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बुधवार, 20 मार्च 2019

होली के दोहे

होली के दोहे
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होली हो ली हो रही, होली हो ली हर्ष  
हा हा ही ही में सलिल, है सबका उत्कर्ष 
होली = पर्व, हो चुकी, पवित्र, लिए हो   
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रंग रंग के रंग का, भले उतरता रंग 
प्रेम रंग यदि चढ़ गया कभी न उतरे रंग 
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पड़ा भंग में रंग जब, हुआ रंग में भंग 
रंग बदलते देखता, रंग रंग को दंग 
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शब्द-शब्द पर मल रहा, अर्थ अबीर गुलाल 
अर्थ-अनर्थ न हो कहीं, मन में करे ख़याल 
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पिच् कारी दीवार पर, पिचकारी दी मार 
जीत गई झट गंदगी, गई सफाई हार 
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दिखा सफाई हाथ की, कहें उठाकर माथ 
देश साफ़ कर रहे हैं,  बँटा रहे चुप हाथ 
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अनुशासन जन में रहे, शासन हो उद्दंड 
दु:शासन तोड़े नियम, बना न मिलता दंड   
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अलंकार चर्चा न कर, रह जाते नर मौन 
नारी सुन माँगे अगर, जान बचाए कौन?
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गोरस मधुरस काव्य रस, नीरस नहीं सराह 
करतल ध्वनि कर सरस की, करें सभी जन वाह 
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जला गंदगी स्वच्छ रख, मनु तन-मन-संसार  
मत तन मन रख स्वच्छ तू, हो आसार में सार 
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आराधे राधे; कहे आ राधे! घनश्याम 
वाम न होकर वाम हो, क्यों मुझसे हो श्याम 
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संवस 
होली २०१८ 

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