एक रचना 
भक्तों से सावधान
*
जो दुश्मन देश के, निश्चय ही हारेंगे 
दिख रहे विरोधी जो वे भी ना मारेंगे 
जो तटस्थ-गुरुजन हैं, वे ही तो तारेंगे
मुट्ठी में कब किसके, बँधता है आसमान 
भक्तों से सावधान 
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देशभक्ति नारा है, आडंबर प्यारा है 
सेना का शौर्य भी स्वार्थों पर वारा है 
मनमानी व्याख्या कर सत्य को बुहारा है 
जो सहमत केवल वे, हैं इनको मानदान 
भक्तों से सावधान 
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अनुशासन तुम चाहो, ये पल-पल तोड़ेंगे 
शासन की वल्गाएँ स्वार्थ हेतु मोड़ेंगे 
गाली गुस्सा नफरत, हिंसा नहिं छोड़ेंगे 
कंधे पर विक्रम के लदे लगें भासमान
भक्तों से सावधान 
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संवस, ७९९९५५९६१८  
३१.३.२०१९
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