की उपस्थिति को अपरिहार्य बताया।  श्रीमती मनोरमा रतले प्राचार्य दमोह ने कविता को ज्ञान की ग्राह्यता का सरस-सरल माध्यम माना। श्रीमती विनीता श्रीवास्तव ने कविता को लोक मंगलकारी स्वार्थपरता से परे सामाजिकता न मानवता का कध्याम निरूपित किया। दमोह से पधारी कवयित्री बबीता चौबे 'शक्ति' दमोह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कविता में सन्देशपरकता और प्रवहमानता  को आवश्यक  बताते हुए कविता को आत्मा से निकली आवाज़ बताया।सुषमा शैली दिल्ली ने कविता को समाज का आइना निरूपित किया तथा सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी चुपाई मारो दुलहिन कविता का उल्लेख किया।  टीकमगढ़ के साहित्यकार राजीव नामदेव राणा लिघौरी ने कविता के भाव सौंदर्य,  विचार सौंदर्य,  नाद सौंदर्य तथा योजना सौंदर्य पर प्रकाश डाला। प्रो. आलोक रंजन ने  ह्रदय, भाव योग और कविता को परस्पर पूरक बताया। भाव योग से ज्ञान योग तक की यात्रा में कविता की भूमिका को मधुमति भूमिका बताया। 

आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने रस -छंद-अलंकार तथा प्रत्यक्ष-परोक्ष अनुभूति की चर्चा करते हुए कहा कि कविता में भाषा की तीनों शक्तियों अमिधा, लक्षणा तथा व्यंजना की प्रासंगिकता है। विमर्श के अध्यक्ष लखनऊ से पधारे प्रसिद्ध छंद शास्त्री राजेंद्र वर्मा ने विधागत मानकों, छंद और भाव की प्रतिष्ठा को आवश्यक बताते हुए अच्छी कविता का निकष मन को अच्छी लगना बताया। उनहोंने कवि को अपना आलोचक होना जरूरी बताया। अंत में विमर्श के अध्यक्ष श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार आचार्य भगवत दुबे ने कवि को अपने युग का प्रवक्ता बताते हुए, अतीत के गौरव का प्रवक्ता होने के साथ युग का सचेतक निरूपित किया। डॉ. मुकुल तिवारी प्राचार्य महिला महाविद्यालय ने इस विचारपरक विमर्श के अतिथियों, सहभागियों संयोजकों आदि के प्रति आभार व्यक्त किया।
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कविता क्या है?
नेह नर्मदा सी है कविता, हहर-हहरकर बहती रहती
गेह वर्मदा सी है कविता घहर-घहर सच तहती रहती
कविता साक्षी देश-काल की, कविता मानव की जय गाथा
लोकमंगला जन हितैषिणी कविता दहती - सहती रहती
*
कविता क्यों हो?
भाप न असंतोष की मन में
हो एकत्र और फिर फूटे
अमन-चैन मानव के मन का
मौन - अबोला पैन मत लूटे
कविता वाल्व सेफ्टी का है
विप्लव को रोका करती है
अनाचार टोंका करती है
वक्त पड़े भौंका करती है
इसीलिये कविता करना ही
योद्धा बन बिन लड़, लड़ना है
बिन कुम्हार भावी गढ़ना है
कदम दर कदम हँस बढ़ना है
*
कविता किस तरह?
कविता करना बहुत सरल है
भाव नर्मदा डूब-नहाओ
रस-गंगा से प्रीत बढ़ाओ
शब्द सुमन चुन शारद माँ के
चरणों में बिन देर चढ़ाओ
अलंकार की अगरु-धूप ले
मिथक अग्नि का दीप जलाओ
छंद आरती-श्लोक-मंत्र पढ़
भाषा माँ की जय-जय गाओ
कविता करो नहीं, होने दो
तुकबंदी के कुछ दोने लो
भरो कथ्य-सच-लय पंजीरी
खाकर प्राण अमर होने दो।
*
क्षणिका
और अंत में
कविता मुझे पसंद, न कहना
वरना सजा मिलेगी मिस्टर
नहीं समझते क्यों
समझो है
कविता जज साहब की सिस्टर
*

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